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VI : हेम प्राकृत व्याकरण ___दो वर्ष पूर्व एक समारोह में कलकत्ता के कुछ साथियों के साथ उदयपुर जाने का प्रसंग बना तब आगम संस्थान के एक कार्यक्रम में सुन्दरलाल जी भी मेरे साथ आए। वहां जैन विद्या के मूर्धन्य विद्वान डॉ. सागरमल जी जैन का विद्वत्ता पूर्ण उद्बोधन सुनने को मिला, डॉ. सा. ने अपने उद्बोधन में हेम प्राकृत व्याकरण' के दोनों भाग प्रकाशित करने तथा अन्य प्रकाशनों के लिए आगम संस्थान के समक्ष आर्थिक समस्या बनी रहने का जिक्र किया तब तत्काल ही इन्होंने आगम संस्थान की इस समस्या का सामाधान अपनी प्रिय पुत्री श्रीमती रूपरेखा के नाम से 'रूपरेखा प्रकाशन निधि' की स्थापना करके किया और प्रारम्भिक रूप से तत्काल ही इसमें पांच लाख रुपये की राशि भेंट की और समय-समय पर इस कोष में और अभिवृद्धि करने का आश्वासन भी दिया। इसी का परिणाम है कि आज श्री सुन्दरलाल जी दुगड़ के अर्थ सहयोग से हेम प्राकृत व्याकरण के दोनों भागों का प्रकाशन 'रूपरेखा प्रकाशन निधि के माध्यम से किया जा रहा है। इस हेतु मैं स्वयं अपनी ओर से तथा संस्थान परिवार की ओर से श्री सुन्दरलाल जी दुगड़ का हार्दिक आभार प्रकट करता हूं। जिनदेव से कामना करता हूं कि ये सस्वथ्य शतायु हों और अपने आत्मबल से अर्जित सम्पत्ति का विनियोजन इसी प्रकार रचनात्मक एवं सृजनात्मक कार्यों में सदेव करते रहें।
सरदारमल कांकारिया
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