SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 37 रूप हैं। इन सभी के प्राकृत रूप कमलिआअ, कमलिआइ और कमलिआए होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-१७७ से मूल संस्कृत रूप 'कमलिका' में स्थित द्वितीय 'क' का लोप और ३-२९ से संस्कृत तृतीया विभक्ति के एकवचन में प्रातव्य प्रत्यय 'टा' के स्थान पर; षष्ठी विभिक्ति के एकवचन में प्रातव्य प्रत्यय 'ङस्' के स्थान पर और सप्तमी विभक्ति के एकवचन में प्रत्यय 'ङि' के स्थान पर क्रमशः 'अ-इ-ए' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर प्रत्येक के तीन-तीन रूप'कमलिआअ, . कमलिआइ और कमलिआए' सिद्ध हो जाते हैं। बुद्ध्या संस्कृत तृतीयान्त एकवचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप बुद्धीअ, बुद्धीआ, बुद्धीइ और बुद्धीए होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या ३-२९ से संस्कृत तृतीया विभक्ति के एकवचन में प्रातव्य प्रत्यय 'टा' के स्थान पर प्राकृत में अ-आ-इ-ए' प्रत्ययों को क्रम से प्राप्ति एवं इसी सूत्र से अन्त्य हस्व स्वर 'इ' को दीर्घ स्वर 'ई' की प्राप्ति होकर क्रम से चारों रूप बुद्धीअ, बुद्धीआ, बुद्धीइ और बुद्धीए सिद्ध हो जाते हैं। बुद्ध्याः संस्कृत षठ्यन्त एकवचन का रूप है इसके प्राकृत रूप बुद्धीअ, बुद्धीआ, बुद्धीइ और बुद्धीए होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या ३-२९ से संस्कृत षष्ठी विभक्ति के एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'ङस्' के स्थान पर प्राकृत में 'अ-आ-इ-ए' प्रत्ययों की क्रम से प्राप्ति और इसी सूत्र से अन्त्य स्वर 'इ' को 'ई' की प्राप्ति होकर क्रम से चारों रूप बुद्धीअ बुद्धीआ, बुद्धीइ और बुद्धीए सिद्ध हो जाते हैं। बुद्धयाम् संस्कृत सप्तम्यन्त एकवचन रूप हैं। इसके प्राकृत रूप बुद्धीअ, बुद्धीआ, बुद्धीइ और बुद्धीए होते हैं। इनकी साधनिका भी सूत्र-संख्या ३-२९ से ही उपर्युक्त रीति से होकर चारों रूप क्रम से बुद्धीअ, बुद्धीआ, बुद्धीइ और बुद्धीए सिद्ध हो जाते हैं। 'कयं रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१२६ में की गई है। विभवः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप विहवो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१८७ से 'भ' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'सि' के स्थान पर अकारान्त पुल्लिंग में 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर विहवो रूप सिद्ध हो जाता है। . "ठिअंरूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-१६ में की गई है। 'वा' (अव्यय) रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-६७ में की गई है। सख्या संस्कृत तृतीयान्त एकवचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप सही, सहीआ, सहीइ और सहीए होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-१८७ से मूल संस्कृत रूप 'सखी' में स्थित 'ख' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति होकर ३-२९ से संस्कृत तृतीया विभक्ति के एकवचन में प्रातव्य प्रत्यय 'टा' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से- 'अ-आ-इ-ए' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर क्रम से चारों रूप 'सहीअ, सहीआ, सहीइ और सहीए' सिद्ध हो जाते हैं। सख्याः संस्कृत षष्ठ्यन्त एकवचन रूप है। इसके प्राकृत रूप सहीअ, सहीआ, सहीइ और सहीए होते हैं। इनमें 'सही' रूप की साधनिका उपर्युक्त रीति से और ३-२९ से संस्कृत षष्ठ्यन्त एकवचन में प्रातव्य प्रत्यय 'ङस्' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से 'अ-आ-इ-ए' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर क्रम से चारों रूप 'सहीअ, सहीआ, सहीइ और सहीए' सिद्ध हो जाते हैं। 'कयं रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१२६ में की गई है। 'वयणं' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२२८ में की गई है। "ठिअं रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-१६ में की गई है। धेन्वा संस्कृत तृतीयान्त एकवचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप धेणूअ, धेणूआ, धेणूइ और धेणूए होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-२२८ से मूल संस्कृत शब्द 'धेनु' में स्थित 'न्' के स्थान पर 'ण' की प्राप्ति; ३-२९ से संस्कृत तृतीया विभक्ति के एकवचन में प्रातव्य प्रत्यय 'टा' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से 'अ-आ-इ-ए' प्रत्ययों की प्राप्ति और इसी For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy