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________________ ३१ ३२ ३३ ३४ हेम प्राकृत व्याकरण : XXIX "भविष्यत्-काल" से संबंधित प्रत्ययों का संविधान १६६ से १७२ २०१ आज्ञार्थक आदि अवशिष्ट-लकार-विधि से संबंधित प्रत्ययों का संविधान १७३ से १७६ २१० सभी लकारों में तथा इनके सभी कालों एवं दोनों वचनों में और तीनों पुरूषों में समान रूप से प्रयुक्त होने वाले "ज्ज" तथा "ज्जा' प्रत्ययों का संविधान १७७ २१५ कुछ लकारों में अकारान्त के सिवाय शेष स्वरान्त धातुओं के और प्रयुज्यमान प्रत्ययों के मध्य में वैकल्पिक रूप से प्राप्त होने वाले विकरण प्रत्यय रूप"ज्ज" और "ज्जा" की संयोजना का संविधान १७८ "क्रियातिपत्ति"विधान के लिये प्राप्तव्य प्रत्ययों का संविधान १७९से १८० २२२ "वर्तमान-कृदन्त" अर्थक प्रत्ययों का निरूपण १८१ २२५ "स्त्रीलिंग के सद्भाव'' में वर्तमान-कृदन्त अर्थक प्रत्ययों की संविवेचना १८२ २२६ २१९ ३७ तृतीय-पाद-विषय-सूची-सार-संग्रह संज्ञाओं और विशेषणों का विभक्ति-रूप प्रदर्शन . सर्वनाम शब्दों की विभक्ति-रूप-विवेचना रूप-संबंधी विविध-विवेचना वाक्य-रचना-प्रकार-प्रदर्शन क्रियापदों का विविध रूप-प्रदर्शन १से ५७ ५८ से १२४ १२५ से १३० १३१ से १३७ १३८ से १८२ ८२ १४५ १५० १५९ चतुर्थ पादः १ संस्कृत-धातुओं के स्थान पर प्राकृत भाषा में विविध ढंग से आदेश प्राप्त धातुओं का निरूपण १ से २५९ २२८ शौरसेनी-भाषा-निरूपण २६० से २८६ २८६ मागधी-भाषा-विवेचना २८७ से ३०२ २९६ पैशाची-भाषा-वर्णन ३०३ से ३२४ ३०६ चूलिका-पैशाचिक-भाषा-प्रदर्शन ३२५ से ३२८ ३१२ अपभ्रंश-भाषा-स्वरूप-विधान ३२९ से ४४६ ३१४ प्राकृत आदि भाषाओं में "व्यत्यय" विधान ४४७ ३९३ ८ शेष साधनिका में "संस्कृतवत्" का संविधान ४४८ ३९४ नोट : १ आदेश प्राप्त प्राकृत-धातुओं को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है, जो कि क्रम से इस प्रकार है : १ कुछ 'तत्सम' की कोटि की है। २ कुछ 'तद्भव' रूप वाली है और ३ कुछ 'देशज' श्रेणी वाली है। २ मूल प्राकृत भाषा का नाम 'महाराष्ट्री' प्राकृत है और शेष भाषाएं सहयोगिनी प्राकृत-भाषाएं कहीं जा सकती है। ३ जैन आगमों की भाषा मूलतः "अर्ध-मागधी" है; परन्तु इसका आधार 'महाराष्ट्री-प्राकृत' ही है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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