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________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 309 अर्थ:-संस्कृत-भाषा में 'याद्दश, ताद्दश' आदि ऐसे जो शब्द हैं; इन शब्दों में अवस्थित 'द्द' के स्थान पर पैशाची-भाषा में 'ति' वर्ण की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे:-(१) याद्दशः यातिसो जिसके समान। जैसा। (२) ताद्दशः तातिसो उसके समान, वैसा। (३) कीद्दशः केतिसो किसके समान, कैसा। (४) इद्दशः एतिसो इसके समान, ऐसा। (५) भवाद्दशः भवातिसो आप के समान, आप जैसा। (६) अन्याद्दशः अञ्ञातिसो-अन्य के समान, दूसरे के जैसा। (७) युष्माद्दशः युम्हातिसो तुम्हारे समान, तुम्हारे जैसा। (८) अस्माद्दशः=अम्हातिसो हमारे समान, हमारे जैसा। इत्यादि।।४-३१७।। इचेचः॥४-३१८॥ पैशाच्यामिचेचोः स्थाने तिरादेशौ भवति।। वसुआति।। भोति। नेति। तेति।। अर्थः-प्राकृत-भाषा में वर्तमानकाल के अन्य पुरूष के एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'इ' और 'ए' के स्थान पर पैशाची-भाषा में 'ति' प्रत्यय की प्राप्ति होती है। जैसे: उद्-वातिवसुआइ-वसुआति-वह सूखता है। भवइ=भवति-भोति-वह होता है। णेइ-नयति-नेति वह ले जाता है। दाइ-ददाति-तेति-वह देता है।।४- ३१८।। आ-ते श्व।।४-३१९।। पैशाच्याकारात् परयोः इ चे चोः स्थाने ते श्च कारात् तिश्चदेशो भवति।। लपते। लपति। अच्छते। अच्छति। गच्छते। गच्छति। रमते। रमति।। आदिति किम्। होति। नेति। अर्थः-प्राकृत-भाषा में वर्तमानकाल के अन्य-पुरूष के एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'इ' और 'ए' के स्थान पर अकारान्त-धातुओं में पैशाची-भाषा में 'ते' प्रत्यय की आदेश-प्राप्ति होती है। दोनों प्रत्ययों में से किसी भी एक प्रत्यय की अकारान्त धातुओं में संयोजना की जा सकती है। अकारान्त के सिवाय अन्य स्वरान्त धातुओं में केवल 'ति' प्रत्यय की ही प्राप्ति होगी जैसा कि सूत्र-संख्या ४-३१८ में समझाया गया है। उदाहरण यों है:- (१) लपति लवइ-लपते अथवा लपति-वह स्पष्ट रूप से बोलता है। (२) आस्ते अच्छइ अच्छते अथवा अच्छति-वह बैठता है अथवा वह हाजिर होता है। (३) गच्छतिगच्छइ-गच्छते अथवा गच्छति-वह जाता है। (४) रमते-रमइ=रमते अथवा रमति वह खेलता है-वह क्रीड़ा करता है।। प्रश्नः- 'अकारान्त-धातुओं में ही 'ते' और 'ति' प्रत्ययों की प्राप्ति होती है। ऐसा क्यों लिखा गया है? उत्तरः- अकारान्त धातुओं के सिवाय अन्य स्वरान्त धातुओं में ते' प्रत्यये की प्राप्ति कदापि नही होती है; उनमें तो केवल 'ति' प्रत्यय की ही प्राप्ति होती है; इसलिये 'अकारान्त-धातुओं का नाम-निर्देश किया गया है। जैसे:भवति होइ-होति-वह होता है। यहां पर 'हो' धातु ओकारान्त होने से होते' रूप की प्राप्ति नही होगी। दूसरा उदाहरणःनयति=णेइ-नेति-वह ले जाता है। यहाँ पर भी 'ने' धातु एकारान्त होने से इसका रूप 'नेते' नहीं बनेगा। यों सर्वत्र अकारान्त धातुओं को और अन्य स्वरान्त-धातुओ की स्थिति को 'ति' अथवा 'ते' प्रत्यय के सम्बन्ध में स्वयमेव समझ लेनी चाहिये।।४-३१९।।। भविष्यत्येय्य एव।।४-३२०।। पैशाच्यामिचेचोः स्थाने भविष्यति एय्य एव भवति; न तु स्सिः।। तंतदून चिन्तितं रञा का एसा हुवेय्य।। अर्थः-सस्कृत-भाषा में भविष्यतकाल के अन्य पुरूष के एकवचन में 'ष्यति' प्रत्यय होता है, इसी 'ष्यति' प्रत्यय के स्थान पर प्राकृत-भाषा में 'हिइ और हिए' हो जाता है; परन्तु पैशाची-भाषा में इन 'हिइ और हिए' प्रत्ययों के स्थान पर केवल ‘एय्य' ऐसे एक ही प्रत्यय की प्राप्ति होती है। यों 'ष्यति' प्रत्यय से नियमानुसार प्राप्त होने वाला 'स्सि' अक्षरात्मक प्रत्यय की आदेश-प्राप्ति नहीं होगी। जबकि शौरसेनी-भाषा में सूत्र संख्या ४-२७५ से भविष्यत्-काल के अर्थ में (वर्तमान-कालीन प्रत्ययों के पूर्व) 'स्सि' प्रत्ययांश की प्राप्ति होती है। वास्तव में यह 'एय्य' प्रत्यय रूप नहीं होकर प्रत्यय के अर्थ में 'सांकेतिक अक्षर-समूह' मात्र ही है। यों प्राप्तव्य प्रत्यय-रूप 'एय्य' को धातुओं में जोड़ने के समय में धातुओं में रहे हुए अन्त्य स्वर का लोप हो जाता है। यह बात ध्यान मे रखी जानी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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