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________________ 36 : प्राकृत व्याकरण करना पड़ा है। जैसे पुल्लिंग शब्द का उदाहरण इस प्रकार है:- तृतीया विभक्ति के एकवचन में 'वच्छेण'; पंचमी विभक्ति के एकवचन में 'वच्छाओ; षष्ठी विभक्ति 'एकवचन में 'वच्छस्स' और सप्तमी विभक्ति के एकवचन में 'वच्छम्मि' होता है। न कि स्त्रीलिंग वाले शब्दों के समान 'वच्छाअ-वच्छाआ-वच्छाइ - वच्छाएं रूपों की रचना होती है। यही रहस्य वृत्ति के प्रारम्भ में उल्लिखित 'स्त्रियां' शब्द से जानना । प्रश्न:- मूल सूत्र में 'टा - ङस् - - ङि ङसि ' ऐसा क्यों लिखा गया है? उत्तर : 'अ-आ-इ-ए' ऐसी आदेश - प्राप्ति केवल 'टा- ङस् - ङि ङसि' के स्थान पर ही होती है; अन्य प्रत्ययों के स्थान पर 'अ-आ-इ-ए' आदेश प्राप्ति नहीं होती है; ऐसा सुनिश्चित विधान प्रदर्शित करने के लिए ही सूत्र में 'टा-ङस्-ङि-ङसि' का उल्लेख करना आवश्यक समझा गया है। इसके समर्थन में उदाहरण इस प्रकार हैं:- मुग्धा मुद्धा; बुद्धि: - बुद्धी; सखी -सही; धेनुः धेणू और वधूः = वहू । इन उदाहरणों में प्रथमा विभक्ति के एकवचन का प्रत्यय 'सि' प्राप्त हुआ है; और उक्त प्राप्त प्रत्यय 'सि' का सूत्र - संख्या ३ - १९ से लोप होकर इसके स्थान पर अन्त्य ह्रस्व स्वर को दीर्घता प्राप्त हुई है; न कि 'अ आ इ - ए' रूप आदेश प्राप्ति । अतएव यह सिद्ध करने के लिये कि ' अ आ इ - ए' रूप आदेश प्राप्ति केवल 'टा - ङस् - ङि ङसि' के स्थानों पर ही होती है; न कि अन्यत्र । इसी रहस्य को समझाने के लिये में 'टा-ङस्- ङि ङसि' का उल्लेख करना पड़ा है। सूत्र मुग्धा संस्कृत तृतीयान्त एकवचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप मुद्धाअ - मुद्धाइ और मुद्धाए होते हैं। इनमें सूत्र - संख्या २- ७७ से मूल संस्कृत रूप मुग्धा में स्थित हलन्त 'ग्' का लोप; २-८९ से 'धू' को द्वित्व ' ध्ध' की प्राप्ति २ - ९० से प्राप्त पूर्व 'धू' के स्थान पर 'द्' की प्राप्ति और ३- २९ से प्राप्त प्राकृत रूप 'मुद्धा' में संस्कृत के तृतीया विभक्ति के एकवचन प्राप्तव्य प्रत्यय 'टा' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से 'अ', 'इ' और 'ए' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर क्रम से तीनों प्राकृत रूप मुद्धाअ, मुद्धाइ और मुद्धाए सिद्ध हो जाते हैं। मुग्धायाः संस्कृत षष्ठ्यन्त एकवचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप मुद्धाअ, मुद्धाइ और मुद्धाए होते हैं। इनमें मूल संस्कृत रूप 'मुग्धा = मुद्धा' की सिद्धि उपर्युक्त रीति अनुसार; तत्पश्चात सूत्र - संख्या ३ - २९ से संस्कृत के षष्ठी विभक्ति के एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'ङस्' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से ' अ - इ - ए' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर क्रम से तीनों प्राकृत रूप मुद्धाअ, मुद्धाइ और मुद्धाए सिद्ध हो जाते हैं। मुग्धायाम् संस्कृत सप्तम्यन्त एकवचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप मुद्धाअ, मुद्धाइ और मुद्धाए होते हैं। इन मूल संस्कृत रूप 'मुग्धा = मुद्धा' की सिद्धि उपर्युक्त रीति अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र - संख्या ३ - २९ से संस्कृत के सप्तमी विभक्ति एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'ङि' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से 'अ - इ - ए' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर क्रम से तीनों प्राकृत रूप मुद्धाअ-मुद्धाइ और मुद्धाए सिद्ध हो जाते हैं। 'कय' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १ - १२६ में की गई है। 'मुह' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १ - १८७ में की गई है। 'ठि' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ३-१६ में की गई है। 'वा' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १ - ६७ में की गई है। मुग्धकया संस्कृत तृतीयान्त एकवचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप मुद्धिआअ मुद्धिआइ और मुद्धिआए होते हैं। इनमें सूत्र - संख्या २- ७७ से मूल संस्कृत रूप 'मुग्धिका' में स्थित 'ग्' का लोप २-८९ से 'धू' को द्वित्व 'ध्ध' की प्राप्ति; २- ९० से प्राप्त पूर्व ' ध्' के स्थान पर 'द्' की प्राप्ति; १ - १७७ से 'क्' का लोप तत्पश्चात् प्राप्त प्राकृत रूप 'मुद्धिआ' में सूत्र - संख्या ३ - २९ से संस्कृत की तृतीया विभक्ति के एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'टा' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से 4 'अ - इ - ए' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर मुद्धिआअ मुद्धिआइ और मुद्धिआए रूप सिद्ध हो जाते हैं। कमलिकया, कमलिकायाः और कमलिकायाम् क्रम से संस्कृत तृतीया, षष्ठी, सप्तमी विभक्ति के एकवचन के For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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