SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 256
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौथा उद्देशक जैसे कोई भूख से पीड़ित व्यक्ति आकाश (वायु) से पेट भरता है वैसे ही प्रतिषिद्ध काल में उत्पादित अवग्रह अवग्रह नहीं होता क्योंकि वह प्रतिषिद्धकालाचीर्ण है अथवा कालविक में अवग्रह अनुज्ञात है - ग्रीष्म ऋतु का चरम मास अर्थात् आषाढ़ मास में जहां रह चुके हों और अन्य क्षेत्र के अभाव में वहीं वर्षावास करते हैं तो दोनों कालों-ग्रीष्म के चरममास में और वर्षावास के पहले मास में अवग्रह अनुज्ञात है। २३०३. एमेव व समतीते, वासे तिण्णि दसगा उ उक्कोसं । वासनिमित्तठिताणं, उम्गह छम्मास उक्कोसा ॥ इसी प्रकार वर्षाकाल अतीत हो जाने पर, यदि वर्षा होती रहती है तो उत्कृष्टतः तीन दशक दिनों तक वहां रहा जा सकता है। वर्षा के निमित्त रहने वालों का उत्कृष्ट अवग्रह छह मास का हो जाता है। (आषाढ़ से मृगशिर तक । ) Jain Education International चौथा उद्देशक समाप्त For Private & Personal Use Only २१७ www.jainelibrary.org
SR No.001944
Book TitleSanuwad Vyavharbhasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages492
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G005
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy