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## Pindaniyukti
166/2. In a house, a thief, with fragrance, steals and runs away.
Eating food, sleeping, and talking are all considered as Sambhohi. || 360 || 167. A seat, a step, a platform, a painful injury, falling, and both kinds of killing.
Cutting, stealing from a neighbor, and boasting are all considered as Sambhohi. || 361 || 168. Similarly, a war, a weapon, a female bird falling,
A pregnant woman's belly being broken, and death in front of someone are all considered as Sambhohi. || 362 || 169. Uddhameha, ten kinds of Tiryanch, and also a Malohard, are of three types.
Uddhameha is considered as Otarana, and it is said that "Kumbhaadisoo Ubhayan" are also considered as Sambhohi. || 363 || 170. Daddara, "Sil Sovane", a previous rider, and a person who is thrown up.
A Malohard is not considered as Sambhohi, but the rest are considered as Malohard. || 364 || 171. "Tiryaayatamuzzuge, with a rope, what is taken by a person who is hanging.
This is considered as Anuccukkhitta, and the rest are considered as Uccukkhitta. || 365 || 172. Acchhejj, "Pi Ya", is of three types, a king, a master, and also by them.
Acchhejj, Padikutu, is not suitable for a Samana to take. || 366 ||
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पिंडनियुक्ति
१६६/२. मालम्मि कुडे' मोदग, सुगंध अहिपविसणं' करे डक्का।
अन्नदिणसाहुआगम, निद्दय कहणे य संबोही ॥ ३६० ॥ १६७. आसंदि-पीढ-मंचग, जंतोडूखल' पडत उभयवधो ।
वोच्छेद पदोसादी, उड्डाहमनाणिवादो य॥३६१ ॥ १६८. एमेव य उक्कोसे, वारण-निस्सेणि गुव्विणीपडणं।।
गब्भित्थिकुच्छिफोडण, पुरतो' मरणं. 'कहण बोही ॥ ३६२ ॥ १६९. उड्वमहे १० तिरियं पि य९, अहवा मालोहडं भवे तिविधं ।
___ 'उड्डमहे ओतरणं'१२, भणितं 'कुंभादिसू उभयं'१३ ॥ ३६३ ॥ १७०. दद्दर१४ 'सिल सोवाणे'१५, पुव्वारूढे अणुच्चमुक्खित्ते१६ ।
मालोहडं न होती, सेसं मालोहडं जाण ॥ ३६४ ॥ १७१. 'तिरियायतमुज्जुगेण, गेण्हते १८ जं करेण फासंतो।
एयमणुच्चुक्खित्तं९, उच्चुक्खित्तं भवे सेसं ॥ ३६५ ॥ दारं ॥ १७२. अच्छेज्जं 'पि य'२० तिविधं, पभू य सामी य तेणए चेव।
अच्छिज्जं पडिकुटुं, समणाण२१ ण कप्पते घेत्तुं२२ ॥ ३६६ ॥
१. कुटे (अ, बी)।
९. च संबोही (ला, स), कथा के विस्तार हेतु देखें २. “पवे (ला)।
परि. ३,कथा सं. २३। ३. कहणा (ला, ब, मु)।
१०. उद्धे अहे (अ, ला), उड्ड अहे (स)। ४. १६६/१,२-ये दोनों गाथाएं प्रकाशित टीका में ११. व (अ, बी)।
निगा के क्रमांक में हैं लेकिन ये भाष्य की होनी १२. उड्डे य महोयरणं (ला, ब, मु, स)। चाहिए। इन गाथाओं के भाष्यगत होने का एक १३. कुंभाइएसु उभयं पि (अ, बी)। बहुत बड़ा तर्क यह है कि गाथा १६६ के उत्तरार्द्ध में १४. दद्दरे (ला)। नियुक्तिकार 'एवमादी भवे दोसा' का उल्लेख करते १५. सिल सोमाणे (अ, स)। हैं। १६६/१, २ इन दोनों गाथाओं में गेरुक भिक्षु १६. अमुच्च (अ, बी)। की कथा है। १६६ वीं गाथा का सीधा सम्बन्ध १७. होइ (ला, ब, स, क, मु)। १६७ वी गाथा के साथ जुड़ता है अतः बीच की ये १८. 'तउज्जुगएण गिण्हई (क, मु)। दोनों गाथाएं भाष्य की होनी चाहिए। इनको निगा १९. यदृष्टेरुपरि बाहुं प्रसार्य देयवस्तुग्रहणाय पात्रं ध्रियते के मूल क्रमांक में नहीं जोड़ा है।
तत्तथा ध्रियमाणमुच्चोत्क्षिप्तम् (मवृ)। ५. जंतोडु (बी), जंतोदुक्खल (निभा ५९५१), २०. पुण (अ, बी, जीभा)। "डूहल (क)।
२१. साहूण (अ, बी), साधूण (निभा ४५००)। ६. पडेति (अ, बी), पड़ते (ला)।
२२. तु. जीभा १२७४, निशीथ चूर्णि में इस गाथा के ७. फुरंत (ला, ब, स)।
लिए 'इमा णिज्जुत्ती' का उल्लेख मिलता है। ८. पडणं (अ, बी)।
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