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पिंडनियुक्ति
१४३/३. एमेव 'वादि' खमगे, निमित्त आयावयम्मि'२ य विभासा।
सुतठाणं गणिमादी, अहव' वायणायरियमादी ॥ ३१५ ॥ दारं ॥ १४४. पामिच्चं पि य दुविधं, लोइय-लोगुत्तरं समासेणं।
लोइय सज्झिलिगादी', लोगुत्तर वत्थमादीसु ॥ ३१६ ॥ १४४/१. सुतअभिगमणातविधी, 'बहि पुच्छा" एग 'जीवति ससा ते ।
पविसण पागनिवारण, उच्छिंदण तेल्ल जतिदाणं ॥ ३१७ ॥ १४४/२. अपरिमिततिल्लवुड्डी, दासत्तं सो य आगतो पुच्छा।
दासत्त कहण मा रुय, अचिरा मोएमि अप्पाहे ॥ ३१८ ।। १४४/३. भिक्खुदग'३ समारंभे, कहणाउट्टो 'कहिं भे'१४ वसहि त्ति।
सम्मवया५ आहरणं, विसज्ज कहणा 'कइवया उ'१६ ॥ ३१९ ॥ १४४/४. एते चेव य७ दोसा, सविसेसतरा उ वत्थपाएसुं।
लोइयपामिच्चेसुं, लोगुत्तरिया'९ इमे अन्ने ॥ ३२० ॥ १४५. मइलियर फालिय-खोसिय२, हितनटे वावि अन्न मग्गंते।
अवि सुंदरे वि दिण्णे२३, दुक्कररोई२५ कलहमादी ॥ ३२१ ॥
१. वाय (अ, बी)।
१४. कहिते (बी), कहिंति (मु)। २. “त्तमायावगम्मि (अ), होति नियमा खमए १५. संवेया (मु)। आतावतम्मि (निभा ४४८३)।
१६. य कति वा तु (निभा ४४८९)। ३. अह (अ, बी), अहवा (निभा)।
१७. उ (ला, ब, स)। ४. १४३/१-३-ये तीनों गाथाएं १४३ वी गाथा की १८. वत्थमाईसु (अ, बी)।
व्याख्या रूप हैं अतः ये भाष्य की होनी चाहिए। १९. “त्तरिए (अ, बी)। इनको मूल नियुक्ति गाथा के क्रमांक में नहीं २०. १४५ वी गाथा १४४/४ के अंतिम चरण 'लोगुत्तरिया जोड़ा है।
इमे अन्ने' के साथ जुड़ती है अतः भाष्य की ५. सज्झिलमाई (स), सज्झिलगा-भगिनी (मव)। प्रतीत होती है लेकिन यहां ऐसा प्रतीत होता है ६. तु. निभा ४४८६।
कि १४४/१-४-ये चारों गाथाएं भाष्य की होनी ७. पडिपु (ला, ब)।
चाहिए। भाष्यकार ने १४४/४ में नियुक्ति गाथा ८. जीवउ ससाए (बी)।
१४५ के साथ संबंध जोड़ने का प्रयत्न किया है। ९. अच्छिं (ला, ब, स)।
२१. मेलिय (स)। १०. निभा ४४८७, कथा के विस्तार हेतु देखें परि. ३, २२. फोसित (निभा ४४९१), खोलासिय (ला, ब), कथा सं. १९।।
खेलोसिय (स), खोसिते-जीर्णप्राये (म)। ११. नेहवड्डी (अ, बी, स), “नेहवुड्डी (निभा ४४८८)। २३. दण्णे (ला, ब)। १२. एत्ताहे (मु, ब), अप्पा भे (अ, बी)। २४. दुष्कररुचिः (मवृ)। १३. भिक्ख (मु, अ, क, बी), भिक्खादग (स)।
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