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पीठिका
सहसाकार या विस्मृति के कारण कोई प्राणव्यपरोपण नहीं हुआ ६५. पणिधाणजोगजुत्तो, पंचहि समितीहिँ तिहिं य गुत्तीहिं। है फिर भी अगुप्त और असमित होने के कारण उसे प्रतिक्रमण एस उ चरित्तविणओ, अट्ठविहो होति नायव्वो।। प्रायश्चित्त आता है।
पांच समितियों और तीन गुप्तियों के प्रणिधानयोगयदि हिंसा के प्रसंग में अगुप्तित्व अथवा असमित्व होता है चैतसिक स्वास्थ्य से युक्त होना-यह आठ प्रकार का तो तपोर्ह प्रायश्चित्त आता है किंतु तपस्या का दान नहीं दिया। चारित्रविनय जानना चाहिए। जाता। स्थविरकल्पी मुनि यदि हिंसा के प्रसंग में मन से अगुप्त ६६. पडिरूवो खलु विणओ, काय-वइ-मणे तहेव उवयारे । और असमित है तो भी उसे तपः प्रायश्चित्त नहीं आता और जो अट्ठ चउब्विह दुविहो, सत्तविह परूवणा तस्स ।। गच्छनिर्गत हैं-जिनकल्प आदि प्रतिपन्न हैं, वे मन से भी अगुप्त प्रतिरूपविनय के चार प्रकार हैं-कायिक विनय, वाचिक या असमित होते हैं तो उन्हें चतुर्गरुक प्रायश्चित्त आता है। विनय, मानसिक विनय तथा औपचारिक विनय। इनके क्रमशः ६२. पडिरूवग्गहणेणं, विणओ खलु सूइतो चउविगप्पो। आठ, चार, दो और सात भेद हैं। उनकी प्ररूपणा की जा रही है।
नाणे दंसण-चरणे, पडिरूव चउत्थओ होति ।। ६७. अब्भुट्ठाणं अंजलि-आसणदाणं अभिग्गह-किती य।
प्रतिरूप शब्द ग्रहण से चार विकल्प वाला विनय सूचित सुस्सूसणा य अभिगच्छणा य संसाहणा चेव ।। किया गया है। वे चार विकल्प हैं-ज्ञान विनय, दर्शन विनय, कायिक विनय के आठ प्रकारचारित्र विनय और चौथा है प्रतिरूप विनय।
१. गुरु आदि के आने पर अभ्युत्थान करना। ६३. काले विणए बहुमाणे, उवहाणे तहा अनिण्हवणे ।
२. पूछे जाने पर हाथ जोड़ना। वंजण-अत्थ-तदुभए, अट्ठविधो नाणविणओ उ ।।
३. आसन देना। ज्ञान विनय आठ प्रकार का है
४. अभिग्रह-गुरु के वचनों को ग्रहण कर कार्य करना। १. काल विनय ५. अनिलवण-विनय
५. कृति-कृतिकर्म-वंदना करना। २. विनय विनय ६. व्यंजन (सूत्र) विनय
६. सुश्रूषणा-निकटता से उपासना करना। ३. बहुमान विनय ७. अर्थ विनय
७. सामने जाना। ४. उपधान विनय ८. तदुभय विनय।
८. संसाधना-गुरु के साथ जाना, पहुंचाने जाना। ६४. निस्संकिय निक्कंखिय, निव्वितिगिच्छा अमूढदिट्ठी य। ६८. हित-मित-अफरुसभासी, उववूह-थिरीकरणे, वच्छल्लपभावणे अट्ठ ।।।
अणुवीइभासि स वाइओ विणओ। दर्शन विनय आठ प्रकार का है
एतेसिं तु विभागं, १. निःशंकित ५. उपबृंहण
वोच्छामि अहाणुपुव्वीए ।। २. निष्कांक्षित ६. स्थिरीकरण
वाचिक विनय के चार प्रकार३. निर्विचिकित्सा ७. वात्सल्य
१. हितभाषी ३. अपरुषभाषी ४. अमूढ़दृष्टि ८. प्रभावना।
२. मितभाषी ४. अनुवीचिभाषी १. बहुमानो नाम आंतरो भावप्रतिबंधः।
(ड.) उपबृंहण साधार्मिकों के गुणों की प्रशंसा करना। वृत्ति पत्र २५
(च) स्थिरीकरण संयम में अस्थिर व्यक्तियों को स्थिर करना। २. ज्ञानविनय के आठों प्रकार की कथाओं के लिए देंखें--व्यवहारभाष्य (छ) वात्सल्य समान धार्मिकों के प्रति वत्सलता। परिशिष्ट ८
(ज) प्रभावना-प्रवचन की विशेष प्रभावना करने वाले ये दस हैं३. (क) निःशंकित-देशशंका से शून्य-जैसे एक भव्य और दूसरा अभव्य
अतिसेसइड्विधम्मकहि वादी आयरिय खवग नेमित्ति। क्यों ?
विज्जा-राया-गणसम्मया य तित्थं पभावेंति।। सर्वशंका से शून्य-पूरा निग्रंथ प्रवचन कपोल-कल्पित है।
(वृत्ति पत्र २८) (ख) निष्कांक्षित-एकदेश आकांक्षा से शून्य जैसे-दिगम्बर आदि
१. अतिशयज्ञानी
६. क्षपक-तपस्वी दर्शन की आकांक्षा करना अथवा सर्वकांक्षा से शून्य-जैसे
२. ऋद्धिसम्पन्न
७. नैमित्तिक सभी अन्य दर्शनों की आकांक्षा करना।
३. धर्मकथी
८. वियासिद्ध (ग) निर्विचिकित्सा-फल प्राप्ति के प्रति शंका रहित होना।
४. वादी
९. राजसम्मत (घ) अमूढदृष्टि-अन्य तीर्थकों की ऋद्धि आदि को देखकर मूढ़ न
५. आचार्य
१०. गणसम्मत होना-सुलसा श्राविका की भांति।
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