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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 33 करती है। जैसे:- 'जस्' का उदाहरण: गौर्यः तिष्ठन्ति = गोरीआ चिट्ठन्ति; वैकल्पिक पक्ष में:-गोरीओ चिट्ठन्ति अर्थात् सुन्दर स्त्रियाँ विराजमान हैं। ‘शस्' का उदाहरण:- गौरीः पश्य = गोरीआ पेच्छ; वैकल्पिक पक्ष में:- गोरीओ पेच्छ अर्थात् सुन्दर स्त्रियों को देखो। इन उदाहरणों में यह प्रदर्शित किया गया है कि:- 'सि', 'जस्' और 'शस्' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से ईकारान्त स्त्रीलिंग वाले शब्दों में 'आ' आदेश हुआ करता है।
एसा रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १-३३ में की गई है।
हसन्ती संस्कृत प्रथमान्त एकवचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप हसन्तीआ और हसन्ती होते हैं। इनमें सूत्र - संख्या ४ - २३९ से मूल प्राकृत हलन्त धातु 'हस्' में विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति; ३ - १८१ से वर्तमान कृदन्त रूप के अर्थ में प्राप्त धातु 'हस' में 'न्त' प्रत्यय की प्राप्ति; ३ - ३१ से प्राप्त रूप 'हसन्त' में स्त्रीलिंगार्थक प्रत्यय 'डी' की प्राप्ति; तदनुसार प्राप्त प्रत्यय 'डी' में स्थित 'ङ्' इत्संज्ञक होने से शेष प्रत्यय 'ई' की प्राप्ति से पूर्व 'हसन्त' रूप में से अन्त्य ह्रस्व स्वर 'अ' की इत्संज्ञा होकर 'अ' का लोप एवं प्राप्त हलन्त् ' हसन्त्' में उक्त स्त्रीलिंग वाचक प्रत्यय 'ई' की संयोजना होने से 'हसन्ती' रूप की प्राप्ति; तत्पश्चात् प्राप्त रूप 'हसन्ती' में सूत्र - संख्या ३- २८ से संस्कृत प्रथमा विभक्ति के एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर 'आ' आदेश रूप प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथमा रूप हसन्तीआ सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप - (हसन्ती = ) हसन्ती में सूत्र - संख्या ३ - १९ से प्राप्त प्रत्यय 'सि' के स्थान पर अन्त्य स्वर को दीर्घता की प्राप्ति रूप स्थिति यथावत् रहकर द्वितीय रूप हसन्ती सिद्ध हो जाता है।
गौर्यः-संस्कृत प्रथमान्त बहुवचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप गोरीआ और गोरीओ होते हैं। इनमें सूत्र - संख्या १-४ से मूल शब्द 'गौरी' में स्थित 'औ' के स्थान पर 'ओ' की प्राप्ति; तत्पश्चात् प्रथम रूप में सूत्र - संख्या ३ - २८ से प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'जस्' के स्थानीय रूप 'अस्' के स्थान पर प्राकृत में 'आ' आदेश रूप प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप 'गोरीआ' सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप - (गौर्य :-) गोरीओ में सूत्र - संख्या ३ - २७ से प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'जस्' के स्थानीय रूप 'अस्' के स्थान पर प्राकृत में 'ओ' आदेश रूप प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप 'गोरीओ' सिद्ध हो जाता
है।
गौरी:--संस्कृत द्वितीयान्त बहुवचन रूप है। इसके प्राकृत रूप गोरीआ और गोरीओ होते हैं। इन दोनों द्वितीयान्त बहुवचन वाले रूपों की सिद्धि उपर्युक्त प्रथमान्त बहुवचन वाले रूपों के समान ही होकर क्रम से दोनों रूप गोरीआ तथा गोरीओ सिद्ध हो जाते हैं।
चिट्ठन्ति रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ३ - २० में की गई है।
पेच्छ रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १ - २३ में की गई है।
'वा' (अव्यय) रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १-६७ में की गई है । । ३ - २८ ॥
-- डेरदादिदेद्वा तु ङसे: ।।३-२९।।
टा-ङस्
स्त्रियां वर्तमानान्नाम्नः परेषां टाङस्डीनां स्थाने प्रत्येकम् अत् आत् इत् एत् इत्येते चत्वार आदेशाः सप्राग्दीर्घा भवन्ति। ङसेः पुनरेते सप्राग्दीर्घा वा भवन्ति ॥ मुद्धाअ । मुद्धा | मुद्धा कयं मुहं ठिअं वा ।। कप्रत्यये तु मुद्धिआअ । मुद्धिआ। मुद्धिआए । कमलिआअ । कमलिआइ । कमलिआए । बुद्धीअ । बुद्धीआ । बुद्धी । बुद्धीए कयं विहवो ठिअं वा।। सहीअ। सहीआ । सही । सहीए कयं वयणं ठिअं वा ।। धेणूअ । धेणूआ । धेणू । धेणूए कयं दुद्धं ठि वा ।। हू । हूआ। वहूइ । वहूए कयं भवणं ठिअं वा ॥ ङसेस्तु वा । मुद्धाअ । मुद्धाइ । मुद्धाए । बुद्धीअ । बुद्धी । बुद्धी । बुद्धी ।। सहीअ । सहीआ । सही । सहीए । धेणूअ । धेणूआ। धेणूइ । धेणू ।। वहूआ। वहूआ । वहूइ । वहूए आगओ । पक्षे ॥ मुद्धाओ । मुद्धाउ । मुद्धाहिन्तो । रईओ । रईउ । रई हिन्तो । धेणूओ । धेणूउ । धेणूहिन्तो ।। इत्यादि । शेषे दन्तवत् (३ - १२४) अतिदेशात् जस्-शस् ङसि - तो- दो- द्वामिदीर्घः (३-१२) इति दीर्घत्वं पक्षेऽपि
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