SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५११-३५१७. ३५१८. ३५१९. ३५२०-३५२३. दत्तविचार और अदत्तविचार अवग्रहों में तृण फलक आदि लेने की विधि और निषेध ३५८०-३५८२. अननुज्ञात अवग्रह में रहने के दोष । ३५२४. ३५२५-३५३०. अननुज्ञात अवग्रह का ग्रहण किण कारणों से ? ३५३१-३५३५. वसति स्वामी को अनूकूल करने की विधि | ३५३६-३५५०. लघुस्वक उपधि के प्रकार तथा परिष्ठापित उपधि ग्रहण के दोष एवं प्रायश्चित्त । ३५८३-३५९२. ३५९३. ३५९४. ३५९५. ३५९६,३५९७. ३५५१-३५६१. पथ में विश्राम करने से मिथ्यात्व आदि दोष । ३५६२-३५६५. मार्ग में विश्राम करने का अपवाद मार्ग । ३५६६-३५६८. विश्राम के पश्चात् प्रस्थान के समय सिंहावलोकन, विस्मृत वस्तु को न लाने पर प्रायश्चित्त । ३५६९,३५७०. कैसी वस्तु विस्मृति होने पर न लाए ? ३५७१-३५७९. विस्मृत उपधि की दूसरे मुनियों द्वारा निरीक्षण विधि । प्रातिहारिक तथा सागारिक शय्या संस्तारक को बाहर ले जाने की विधि और प्रायश्चित | (३२) अननुज्ञाप्य संस्तारक के ग्रहण का विधान । अननुज्ञाप्य शय्या संस्तारक ग्रहण करने के दोष तथा प्रायश्चित्त । ३६१६,३६१७. ३६१८,३६१९. ३६२०-३६२५. ३६२६. ३६२७. ३६२८. ३६२९-३६३३. तथा समाधान । ३५९८-३६०३. अनेक मुनियों द्वारा एक ही पात्र रखने के दोष । ३६०४-३६१०. आचार्य आर्यरक्षित द्वारा मात्रक की सकारण Jain Education International विस्मृत उपधि को ग्रहण करने के पश्चात् मुनि क्या करे ? उपधि परिष्ठापन की विधि तथा अनायन विधि | अतिरिक्त पात्र ग्रहण की विधि । उद्देश एवं निर्देश की व्याख्या । प्रमाणोपेत उपकरण धारण का निर्देश । अतिरिक्त पात्र धारण के दोष, शिष्य का प्रश्न अनुज्ञा । ३६११-३६१५. कारण के अभाव में मात्रक प्रयोग का प्रायश्चित्त । अतिरिक्त पात्र ग्रहण के हेतु । अभिग्रहिक मुनि के प्रकार तथा आचार्य द्वारा पात्र लाने का आदेश । अतिरिक्त पात्र ग्रहण के तीन प्रकार । आचार्य द्वारा संविष्ट आभिग्रहिकों की सामाचारी। पात्र प्रतिलेखन । आनीत पात्रों की वितरण विधि । पुराने पात्र ग्रहण करने के अनेक हेतु, पात्र दुर्लभता की कारण नंदी आदि पांच प्रकार के पात्रों के ग्रहण ३६३४. ३६३५. ३६३६. ३६३७-३६४१. ग्लान आदि को पात्र न देने पर प्रायश्चित्त । ३६४२. छह प्रकार के जुंगित । ग्लान आदि को पात्र आदि देने की विधि । पात्र देने वाला सांभोजिक अथवा असांभोजिक प्रश्न तथा उत्तर । ३६५०,३६५१. उपकरण सांभोजिक तथा असांभोजिक कैसे ? ३६५२-३६५४. गच्छनिर्गत मुनि के संवेग प्राप्ति के तीन स्थान । ३६५५-३६५७. अवधावन करने वाले मुनि की सारणा वारणा । ३६५८-३६६४. अवधावित मुनि का पुनः आगमन तथा उपकरण संबंधी निर्देश | अगार लिंग तथा स्वलिंग में अवधावन । आहार की मात्रा का विवेक, जघन्य, उत्कृष्ट मात्रा तथा अमात्य का दृष्टान्त । शिष्यों को उपयुक्त आहार न देने वाले आचार्य । उपयुक्त आहर ग्रहण करने की विधि । सागारिक पिंड संबंधी निर्देश | ३६४३-३६५४. ३६४६-३६४९. ३६६५-३६७९. ३६८०-३६९५. ३६९६-३६९९. ३७०० - ३७०२. ३७०३. ३७०४. ३७०५. ३७१५. ३७१६. ३७१७-३७२०. प्रातिहारी और अप्रातिहारी का वर्णन | ३७०६-३७०८ ३७०९. भद्रक एवं प्रान्त व्यक्ति के चिन्तन में भेद । ३७१०-३७१४. सूत्रों में आज्ञा फिर अर्थ गत निषेध क्यों ? निसृष्ट अप्रातिहारी पिंड पूर्व-संतुस्त एवं पश्चात् संस्तुत आदि का वर्णन । सागारिक दोष एवं प्रसंग दोष से भक्तपान-ग्रहण का निषेध | ३७२१-३७२३. ३७२४-३७३६. ३७३७. ३७३८ - ३७४२. ३७४३ - ३७५७. का निर्देश | पात्र देने वालों के दो प्रकार- एक या अनेक । निर्दिष्ट को पात्र न देने पर प्रायश्चित्त । भिक्षुणी संबंधी निर्देश्य के पांच प्रकार और विभिन्न विकल्प | ३७५८-७५. ३७७६-८८. For Private & Personal Use Only आदेश शब्द की व्याख्या । आदेश, दास और भृतक के पिंड की आठ सूत्रों से मार्गणा । एगचुल्ली आदि का व्याख्या । साधारण शालाओं के भेद एवं उनमें भक्त ग्रहण का निषेध | व्यंजन ग्रहण विषयक सामाचारी । गोरस, गुड़ आदि औषधियों के दो प्रकार । वृक्ष आदि से संबंधित शय्यातर के अवग्रह का विवेक। विभिन्न दृष्टियों से कल्प- अकल्प का विवेचन | प्रतिमाओं (विशेष साधना) के विभिन्न प्रकार और www.jainelibrary.org
SR No.001944
Book TitleSanuwad Vyavharbhasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages492
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G005
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy