SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 428
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आसीत्वशां पतिरमुद्र चतुः समुद्रमुद्राङ्कितक्षितिभरक्षमबाहुदण्डः ।। श्री मुलराज इति दुर्धर वैरि कुम्भि || कण्ठीरवः शुचि चुलुक्य कुलावतंसः ॥१॥ तस्यान्वये समजनि प्रबल - प्रतापतिग्मघुतिः क्षितिपति र्जयसिंहदेवः । येन स्व- वंष-सवितर्य परं सुधांषौ, श्री सिद्धराज इतिनाम निजं व्यलेखि॥ २ ॥ सम्यग् निषेव्य चतुरश्चतुरोप्युपायान् । जित्वोपभुज्य च भुवं चतुरब्धि काश्चीम | विद्या चतुष्टय विनीत मति र्जितात्मा, काष्ठामवाप पुरूषार्थ चतुष्टये यः ।। ३ ।। तेनातिविस्तृत दुरागम विप्रकीर्णशब्दानुशासन-समूह कदर्थितेन । अभ्यार्थितो निरवमं विधिवत् व्यधत्त, शब्दानुशासनमिदं मुनि हेमचन्द्रः ॥ ४ ॥ (ग्रन्थ- कर्ता द्वारा निर्मित प्रशस्ति) - चौलुक्य वंश में प्रबल प्रतापी मूलराज नाम वाला प्रख्यात नृपति हुआ है। इसने अपने बाहुबल के आधार पर इस पृथ्वी पर राज्य-शासन चलाया। इसी वंश में महान् तेजस्वी जयसिंहदेव नामक राजा हुआ है; जो कि "सिद्धराज" उपाधि से सुशोभित था। यह अपने सूर्य-सम कांति वाले वंश में चन्द्रमा के समान सौम्य, शान्त और विशिष्ट प्रभाववाला नरराज हुआ है। प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 395 इस चतुर सिद्धराज जयसिंह ने राजनीति सम्बन्धी चारों उपायों- 'साम, दाम, दण्ड और भेद' का व्यवस्थित रूप से उपयोग किया और इस धरती पर समुद्रान्त तक विजय प्राप्त करके राज्यलक्ष्मी का उपभोग किया। चारों विद्याओं द्वारा अपनी शुद्ध बुद्धि को विनय-शील बनाई और अन्त में चारों पुरुषार्थो की साधना करके यह जितात्मा देव बना । प्राकृत : संस्कृत : अति विस्तृत, दुर्बोध और विप्रकीर्ण व्याकरण-ग्रन्थों के समूह से दुःखी हुए श्री सिद्धराज जयसिंह ने सर्वांग पूर्ण एक नूतन शब्दानुशासन अर्थात् व्याकरण की रचना करने के लिये आचार्य श्री हेमचन्द्र से प्रार्थना की और तदनुसार आचार्य हेमचन्द्र ने इस सिद्ध हेम शब्दानुशासन नामक सुन्दर, सरल, प्रसाद- गुण सम्पन्न नई व्याकरण की रचना विधि पूर्वक सम्पन्न की। Jain Education International (प्राकृत-व्याकरण-: 1- ग्रंथ का परिमाण २१८५ श्लोकों जितना है) हिन्दी - व्याख्याता का मंगलाचरण चत्तारि अटू - दस- दोय, वंदिया जिणवरा चउव्वीसा ।। परम-निट्ठि - अट्ठा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥ १ ॥ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।। " सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग् भवेत् ॥ २ ॥ भूयात् कल्याणं- भवतु च मंगलम् For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy