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## Pindanuyukti
**146.** A grain of high quality, a rare, crooked, lazy palm fruit. Even that, "for the Guru's sake," he gives it, let there be no quarrel.
**147.** There are two types of Pariyatta, the lower and the higher, in summary. Each one is also of two types, in terms of its substance, food substance.
**148.** The lower and the higher are connected, joined by two types of food. The Puggalia is connected, the Pariyatta is a collection of knowledge.
**148/1.** Compassion for a sister's household, a poor Pariyatta, even for a cruel person. A question for a cruel person, a mosquito does not fly in a storm.
**148/2.** The other one is also in a storm, a night of rain and wind, he gives knowledge. Therefore, it should not be taken, by those who are in the state of Uvasama.
**149.** A diminished, weak one, or a heavy, broken, rotten, iron-like one. A bad food, or a transformed food, or a food that is eaten.
**150.** For one person, it is appropriate, but not for two or more in matters like this. To stay at the Guru's feet, he "breaks the food quarrel."
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पिंडनियुक्ति
१४६. उच्चत्ताए' दाणं, दुल्लभ खग्गूड-अलस पामिच्चं ।
तं पि य 'गुरुस्स पासे", ठवेति५ सो देति मा कलहो । ३२२ ॥ दारं ॥ १४७. परियट्टियं पि" दुविधं, लोइय लोगुत्तरं समासेणं । । एक्केक्कं पि य दुविधं, तद्दव्वे अन्नदव्वे य॥ ३२३ ॥ १४८. अवरोप्परसज्झिलगा', संजुत्ता दो वि० अन्नमन्नेणं।
___ पोग्गलिय'२ संजतट्ठा, परियट्टण संखडे बोही१३ ॥ ३२४ ॥ १४८/१. अणुकंप भगिणिगेहे, दरिद्द परियट्टणा य कूरस्स।
पुच्छा कोद्दवकूरे", मच्छर नाइक्ख पंतावे५ ॥ ३२५ ।। १४८/२. इतरो वि य पंतावे, निसि ओसविताण'६ तेसि दिक्खा य।
तम्हा 'न उ'१७ घेत्तव्वं, कइवा८ जे उवसमेहिंति९ ॥ ३२६ ॥ १४९. ऊणहिय° दुब्बलं वा, खर गुरुर छिन्न-' मइलं असीतसहं '२२ ।
दुव्वन्नं वा नाउं, विपरिणमे२३ अन्नभणितो वा ॥ ३२७ ॥ १५०. एगस्स माणजुत्तं, न तु बितिए एवमादि कज्जेसु।
गुरुपामूले ठवणं, सो 'दलयति अन्नहा'२५ कलहो ॥ ३२८ ॥दारं ॥
१. उच्छहत्ताए (ला)।
१७. उ न (ला, ब, क, मु, स), णो (निभा ४४९६)। २. दुलह (स)।
१८. कइव त्ति-कतिपयाः (मवृ)। ३. खग्गूड:-कुटिलः (मवृ)।
१९. ओसमे (मु), ओसवेहिं पि (ला, ब, स), ४. “स्सगासे (अ, बी)।
ओसमेहिति (निभा) परिवर्तित दोष के प्रसंग में ५. ठवइ (ला, ब), ठवेंति (निभा ४४९२)।
गाथा १४८ में संक्षिप्त में नियुक्तिकार ने पूरी ६. देई (बी), देह (स), देइ (मु)।
कथा का संकेत कर दिया है। १४८/१,२-इन ७. पि य (अ, बी)।
दोनों गाथाओं में इसी कथा का विस्तार है अतः ८. निभा ४४९३।
ये दोनों गाथाएं भाष्य की होनी चाहिए। इन दोनों ९. 'लिया (क, निभा ४४९४)।
गाथाओं को मूल नियुक्ति गाथा के क्रमांक में नहीं १०. x (ला, ब)।
रखा है। ११. एक्कमेक्केणं (निभा)।
२०. ऊणाहि (ला, ब, बी, स)। १२. पुग्गलियं (अ, बी)।
२१. गुरुः स्थूलसूत्रनिष्पन्नतया भारयुक्तं (मवृ)। १३. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. ३,कथा सं. २०। २२. मइलियं सीयसहं (अ, बी), १४. कुद्दव (अ, बी)।
मइलं असीइं सुहं (स)। १५. निभा ४४९५।
२३. विप्प (अ, बी, निभा)। १६. ओसधिताण (ला), ओसविधाण (स), २४. निभा ४४९७। ओसमिआण (क)।
२५. दलइ (अ, ब), देई इयरहा (निभा ४४९८)।
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