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________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 329 सर्वादे डसेरे ॥४-३५५।। अपभ्रंशे सर्वादे रकारान्तात् परस्य उसेहा इत्यादेशो भवति।। जहां होन्तउ आगदो। तहां होन्तउ आगदो। कहां होन्तउ आगदो।। अर्थः-अपभ्रंश भाषा में 'सर्व-सव्व' आदि अकारान्त सर्वनामों के पंचमी विभक्ति के एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'उसि' के स्थान पर 'हां' प्रत्यय रूप की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे:- (१) यस्मात् भवान् आगतः जहां होन्तउ आगदो जहाँ से आप आये है। (२) तस्मात् भवान् आगतः-तहां होन्तउ आगदो-वहाँ से आप आये है। (३) कस्मात् भवान् आगतः कहाँ होन्तउ आगदो-कहाँ से आप आये है।।४-३५५।। किमो डिहे वा।।४-३५६॥ अपभ्रंशे किमो कारान्तात् परस्य उसे र्डिहे इत्यादेशौ वा भवति।। जइ तहे तुटउ नेहडा मई सुहं न वि तिल-तार।। तं कि वंकेहिं लोअणेहिं जोइज्जउं सयवार॥१॥ अर्थः-अपभ्रंश भाषा में 'किम् सर्वनाम के अङ्ग रूप 'क' शब्द में पंचमी विभक्ति के एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'ङसि के स्थान पर डिहे इहे' प्रत्यय रूप की आदेश प्राप्ति विकल्प से होती है। 'डिहे' प्रत्यय में 'डकार' इत्-संज्ञक होने के अङ्ग रूप के अन्त्य 'अ' का लोप होकर शेष अङ्ग रूप हलन्त 'क' में 'इहे' प्रत्यय की संयोजना की जानी चाहिये। वैकल्पिक पक्ष होने से पक्षान्तर में 'काहां और कहां रूपों की भी प्राप्ति होगी। उदाहरण के रूप में गाथा में 'किहे' पद दिया गया है, जिसका अर्थ है:- किस कारण से।। पूरी गाथा का अनुवाद यों है:संस्कृत : यदि तस्याः त्रुट्यतु स्नेहः मया सह नापि तिलतारः(?) तत् कस्मात् वक्राभ्याम् लोचनाभ्याम् द्दश्ये (अहं) शतवारम्।। हिन्दी:-यदि उसका प्रेम मेरे प्रति टूट गया है और प्रेम का अंश मात्र भी मेरे प्रति नहीं रह गया है तो फिर मैं किस कारण से उसके टेढ़े-टेढ़े नेत्रों से सैकड़ों बार देखा जाता हूँ? अर्थात् तो फिर मुझे वह बार-बार क्यों देखना चाहती है?।।४-३५६।। ढे हि।।४-३५७॥ अपभ्रंशे सर्वादेकारान्तात् परस्य ः सप्तम्येक वचनस्य हिं इत्यादेशो भवति।। जर्हि कप्पिज्ज्जइ सरिण सरू छिज्जइ खरिगण खग्गु॥ तहिं तेहइ भड-घड निवहि कन्तु पयासइ मग्गु।।१।। एक्कहिं अक्खिहिं सावणु अन्नहिं भद्दवउ॥ माहउ महिअल-सत्थरि गण्डे-त्थले सरउ।। अंगिहिं गिम्ह सुहच्छी-तिल-वणि मग्ग सिरू।। तहे मुद्धहे मुह-पंकइ आवासिउ सिसिरू।। २।। हिअडा फुट्टि तडत्ति करि कालक्खेवे काइ।। देक्खउं हय-विहि कहिं ठवइ पई विणु दुक्ख-सयाइ।। ३।। अर्थः-अपभ्रंश भाषा में 'सर्व-सव्व' आदि अकारान्त सर्वनाम वाचक शब्दों के सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'डि' के स्थान पर 'हिं' प्रत्यय की आदेश प्राप्ति होती है। वृत्ति में दी गई गाथाओं में आये हुए निम्नोक्त पद सप्तमी के एकवचन में 'हिं' प्रत्यय के साथ क्रम से इस प्रकार हैं: (१) जहिं यस्मिन् (अथवा यत्र)-जिसमें (अथवा जहाँ पर)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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