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________________ (प्रकाशन सहयोगी) श्रीमान् सुन्दरलाल जी दुगड़ सामाजिक क्षेत्र में कार्य करते हुए मुझे पांच दशक का दीर्घ अनुभव है। इस अवधि में विभिन्न सामाजिक, धार्मिक एवं शैक्षणिक संस्थानों तथा श्रीसंघों आदि के माध्यम से शिक्षा, सेवा और चिकित्सा के क्षेत्र में कार्य करने और आर्थिक संसाधन प्राप्त करने का भी मुझे एक दीर्घ अनुभव है। सामाजिक क्षेत्र में कार्य करते हुए अनेक व्यक्तियों और दानदाताओं से निकट का सम्पर्क रहा है। करोड़ों-करोड़ों रूपये का अनुदान उदारमना महानुभावों से प्राप्त कर रचनात्मक कार्यों में विनियोजित करने का मुझे अच्छा अनुभव रहा है। कई व्यक्तियों से मैं प्रभावित भी हूँ किन्तु इन सब में 'सुन्दरलाल दुगड़' का नाम लेते हुए मुझे अत्यन्त उल्लास होता है। मैंने अपने सामाजिक जीवन में सुन्दर लाल दुगड' जैसा उदारमना व्यक्ति नहीं देखा। मैंने इन्हें सदैव अपने अनुज के रूप में ही महसूस किया है। सामाजिक कार्यों में सहभागिता की प्रेरणा यद्यपि मुझे मेरे अग्रज 'श्री पारसमलजी कांकरिया' से मिली किन्तु उसमें उल्लास एवं नवीन संचार सुन्दरलाल दुगड़ की उदारतापूर्ण दान देने की शैली से हुआ है। मेरे आग्रह पर कई दानदाताओं ने बड़ी मात्रा में अर्थ सहयोग किया है, उन सबको स्मरण करते हुए भी जब मैं इनकी ओर दृष्टि डालता हूं तो यह कहने में मुझे जरा भी संकोच नहीं है कि मैं किसी भी रचनात्मक कार्य हेतु इनसे अनुदान दिलवाना चाहूं, यह बात ये मुझसे सुनने की अपेक्षा मेरी भावना को समझ कर तत्काल ही उदारतापूर्वक अनुदान देने में सदैव अग्रणी रहते हैं। 'नेकी कर और भूल जाओ' इस उक्ति को इन्होंने अपने जीवन व्यवहार में आत्मसात कर रखा है। विगत एक दशक में सम्पूर्ण भारत के विभिन्न प्रांतों में सम्प्रदाय निरपेक्ष दृष्टि से इन्होंने स्कूलों, हॉस्पीटलों, छात्रावासों, स्थानकों, मंदिरों आदि में करोड़ों रूपये के स्थाई निर्माण कार्य करवाये हैं। साथ ही निर्धन एवं जरूरतमंदों तथा विधवाओं को आर्थिक सहयोग, छात्रों को शैक्षणिक सहयोग आदि देने में ये सदैव अग्रणी रहते हैं। किसी को भी अनुदान देने में यश और प्रतिष्ठा प्राप्ति करने का अंश मात्र भाव भी मैंने इनमें कभी नहीं देखा। ये सदैव निस्पृह भाव से अनुदान देते हैं। इनकी दानशीलता और उदारवृत्ति की प्रशंसा करने की अपेक्षा मैं जिनदेव से कामना करता हूं कि 'लक्ष्मी' की कृपा इन पर सदैव बनी रहे और ये इसी प्रकार उदारता पूर्वक अनुदान देकर समाज के जरूरतमंद व्यक्तियों और संस्थाओं को सम्बल प्रदान करते रहे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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