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संस्कृत :
अम्ब ! पश्चात्तापः प्रियः कलहायितः विकाले || ( नूनं) विपरीता बुद्धिः भवति विनाशम्य काले ॥ १ ॥
हिन्दी :- हे माता ! मुझे अत्यन्त पश्चत्ताप है कि मैंने समय और प्रसंग का बिना विचार किये ही (रति- समय का खयाल किये बिना ही) अपने पति से झगड़ा कर डाला। सच है कि विनाश के समय में (विपत्ति आने के मौके पर) बुद्धि भी विपरीत हो जाती है; उल्टी हो जाती है || १ || इस गाथा में अर्थ-हीन अव्यय - शब्द ' घई' का प्रयोग किया गया है । 'आदि' शब्द के कथन से अन्य अर्थ हीन अव्यय शब्द 'खाइ' इत्यादि के सम्बन्ध में भी समझ लेना चाहिये। ऐसे शब्दों का प्रयोग पाद-वृत्ति के रूप में भी देखा जा सकता है ।। ४-४२४।।
तादर्थ्ये केहिं-तेहिं-रेसि - रेसिं-तणेणाः ।।४–४२५।।
अपभ्रंशे तादर्थ्ये द्योत्ये केहिं तेहिं रेसि रेसिं तणेण इत्येते पञ्च निपाताः प्रयोक्तव्याः ॥
ढोल्ला ऍंह परिहासडी अइ भण कवणहिँ देसि ||
झज्जउँ त केहिं पिअ ! तुहुँ पुणु अन्नहि रेसि ||
एवं तेहिं रेसि मावुदाहार्यो । वड्डत्तणहो तणेण ।।
अव्यय
अर्थ:-'तादर्थ्य' अर्थात् ' के लिये' इस अर्थ को प्रकट करने के लिये अपभ्रंश भाषा में निम्नोक्त पांच - शब्दों में से किसी भी एक अव्यय शब्द का प्रयोग किया जाता है। (१) केहिं के लिये, (२) तेहिं के लिये, (३) रेसि= के लिये, (४) रेसिं= के लिए (५) तणेण के लिये । उदाहरण क्रम से इस प्रकार हैं:
(१) स्वर्गस्यार्थे त्वं जीव- दर्यो कुरू सग्गहो केहि करि जीव-दय-देवलोक के लिये जीव दया को करो ।
(२) कस्यार्थे परिग्रहः = कसु तेहिं परिगहु-किसके लिये परिग्रह (किया जाता है ) ।
(३) मोक्षस्यार्थे दमम् कुरू=मोक्खहो रेसि दमु करि=मोक्ष के लिये इन्द्रियों का दमन करो ।
(४)
| कस्यार्थे अलीकं = कासु तणेण अलिउ-किसके लिये झुठ (बोलता है ) ।
वृत्ति में आई हुई गाथा का अनुवाद यों है:
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संस्कृत : विट ! एष परिहासः अयि ! भण, कस्मिन् देशे ?
प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित 377
अहं क्षीणा तव कृते, प्रिय ! त्वं पुनः अन्यस्याः कृते ॥ १ ॥
हिन्दी:- हे नायक ! ( हे प्रियतम !) इस प्रकार का मज़ाक (परिहास -विनोद) किस देश में किया जाता है; यह मुझे कहो। मैं तो तुम्हारे लिये क्षीण (दुःखी) होती जा रही हूँ और तुम पुनः किसी अन्य (स्त्री) के लिये (दु:खी होते जा रहे हो) ।। इस गाथा में 'के लिये' ऐसे अर्थ में क्रम से 'केहिं' और 'रेसि' ऐसे दो अव्यय शब्दों का प्रयोग प्रदर्शित किया गया है।
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महत्त्वस्य कृते = वड्डत्तणहो तणेण = बड़प्पन (महानता ) के लिये । यों शेष दो अव्यय शब्द 'तेहिं और रेसि' के उदाहरणों की कल्पना भी स्वयमेव कर लेना चाहिये। ये अव्यय है, इसलिये इनमें विभक्ति-वाचक प्रत्ययों की संयोजना नहीं की जाती है । । ४ - ४२५ ।।
अपभ्रंशे पुनर्विना इत्येताभ्यां परः स्वार्थे डुः प्रत्ययो भवति ।। सुमरिज्जइ तं वल्लहँउ जं वीसरइ मणाउ ||
हिं पुणु सुमर जाउं गउं तहो नेहहो कई नाउ ॥ १ ॥ विण जुज्झें न वलाहुं ॥
पुनर्विनः स्वार्थे डुः ।।४-४२६।।
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