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________________ (३१) ३२८३. गृहस्थों द्वारा मुनि के शव का परिष्ठापन, उसके प्रायश्चित्त। दोष और प्रायश्चित्त। ३३९५. सूत्र का प्रवर्तन सकारण, कारण की जिज्ञासा। ३२८४-३२८६. मुनि द्वारा ही मुनि के शव का परिष्ठापन करने का | ३३९६. संस्तारक के लिए तृण ग्रहण करने की विधि। निर्देश। ३३९७,३३९८. जिनकल्पिक और स्थविरकल्पिक के लिए तृणों ३२८७-३२९९. अकेले मुनि द्वारा शव परिष्ठापन की विधि। का परिमाण। ३३००-३३०५. परिष्ठापन की विशेष, विधि एवं प्रायश्चित्त का ग्लान और अनशन किए हुए मुनि के संस्तारक का विधान। स्वरूप। ३३०६. शव को परलिंग क्यों किया जाता है ? ३४०१. अग्लान के लिए तृणमय संस्तारक का वर्जन। शव के उपधिग्रहण की विधि। ३४०२. कल्प और प्रकल्प की व्याख्या। ३३०९-३३४२. अवग्रह विषयक अवधारणा, शय्यातर कब, कैसे? | ३४०३. ऋतुबद्ध काल में तृण ग्रहण करने की यतना। ३३४३. विधवा आदि को शय्यातर बनाने का विधान। ३४०४,३४०५. ऋतुबद्ध काल में फलकग्रहण की यतना और फलक ३३४४. विधवा और धव शब्द का निरुक्त। के पांच प्रकार। ३३४५,३३४६. शय्यातर से संबंधित प्रभु और अप्रभु की व्याख्या। ३४०६. यतना से गृहीत फलक का प्रायश्चित्त। ३३४७,३३४८. शय्यातर की अनुज्ञापना किससे? ३४०७. फलक को उपाश्रय के बाहर से लाने की विधि। ३३४९-३३५३. मार्ग आदि में भी अवग्रह की अनुज्ञापना। वृक्ष ३४०८. गोचराग्र के लिए जाते समय भिक्षा और संस्तारक पडालिका आदि को शय्यातर बनाने का निर्देश। दोनों लाने का निर्देश। ३३५४. राज्यावग्रह का निर्देश। ३४०९. ऋतुबद्ध काल में संस्तारक न लेने पर प्रायश्चित्त । ३३५५,३३५६. संस्तृत, अव्याकृत और अव्यवच्छिन्न की व्याख्या। ३४१०-३४१२. वर्षाकाल में संस्तारक ग्रहण न करने पर प्रायश्चित्त ३३५७,३३५८. पूर्वानुज्ञान अवग्रह का कालमान। और उसके कारण। ३३५९. भिक्षुभाव की व्याख्या। ३४१३. वर्षाकाल में फलक-संस्तारक ग्रहण की विधि। ३३६०-३३६२. राजा के कालगत होने पर अनुज्ञापना किसको ? | ३४१४-३४७३. वर्षाकाल में फलक के ग्रहण, अनुज्ञापना आदि पांच ३३६३-३३६५. भद्रक को अनुज्ञापित करने पर राजा का दातव्य द्वारों का विस्तृत वर्णन। संबंधी प्रश्न और उत्तर। ३४७४,३४७५. वृद्धावास योग्य संस्तारक का कथन और उसका ३३६६. प्रायोग्य का स्वरूप कथन। कालमान। ३३६७. भद्रक द्वारा दीक्षा की अनुज्ञा का निषेध। ३४७६. सहाय रहित वृद्ध की सामाचारी। ३३६८. राजा को अनुज्ञापित किए बिना देश छोड़ने पर ३४७७-३४८१. दंड, विदंड आदि पदों की व्याख्या और उनका प्रायश्चित्त। उपयोग। ३३६९. देश छोड़ने के उपायों का निर्देश। ३४८२. दंड आदि उपकरणों की स्थापना विधि। ३३७०-७७. प्रव्रज्या के लिए अनुज्ञा-अननुज्ञा का कथन। ३४८३. दंड आदि के स्थापना संबंधी शिष्य का प्रश्न और ३३७८-८१. राजा को अनुकूल बनाने का विधान । आचार्य का उत्तर। ३३८२. साधर्मिक उवग्रह का कथन। ३४८४-३४८८. अतिवृद्ध मुनि का उपकरणों को रखकर भिक्षा के ३३८३. गृह शब्द के एकार्थक और साधर्मिक अवग्रह के लिए जाने का कारण और यतना का निर्देश। भेद। ३४८९-३४९१. मार्ग में स्थविर के भटक जाने पर अन्वेषण-विधि। ३३८४. गृह के तीन प्रकार। ३४९२-३४९४. स्थविर द्वारा खोज की अन्य विधि में उपकरणों की ३३८५. शिष्य द्वारा शय्यासंस्तारक भूमी के लिए गुरु को स्थापना करने के वर्जनीय स्थानों का निर्देश । निवेदन। ३४९५. उपकरणों को स्थापित करने के स्थानों का निर्देश। ३३८६,३३८७. आचार्य द्वारा उस याचित भूमी की स्वीकृति। ३४९६-३५०५. लोहकार आदि ध्रुवकर्मिक को उपकरण संभलाने ऋतुबद्धकाल, वर्षावास और वृद्धावास के योग्य तथा उसके नकारने पर उपधि प्राप्त करने की विधि। शय्या-संस्तारक। ३५०६-३५०८. शून्यगृह में आहार करने की विधि। ३३८९-३३९४. संस्तारक के विविध, विकल्प, उनकी व्याख्या और | ३५०९,३५१०. अवग्रह का अनुज्ञापन तथा अनुज्ञापक। ३३८८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001944
Book TitleSanuwad Vyavharbhasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages492
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G005
File Size14 MB
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