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________________ दूसरा उद्देशक ११४८. रूवंगिं दट्टणं, उम्मादो अहव पित्तमुच्छाए। उपसर्ग के तीन प्रकार हैं-दिव्य, मानुषिक और तैरश्च। कह रूवं दट्टणं, हवेज्ज उम्मायपत्तो तु॥ दिव्य उपसर्ग के विषय में पहले कहा जा चुका है। मानुषिक और किसी रूपांगी रमणी को देखकर उन्माद होता है अथवा तैरश्च उपसर्ग के विषय में आगे कहूंगा। पित्तमूर्छा से उन्माद होता है। रूप को देखकर कोई कैसे ११५५. विज्जाए मंतेण व, चुण्णण व जोइतो अणप्पवसो। उन्मादप्राप्त होता है यह शिष्य ने पूछा। आचार्य कहते हैं __ अणुसासणा लिहावण, खमगे महुरा तिरिक्खादी। ११४९. दह्रण नडिं कोई, उत्तरवेउब्वियं मयणमत्तो। जो मुनि विद्या से अथवा मंत्र से अथवा चूर्ण से संयोजित तेणेव य रूवेण उ, उड्डम्मि कतम्मि निविण्णो॥ होने पर अनात्मवश हो गया है तो उसके प्रति अनुशासना-यतना कोई एक उत्तरवैकुर्विक-अत्यंत सजीधजी अलंकृत नटनी है। आलेखित किया जाता है। क्षपक मथुरा में। तिर्यंचों का उपसर्ग। को देखकर उन्मत्त हो गया। उसी नटनी को स्वाभाविक रूप में (व्याख्या आगे) प्रस्तुत करने पर, उसे देखकर वह उससे विरक्त हो जाता है। ११५६. विज्जा मंते चुण्णे, अभिजोइय बोहिगादिगहिते वा। उसका उन्माद समाप्त हो जाता है। अणुसासणा लिहावण, महुरा खमगादि व बलेण॥ ११५०. पण्णविता य विरूवा, उम्मंडिज्जंति तस्य पुरतो तु। विद्या, मंत्र अथवा चूर्ण से अभियोजित होने पर अथवा रूववतीय तु भत्तं, तं दिज्जति जेण छड्डेति॥ बोधिक चारों से गृहीत होने पर पूर्ववत् अनुशासना करनी चाहिए। कोई नटी विरूप होती है। उसे पहले ही प्रज्ञापित कर दिया कुत्ती की योनि का आलेखन कर दिखाने से विराग होता है। चोरों जाता है। उसको मंडित अवस्था में देखकर जो उन्मत्त हुआ था, द्वारा गृहीत होने पर मथुरा में क्षपक की भांति बलप्रयोग से उसके समक्ष उस के सारे मंडन निकाल दिए जाते हैं। उसकी निवारण करना चाहिए। विरूपता को देखकर उस व्यक्ति का उन्माद मिट जाता है। यदि ११५७. विज्जादऽभिजोगो पुण, वह नटी स्वभावतः रूपवती है तो उसे भक्त-मदनफल मिश्रित दुविहो माणुस्सिओ य दिव्वो य। आदि पेय दिया जाता है। उससे उसे वमन होता है। यह देखकर तं पुण जाणंति कधं, उन्मत्त का उन्माद अपसृत हो जाता है। जदि नाम गिण्हते तेसिं॥ ११५१. गुज्झंगम्मि उ वियर्ड, पज्जावेऊण खडियमादीणं। विद्या आदि का अभियोग दो प्रकार का होता है-मानुषिक तद्दायणा विरागो, होज्ज जधासाढभूतिस्स॥ और दैविक। इसको कैसे जाना जाता है ? वह उन्मत्त व्यक्ति देव यदि किसी को स्त्री के गुह्यांग विषयक उन्माद हो तो स्त्री और मनुष्य के बीच जिसका नाम ग्रहण करता है, कहता है, उसे को क्षरक आदि का मद्य पिलाकर सुला दी जाए। उसके मुंह की विद्या आदि का अभियोगकर्ता जानना चाहिए। लार से उसका सारा शरीर खरंटित हो जाता है। तब उस उन्मत ११५८. अणुसासितम्मि अठिते, विद्देसं देंति तह वि य अठंते। को लाकर उसका बीभत्सरूप दिखाया जाता है। उसे देखकर ___ जक्खीए कोवीणं, तस्स उ पुरतो लिहार्वेति॥ विराग हो जाता है। जैसे आषाढभूति को हुआ था। अनुशासित करने पर भी उन्माद नहीं मिटता है तो विद्वेष ११५२. वाते अब्भंगसिणेहपज्जणादी तहा निवाते य।। उत्पन्न करते हैं। यदि उससे भी परिहार न होने पर यक्षिणी की ___सक्करखीरादीहि य, पित्ततिगिच्छा उ कातव्वा॥ योनि को विद्या के प्रयोग से उसके सम्मुख आलेखित किया वायु के निमित्त होने वाले उन्माद में शरीर पर तैल का जाता है। उसकी योनि को देखकर वह विरक्त हो जाता है। मर्दन किया जाता है तथा स्नेह-घृतपान कराया जाता है तथा उसे ११५९. विसस्स विसमेवेह, ओसधं अग्गिमग्गिणो। निवातगृह में बिठाया जाता है। पित्त के निमित्त से होने वाले मंतस्स पडिमंतो उ, दुज्जणस्स विवज्जणा॥ उन्माद में शर्करा, क्षीर आदि से उसकी चिकित्सा करनी चाहिए। विष की औषधि विष ही है। अग्नि का अग्नि और मंत्र का ११५३. मोहेण पित्ततो वा, आयासंचेयओ समक्खातो। प्रतिमंत्र प्रतिकार है तथा दुर्जन का प्रतिकार है उसका परित्याग। एसो उ उवस्सग्गो, इमो तु अण्णो परसमुत्थो॥ ११६०. जदि पुण होज्ज गिलाणो, मोह के उदय से अथवा पित्त के कारण जो उपसर्ग होता है निरुज्झमाणो ततो सि तेगिच्छं। उसे आत्मसंचेतित अर्थात् आत्मा के द्वारा आत्मा को किया हुआ संवरितमसंवरिता, उपसर्ग कहा गया है। यह दूसरा पर-समुत्थ उपसर्ग है। उवालभंते निसिं वसभा।। ११५४. तिविहे य उवस्सग्गे, दिव्वे माणुस्सए तिरिक्खे य। यदि विद्या आदि से अभियोजित मुनि उसके सम्मुख जाता दिव्वो उ पुव्वभणितो, माणुस-तिरिए अतो वोच्छं। हुआ निरुद्ध होता है तो वह ग्लान हो जाता है। उस मुनि की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001944
Book TitleSanuwad Vyavharbhasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages492
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G005
File Size14 MB
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