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________________ पहला उद्देशक प्रवर्तिनी, अभिषेका (प्रवर्तिनी पदयोग्य), भिक्षुणी, क्षुल्लिका अर्थात् अविमृश्यकारी प्रवृत्ति नहीं करते। और स्थविरा-इन पांचों प्रकार की साध्वियों का संयोगगम-संयोग इसी प्रकार भ्रंशन-संयम से च्युत करने के प्रसंग में भी से होने वाला विकल्प बताऊंगा। भिक्षुक आदि का यही क्रम जान लेना चाहिए। भिक्षुक उदीविद ७२५. तरुणी निप्फन्नपरिवारा, वाला भी हो सकता है, इसलिए नानात्व है। सलद्धिया जा य होति अब्भासे। ७३१.भिक्खुणी खुड्डी थेरी, अभिसेगा य पवत्तिणी चेव। अभिसेयाणं चउरो, करणं तासिं इणमो, संजोगगमं. तु वोच्छामि। सेसाणं पंच चेव गमा ॥ भिक्षुणी, क्षुल्लिका, स्थविरा, अभिषेका तथा प्रवर्तिनीप्रवर्तिनी के ये पांच विकल्प-तरुणी, निष्पन्न, सपरिवारा, इनका निस्तारक्रम के योगगम मैं कहूंगा। लब्धिसंपन्ना तथा निकट। अभिषेका के निष्पन्नरहित चार गम ७३२. तरुणी निप्पफन्नपरिवारा, तथा शेष के पांच-पांच गम होते हैं। (साधु-साध्वी-दोनों वर्गों के सलद्धिया जा य होति अब्भासे। निस्तारण की विधि) अभिसेयाए चउरो, ७२६. आयरिय गणिणि वसभे,कमसो गहणं तहेव अभिसेया। सेसाणं पंच चेव गमा।। सेसाण पुव्वमित्थी, मीसगकरणे कमो एस॥ तरुणी, निष्पन्ना, सपरिवारा, सलिब्धका तथा निकट-ये आचार्य और प्रवर्तिनी के मध्य पहले आचार्य का फिर पांच गम साध्वी के हैं। अभिषेका साध्वी के गम निष्पन्ना के प्रवर्तिनी का और प्रवर्तिनी और ऋषभ के मध्य पहले प्रवर्तिनी अतिरिक्त चार गम तथा शेष के पांचों गम होते हैं। का फिर ऋषभ का। अभिषेक और अभिषेका के मध्य पहले ७३३. पंतावणमीसाणं, दोण्हं वग्गाण होति करणं तु। अभिषेक का और पश्चात् अभिषेका का। शेष में पहले स्त्री पुव्वं तु संजतीणं, पच्छा पुण संजताण भवे॥ पश्चात् पुरुष। मिश्रकरण अर्थात् साधु-साध्वी के मध्य निस्तारण जहां पंतावण-पिट्टण का प्रसंग हो और मिश्रकवर्ग-साधुका यह क्रम है। साध्वी दोनों हो तो पहले भिक्षुणी वर्ग का निस्तारकरण फिर ७२७. भिक्खू खुड्डग थेरे, अभिसेगे चेव तध य आयरिए। भिक्षुक वर्ग का निस्तारकरण करना चाहिए। (जैसे-भिक्षु और गहणं तेसिं इणमो, संजोगगमं तु वोच्छामि॥ भिक्षुणी में पहले भिक्षुणी, क्षुल्लक और क्षुल्लिका में पहले भिक्षु, क्षुल्लक, स्थविर, अभिषेक तथा आचार्य-इन पांचों क्षुल्लिका, स्थविर और स्थविरा में पहले स्थविरा, अभिषेक और के निस्तारकरण के संयोगगम मैं कहूंगा। अभिषेका में पहले अभिषेका तथा आचार्य और प्रवर्तिनी में पहले ७२८. तरुणे निप्फन्नपरिवारे, सलद्धिए जे य होति अब्भासे। प्रवर्तिनी का।) __ अभिसेयम्मि य चउरो, सेसाणं पंच चेव गमा॥ ७३४. भिक्खू खुड्डे थेरे, अभिसेगायरिय संजमे पडुप्पन्ने । तरुण, निष्पन्न, सपरिवार, सलब्धिक तथा निकट-ये पांच करणे तेसिं इणमो, संजोगगमं तु वोच्छामि।। गम भिक्षु के हैं। अभिषेक के चार गम तथा शेष-क्षुल्लक, स्थविर संयम में वर्तमान भिक्षु, क्षुल्लक, स्थविर, अभिषेक और तथा आचार्य के गम भिक्षु की भांति पांच-पांच हैं। आचार्य-इनके संयमच्यावन से निस्तारणकरण का यह संयोगगम ७२९. असहंते पच्चत्तरणम्मी मा होज्ज सव्वपत्थारो। कहूंगा। खुड्डो भीरऽणुकंपो, असहो घातस्स थेरो य॥ ७३५. तरुणे निप्फन्नपरिवारे, सलद्धिए जे य होति अब्भासे। ७३०. गणि आयरिया उ सहू, देहवियोगे तु साहस विवज्जी। । अभिसेयम्मि य चउरो, सेसाणं पंच चेव गमा।। एमेव भंसणम्मि वि, उदिण्णवेदो त्ति नाणत्तं॥ तरुण, निष्पन्न, सपरिवार, सलब्धिक तथा जो निकट हैं-ये राजा द्वारा पिट्टन के प्रसंग में भिक्षुक के क्रम का कारण राजा पांच गम हैं। अभिषेक के चार तथा शेष चार के पांच-पांच गम द्वारा पीटे जाने पर कुछेक भिक्षु उसको सहन न करते हुए हैं। प्रत्यास्तरण-सामने होकर लड़ने लग जाते हैं। इससे राजा रुष्ट ७३६. अपरिणतो सो जम्हा, अन्नं भावं वएज्ज तो पुव्विं। जा जाता है और तब सर्वप्रस्तार अर्थात् समस्त संघ उपद्रवग्रस्त अपरीणामो अधवा, न वि नज्जति किंचि काहीइ॥ हो सकता है। ऐसा न हो, इसलिए पहले भिक्षुक का ग्रहण किया जो भिक्षु संयम से अपरिणत होकर अन्यभाव अर्थात् गया है। क्षुल्लक भिरू और अनुकंप्य होता है। स्थविर घात- उत्प्रव्रजन करना चाहता है उसे पहले उत्प्रव्रजन कराए। अथवा प्रहार को सहन नहीं कर सकता। गणी और आचार्य घात को यह स्पष्ट ज्ञात नहीं हो पाता कि यह अपरिणत होकर कुछ भी कर सहन करने में समर्थ होते हैं। वे देहवियोग होने पर भी साहसविवर्जी सकता है, जिससे पूरा संघ उपद्रवग्रस्त हो जाए। इसलिए उसका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001944
Book TitleSanuwad Vyavharbhasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages492
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G005
File Size14 MB
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