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धर्म का यह साक्षात् फल दीख रहा है। हम भी धर्म में उद्यम करें। इस प्रकार महान् और अल्प ऋद्धि में भी आसक्ति होती है। इसलिए प्रायश्चित्त में नानात्व है।
१२५७. खेत्ते निवपधनगरद्दारे उज्जाणं परेण सीमतिक्कंते ।
पणगादी जा लहुगो, एतेसु उ सन्नियत्तंते ॥ क्षेत्र संबंधी मर्यादा और प्रायश्चित्त वह उत्प्रव्रजित मुनि यदि राजमार्ग से लौट आता है तो प्रायश्चित्त है पांच रात-दिन, नगर द्वार से लौट आने पर दस रात-दिन, उद्यान से लौट आने पर १५ दिन-रात, सीमा से पहले लौट आने पर २० अहोरात्र, सीमा से लौट आने पर भिन्नमास और सीमा का अतिक्रमण कर लौट आने पर मासलघु का प्रायश्चित्त विहित है। १२५८. पढमविणनियत्तंते, लहुओ वसहि सपदं भवे काले ।
संजोगो पुण एत्तो, दव्वे खेत्ते य काले य ॥ काल संबंधी शोध उत्प्रवजित मुनि यदि पहले दिन निवर्तित हो जाता है तो लघुमास का प्रायश्चित्त आता है। इसी प्रकार दस दिनों में लौटने पर क्रमशः स्वपद दसवां प्रायश्चित्त प्राप्त होता है । यह काल विषयक शोधि है। अब आगे द्रव्य, क्षेत्र और काल के साथ जो संयोग है वह कहूंगा।
१२५९. दव्वस्स य खेत्तस्स य, संजोगे होति सा झ्मा सोधी । रायाणं रायपधे, द जा सीमतिक्कंते ॥ १२६०. पणगादी जा मासो, जुवरायं निवपचादि दहूणं । दसराईदिवमादी, मासगुरू होति अंतम्मि ॥ द्रव्य और क्षेत्र के संयोग में यह विशोधि होती है। राजा आदि को राजपथ पर देखकर निवृत्त होने पर पांच रात-दिन का प्रायश्चित्त यावत् सीमातिक्रांत पर निवृत्त होने पर क्रमशः मासलघु
प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। युवराज को राजपथ आदि पर देखकर निवृत्त होने पर दस रात दिन से लेकर यावत् क्रमशः अंत में मासगुरु का प्रायश्चित्त प्राप्त होता है।
१२६१. सचिवे पण्णरसादी, लहुगं तं बीसमादि उ पुरोधे ।
अंतम्मि उ चउगुरुगं, कुमार भिन्नादि जा छ तू ॥ सचिव- अमात्य को राजपथ आदि में देखकर निवृत्त होने पर १५ दिन-रात के प्रायश्चित्त से क्रमशः चार लघुमास पर्यंत प्रायश्चित्त पुरोहित से संबंधित के लिए बीस दिन रात से अंत में चतुर्गुरुमासपर्यंत । कुमार को देखकर निवृत्त होने पर मास से प्रारंभ कर यावत् क्रमशः षट्लघुमास पर्यंत । १२६२. कुलपुत्ते मासादी, छग्गुरुगं होति अंतिमं ठाण । एत्तो उ दव्वकाले, संजोगमिमं तु वोच्छामि ॥
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१. दूसरे दिन निवर्तित होने पर मासगुरु, तीसरे दिन चर्तुमास लघु, चौथे दिन चतुर्मास गुरु, पांचवें दिन छहमास लघु, छठे दिन छहमास गुरु,
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सानुवाद व्यवहारभाष्य
कुलपुत्र को देखकर निवृत्त होने पर मासलघु प्रायश्चित्त क्रमशः अंतिम स्थान छह गुरुमास तक होता है। अब आगे द्रव्य और काल के संयोग से होने वाली विशोधि कहूंगा। १२६३. रायणं तद्दिवसं वगुण नियति होति मासलहुँ। दसदिवसेहिं सपदं, जुवरण्णादी अतो वोच्छं । राजा को देखकर उसी दिन प्रतिनिवर्तन करने पर मासलघु. क्रमशः वस दिनों में आने पर स्वपद से दसवां प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। अब युवराज आदि के संबंध में बताऊंगा | १२६४. मासगुरू चउलहुया, चउगुरु-छल्लहू छम्गुरुगमादी ।
नवहिं अहि सत्तहि, छहि पंचहि चेव चरमपदं ॥ इसी प्रकार युवराज, अमात्य, पुरोहित, कुमार और कुलपुत्र को देखकर उसी दिन निवर्तन करने पर यथाक्रम मासगुरु, चतुर्लघु, चतुर्गुरु षट्लघु तथा घट्गुरुमास का प्रायश्चित आता है तथा यथाक्रम नौ, आठ, सात, छह और पांच दिनों के अंतराल से निवृत्त होने पर चरमपद अर्थात् पारांचित प्रायश्चित्त प्राप्त होता
१२६५. इति दव्व खेत्त काले,
भणिता सोधी उ भाव इणमण्णा । दंडिग भूणग संकंत,
विवण्णे भुंजणे दोसु ॥
इस प्रकार द्रव्य, क्षेत्र और काल के आधार पर शोधिका कथन किया, अब इनसे भिन्न भावतः शोधि का कथन इस प्रकार है। दंडित, भूणक (राजपुत्र), संक्रांत, पत्नी के मरने पर, दो पुरुषों या स्त्रियों के साथ भोजन करना - भावतः शोधि है। (इनका विवरण अगली गाथाओं में ।)
१२६६. दंडित सो उ नियत्ते, पुत्तादि मते व चउलहु होंति । संकंत मताए मताए वा, भोईए चउगुरू होंति ॥ १२६७. अह पुण मुंजेज्जाही, दोहि तु वम्गेहि तत्थ समगं तु । इत्थीहिं पुरिसेहिं व, तहिं य आरोवणा इणमा ॥ उत्प्रव्रजन कर जिनके लिए वह प्रस्थित हुआ है, वह सुनता है कि उसके कुछ मनुष्य राजा द्वारा दंडित हुए हैं अथवा पुत्र आदि मृत्यु को प्राप्त हो गए है। यह सुनकर वह निवर्तन करता है तो उसका प्रायश्चित्त है चार लघुमास । पत्नी अन्य पुरुष के साथ चली गई है अथवा मर गई है - यह सुनकर निवर्तन करने पर प्रायश्चित्त है चार गुरुमास वहां जाकर वह यदि दोनों वर्गों स्त्रीवर्ग और पुरुषवर्ग के साथ भोजन करता है तो उसे यह आरोपणा प्रायश्चित्त प्राप्त होता है ।
सातवें दिन छेद, आठवें दिन मूल, नौवें दिन अनवस्थाप्य और दसवें दिन पारांचित ।
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