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________________ 312 : प्राकृत व्याकरण अथ चूलिका - पैशाची - भाषा-व्याकरण प्रारम्भ चूलिका - पैशाचिके तृतीय - तुर्ययोराद्य- द्वितीयौ ।।४-३२५।। चूलिका पैशाचिके वर्गाणां तृतीय-तुर्ययोः स्थाने यथासंख्यमाद्यद्वितीयौ भवतः । । नगर ।। नकर ।। मागणः । मक्कनो।। गिरितटम्। किरि-तट ।। मेघः ।। मेखो।। व्याघ्रः । वक्खो। धर्मः। खम्मो ।। राजा। राचा। जर्जरम्। चच्चर ॥ जीमूतः । चीमूतो।। निर्झरः । निच्छरो ।। झर्झरः । छच्छरो तडागम् तटाक ।। मंडलम् । मंटल। डमरूकः । टमरूको। गाढम्। काठ।। षण्ढः। संठो।। ढक्का। ठक्का।। मदनः । मतनो ।। कन्दर्पः । कन्तप्पो ।। दामोदरः । तामोतरो ।। मधुरम् । मथुर। बान्धवः । पन्थवा ।। धूली । थूली । बालकः । पालको।। रभसः। रफसो।। रम्भा । रम्फा । भगवती । फकवती ॥ नियोजितम् । नियोचित ।। क्वचिल्लाक्षणिकस्यापि । पडिमा इत्यस्य स्थाने पटिमा । दाढा इत्यस्य स्थाने ताठा || अर्थ:- चूलिका - पैशाचिक - भाषा में 'क' वर्ग से प्रारम्भ करके 'प' वर्ग तक के अक्षरों में से वर्गीय तृतीय अक्षर के स्थान पर अपने ही वर्ग का प्रथम अक्षर हो जाता है और चतुर्थ अक्षर के स्थान पर अपने ही वर्ग का द्वितीय अक्षर हो जाता है। क्रम से इस सम्बन्धी उदाहरण इस प्रकार हैं:- (१) 'ग' कार के उदाहरण- (अ) नगरम् = नकरं = शहर | (ब) मार्गणः=मक्कनो=याचक - मांगनेवाला । (स) गिरि-तटम् - किरि-तटं पहाड़ का किनारा।। (२) 'घ' कार के उदाहरण:- (अ) मेघः-मेखो = बादल । (ब) व्याघ्रः = वक्खो - शेर - चिता (स) धर्मः - खम्मो = धूम || (३) 'ज' कार के उदाहरण:- (अ) राजा=राचा = राजा - नृपति (ब) जर्जरम् - चच्चरं = कमजोर, पीड़ित । (स) जीमूतः - चीमूतो मेघ - बादल ।। (४) 'झ' के उदाहरण:- झर्झरः - छच्छरो - झांझ-बाजा विशेष । । निर्झरः- निच्छरो झरना - स्त्रोत । । (५) 'डकार' के उदाहरण:- (अ) तडागम् - तटाकं = तालाब । (ब) मंडलम् - मंटलं = समूह, अथवा गोल। (स) डमरूकः = टमरूको=बाजा विशेष ।। (६) 'ढकार' के उदाहरण:- (अ) गाढम् = काठं = कठिन मजबूत । (ब) षण्ढः = सण्ठो = नपुंसक । ( स ) ढक्का=ठक्का=बाजा विशेष। (७) 'दकार' के उदाहरण:- (अ) मदन:- मतनो = कामदेव। (ब) कन्दर्पः = कन्तप्पो=कामदेव। (स) दामादरः = तामोतरो = श्रीकृष्ण- वासूदेव ।। (८) 'धकार' के उदाहरण:- (अ) मधुरम - मथुरं मीठा । (ब) बान्धवः=पन्थवो=भाई बन्धु । ( स ) धूली - थूली = धूल - रज ।। (९) 'ब' का उदाहरणः- बालकः = पालको = बच्चा ।। (१०) 'भकार' के उदाहरण:- (अ) रभसः= :- रफसो = सहसा, एकदम । (ब) रम्भा = रम्फा = अप्सरा विशेष । (स) भगवती = फकवती देवी, श्रीमती, (११) 'जकार' का उदाहरण:- नियोजितम् = नियोचितं = कार्य में लगाया हुआ ।। कहीं-कहीं पर व्याकरण से सिद्व हुए प्राकृत-शब्दों में दो तृतीय अक्षर के स्थान पर प्रथम अक्षर की प्राप्ति हो जाती है और चतुर्थ अक्षर के स्थान पर द्वितीय-अक्षर हो जाता है। जैसे:- प्रतिमा = पडिमा पटिमा = मूर्ति अथवा श्रावक साधु का धर्म विशेष। (२) दंष्ट्रा = दाढा = ताठा - बड़ा दांत अथवा दांत विशेष ।।४-३२५।। रस्य लो वा ।। ४-३२६।। चूलिका - पैशाचिके रस्य स्थाने लो वा भवति । पनमथ पनय-पकुप्पित - गोली चलनग्ग - लग्ग - पति - बिंब ॥ तससु नखतप्पनेसुं एकातस-तनु-थलं लुद्द || नच्चन्तस्य य लीला - पातुक्खेवेन कंपिता वसुथा । उच्छल्लन्ति समुद्दा सइला निपतन्ति तं हलं नमथ ।। = अर्थः- चूलिका-पैशाचिक - भाषा में 'रकार' वर्ण के स्थान पर 'लकार' वर्ण की विकल्प से आदेश प्राप्ति होती है। जैसा कि उपरोक्त गाथा में ' (१) गौरा = गोली, (२) चरण = चलन, (३) तनु - धुर - तनुथलं, (४) रूद्रम = लुद्द और हरं = हल पदों में देखा जा सकता है। इन पांच पदों में 'रकार' वर्ण की स्थान पर 'लकार' बर्ण की आदेश प्राप्ति की गई है। उपरोक्त गाथाओं की संस्कृत छाया इस प्रकार से है: प्रणमत प्रणय-प्रकुपित - गोरी - चरणाग्र- लग्न - प्रतिबिम्बम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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