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304 : प्राकृत व्याकरण
(१८) सूत्र-संख्या ४-२७७ में कहा गया है कि शौरसेनी भाषा में 'इदानीम्' के स्थान पर 'दाणिम्' ऐसे रूप
की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे:- श्रृणुत इदानीम् अहम् शक्रावतार-तीर्थ-निवासी धीवरः शृणध दाणिं हगे शक्कावयाल-तिस्त-णिवाशी धीवले-सुनो। इस समय में मैं शक्रावतार नामक तीर्थ का रहने वाला
घीवर हूँ। (१९) सूत्र-संख्या ४-२७८ में समझाया गया है कि शौरसेनी भाषा में 'तस्मात्' शब्द के स्थान पर 'ता' शब्द
रूप की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे:- तस्मात् यावत् प्रविशामि-ता याव पविशामि-उस कारण से जब
तक में प्रवेश करता हूँ। (२०) सूत्र संख्या ४-२७९ में लिखा गया है कि शौरसेनी भाषा में पदान्त्य 'म्' के आगे यदि 'इकार' अथवा
'एकार' हो तो इन 'इकार' अथवा 'उकार' के पूर्व में विकल्प से हलन्त 'ण' की आगम प्राप्ति होती है। जैसेः- (१) युक्तम् इमम्=युत्तं णिमं-यह युक्त है-यह ठीक है। (२) सदर्श इम-शलिशं णिमं यह समान है।
इन उदाहरणों में 'इम' में पूर्व में 'णकार' की आगम प्राप्ति हुई है।। (२१) सूत्र-संख्या ४-२८० में सूचित किया गया है कि शौरसेनी-भाषा में 'एव' अर्थक अव्यय के स्थान पर
"य्येव' अव्यय रूप का प्रयोग किया जाना चाहिये। जैसे:- मम एव-मम य्येव-मेरा ही है। (२२) सूत्र-संख्या ४-२८१ में यह संविधान किया गया है कि शौरसेनी भाषा में दासी को पुकारने पर संबोधन
के रूप में 'हचे' शब्द रूप अव्यय का प्रयोग किया जाता है। जैसे:- अरे! चतुलीके-हब्बे चदुलिके=अरे!
ओ चतुरिका (दासी) (२३) सूत्र-संख्या ४-२८२ में यह कथन किया गया है कि 'आश्चर्य और खेद प्रकट करने के अर्थ में शौरसेनी
भाषा में 'हीमाणहे' ऐसे शब्द रूप अव्यय का प्रयोग किया जाता है। जैसे:- अहो जीवंतवत्सा मम जननी-हीमाणहे जीवन्तवश्चा मे! जीवन्त वत्सा मम जननी-हीमाणहे जीवन्त वश्चा में जणणी-आश्चर्य है कि मेरी माता मेरे पर जीवन पर्यप्त के लिये प्रेम-भावना रखने वाली है। यह कथन 'राक्षस' नामक एक पात्र उदात्तराघव नामक नाटक में व्यक्त करता है। यों 'हीमाणहे' अव्यय विस्मय अर्थ में कहा गया है। निर्वेद-खेद-अर्थक अव्यय के रूप में प्रयुक्त किये जाने वाले 'हीमाणहे' अव्यय का उदाहरण 'विक्रान्त-भीम नामक नाटक से आगे उद्धृत किया जा रहा है:- हा! हा!! परिश्रान्ताः वयम् एतेन निजविवे: दुर्व्यसितेन-हीमाणहे पलिस्सन्ता हगे एदेण निय-विधिणो दुव्ववशिदेण-अरे! अरे! बड़े दुःख की बात है कि हम इस हमारे भाग्य के दुर्व्यवहार से-(खोटे तकदीर के कारण से) अत्यन्त परेशान हो गये है।। यह
उक्ति एक 'राक्षस' पात्र के मुँह से कहलाई गई है।। (२४) सूत्र-संख्या ४-२८३ में यह वर्णन किया गया है कि शौरसेनी में निश्चय-अर्थक संस्कृत-अव्यय 'ननु'
के स्थान पर 'ण' अव्यय की प्राप्ति होती है। जैसे:- नन् अवसर-उपसरणीयाः राजानः=णं अवशलोपशप्पणीया लायाणो निश्चय ही राजाओं (की सेवा में) समयानुसार ही (अवसरों की अनुकलता
पर ही) जाना चाहिये।। (२५) सूत्र-संख्या ४-२८४ में यह व्यक्त किया गया है कि शौरसेनी में हर्ष-व्यक्त करने के अर्थ में 'अम्महे'
ऐसे शब्द रूप अव्यय का प्रयोग किया जाता है। जैसे:- अहो!! एतस्यै सूर्मिलायै सुपरिगठितः भवान् अम्महे!! एआए शुम्मिलाए शुपलिगढिदे भवं आपने इस सूर्मिला के लिये (इस आभूषण विशेष का) अच्छा गठन
किया है; यह परम हर्ष की बात है। (२६) सूत्र-संख्या ४-२८५ में यह व्यक्त किया गया है कि-शौरसेनी-भाषा में जब कोई विदूषक (भांड आदि
मसखरे) अपना हर्ष व्यक्त करते हैं, तब वे 'ही ही ऐसा शब्द बोलते हैं और यह शब्द अव्यय के अन्तर्गत
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