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________________ ३०१९. ३०२०,३०२१. ३०२२,३०२३. ३०२४,३०२५. ३०२६. ३०२७. ३०३४-३०४४. ३०४५-३०४७. ३०२८-३०३१.. द्रव्य और भाव विष का कथन । ३०३२,३०३३. श्रमण- श्रमणिओं को स्वपक्ष में ही वाचना देने का निर्देश | स्वाध्यायकरण काल तथा स्वपक्ष-परपक्ष की उद्देशन विधि और उपवाद। साध्वी का साधु की निश्रा में स्वाध्याय करने के गुण-दोष । ३०४८. ज्ञान और चारित्र के बिना दीक्षा निरर्थक । ३०४९,३०५०. विशुद्धि के अभाव में चारित्र का अभाव। ३०५१-३०५३. ज्ञान दर्शन- चारित्र की आराधना के लिए साध्वियों को पढ़ाने का निर्देश | ३०५४,३०५५. अप्रशस्त भाव से दिए जाने वाले प्रवाचना के दोष । ३०५६-३०५८. साधु साध्वी को प्रवाचना कब दे ? ३०५९,३०६०. मुनि और साध्वी की परीक्षा के बिंदु । ३०६१-३०७७. परीक्षा न करने पर होने वाले दोष और उसका प्रायश्चित्त सूत्र देवताधिष्ठित क्यों? विद्याचक्रवर्ती का यत्किंचित् कथन विद्या क्यों? दृष्टान्त और उपनय । जिनेश्वर की वाणी के आठ गुण। अकाल में अंग पढने का निषेध । अकाल में आवश्यक का निषेध क्यों नहीं ? अकाल में स्वाध्याय के दोष । ३१०५-३१०९. (३०) ३०७८-८२. वाचना के लिए योग्य साध्वी का स्वरूप- कथन । ३०८३,३०८४. भार्या साध्वी आदि को वाचना देने का निषेध । ३०८५-३०९३.. कौन किसको वाचना दे ? तथा वाचना की द्रव्य आदि से यतना । गणधर साध्वियों को वाचना देते समय कैसे बैठे? वाचना किनको न दे ? उपाध्याय भी स्थविर की सन्निधि में वाचना दे। वाचना के समय साध्वियां कैसे बैठें ? स्वाध्याय काल में स्वाध्याय करने का निर्देश । Jain Education International ३०९४,३०९५. ३०९६. ३०९७. ३०९८,३०९९. ३१००. ३१०१,३१०२. अस्वाध्याय के भेद-प्रभेद तथा दोष । ३१०३,३१०४. अस्वाध्यायिक में स्वाध्याय करने के दोष तथा राजा का दृष्टान्त । अस्वाध्याय काल में स्वाध्याय करने के हेतु उससे होने वाले दोष तथा पांच पुरुषों का दृष्टान्त । ३११०-३११३. संयमोपघाती अस्वाध्यायिक का निरूपण, ३११४-३११६. औत्पातिक अस्वाध्यायिक का निरूपण । ३११७-३१२४. देव सम्बन्धी अस्वाध्यायिक का निरूपण । ३१२५-३१३०. व्युद्ग्रह संबंधी अस्वाध्यायिक का निरूपण । ३१३१-३१५२. औदारिक शरीर संबंधी अस्वाध्यायिक के भेदप्रभेद । ३१५३-३१५६. स्वाध्याय काल में स्वाध्याय करने का निर्देश तथा कालग्रहण की सामाचारी । ३१५७,३१५८. ३१५९. ३१६०,३१६१. ३१६२-३१८७. ३१९४-३२१४. ३२१५-३२२१. ३१८८-३१९३. प्रादोषिक कालग्रहण कर गुरु के पास आने की विधि और गुरु को निवेदन काल चतुष्क की उपघात विधि । स्वाध्याय की प्रस्थापन विधि । अस्वाध्यायिक में स्वाध्याय करने का निषेध किन्तु वाचना की अनुमति | आत्मसमुत्थ 'अस्वाध्यायिक के भेद और उसकी ३२२२. ३२२३-३२२७. ३२२८,३२२९. ३२३०-३२३३. ३२३४-३२३९. ३२४०-३२४२. ३२४३,३२४४. ३२४५-३२५२. ३२५३. ३२५४-३२५७. ३२५८,३२५९. ३२६०,३२६१. ३२६२-३२६४. काल प्रत्युपेक्षण की २४ भूमियां काल की तीन भूमियों के प्रत्युपेक्षण का निर्देश दैवसिक अतिचार का चिन्तन | आवश्यक के बाद तीन स्तुति करने का निर्देश और तदन्तर काल प्रत्युपेक्षणा की विधि । For Private & Personal Use Only यतना । अस्वाध्यायिक में स्वाध्याय करने से दोष । शरीरगत रक्त का अस्वाध्यायिक क्यों नहीं? शिष्य का प्रश्न और आचार्य का उत्तर | राग, द्वेष, मोहवश अस्वाध्यायिक में स्वाध्याय करने के दोष । साधु एवं साध्वी के परस्पर वाचना देने का प्रयोजन एवं दीक्षा पर्याय का कालमान। आचार्य, उपाध्याय और प्रवर्तिनी का संग्रह क्यों ? साध्वियों के अवश्य संग्रह का निर्देश तथा अनेक दृष्टान्तों द्वारा समर्थन | जरापाक मुनि की व्याख्या । मृत साधु की परिष्ठापन विधि तथा उपकरणों का समर्पण | मृत परिष्ठापन में स्थण्डिल की प्रत्युपेक्षणा। प्रत्युपेक्षण न करने के दोष और प्रायश्चित्त । स्थण्डिल में परिष्ठापन के दोष । ३२६५,३२६६. मृत के लिए वस्त्रों का विवेक । ३२६७-३२७३. मृत के परिष्ठापन में दिशा का विवेक। ३२७४-३२७६. परिष्ठापन करने योग्य स्थण्डिल का निर्देश । श्माशन में परिष्ठापन की विधि । ३२७७-३२७९. ३२८०-३२८२. सात से कम मुनि होने पर परिष्ठापन की विधि | www.jainelibrary.org
SR No.001944
Book TitleSanuwad Vyavharbhasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages492
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G005
File Size14 MB
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