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________________ 246 : प्राकृत व्याकरण सिचेः सिच्च-सिम्पो ॥४-९६।। सिञ्चतेरेतावादेशो वा भवतः।। सिञ्चइ। सिम्पइ। सेअइ॥ अर्थः- 'सींचना' अर्थक संस्कृत धातु 'सिच्' के स्थान पर विकल्प से प्राकृत भाषा में सिञ्च और सिम्प' ऐसे दो (धातु) रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। पक्षान्तर में सिच्' का 'सेअ भी होगा। उदाहरण इस प्रकार हैं:- सिञ्चति=(१) सिच्चइ, (२) सिम्पइ और (३) सेअइ-वह सींचता है अथवा सींचती है ।। ४-९६।। प्रच्छः पुच्छः ॥४-९७॥ पृच्छेः पुच्छादेशो भवति।। पुच्छइ।। अर्थः- 'पूछना अथवा प्रश्न करना' अर्थक संस्कृत धातु 'प्रच्छ' के स्थान पर प्राकृत भाषा में 'पुच्छ' (धातु) रूप की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे-पृच्छति-पुच्छइ-वह पूछती है अथवा वह प्रश्न करती है ।। ४-९७।। गर्जेर्बुक्कः ॥ ४-९८॥ गर्जतेर्बुक्क इत्यादेशो वा भवति।। बुक्कइ। गज्जइ। अर्थ:- 'गर्जन करना अथवा गरजना' अर्थक संस्कृत धातु 'ग' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'बुक्क' (धातु) रूप की आदेश प्राप्ति होती है। पक्षान्तर में 'गज्ज' की प्राप्ति भी होगी। जैसे- गर्जति-बुक्कइ अथवा गज्जइ-वह गर्जन करता है अथवा वह गरजता है ।। ४-९८।। वृषे ढिक्कः ॥४-९९।। वृष-कर्तृकस्य गर्जेढिक्क इत्यादेशो वा भवति।। ढिक्कइ। वृषभो गर्जति।। अर्थः- 'बैल-साण्ड गर्जना करता है' इस अर्थ वाली गर्जना अर्थक धातु के लिये प्राकृत भाषा में विकल्प से 'ढिक्क' (धातु) रूप की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे-वृषभो गर्जति-(उसहो) ढिक्कइ-बैल गर्जना करता है। प्राकृत रूपान्तर 'उसहो गज्जइ' ऐसा भी होगा।। ४-९९। राजे रग्घ-छज्ज-सह-रीर-रेहाः ॥४-१००।। राजेरते पञ्चादेशा वा भवन्ति।। अग्घइ। छज्जइ। सहइ। रीरइ। रेहइ। रायइ।।। अर्थः- शोभना, विराजना, चमकना' अर्थक संस्कृत-धातु 'राज्' के स्थान पर प्राकृत- भाषा में विकल्प से पांच (धातु)-रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। जो कि क्रम से इस प्रकार हैं:- (१) अग्घ, (२) छज्ज, (३) सह, (४) रीर और (५) रेह। रूपान्तर में 'राय' की भी प्राप्ति होगी। उदाहरण क्रम से इस प्रकार है:- राजते= (१) अग्घइ, (२) छज्जइ, (३) सहइ, (४) रीरइ, (५) रेहइ, और रायइ वह शोभता है, वह विराजता है अथवा वह चमकता है । ४-१००।। मस्जेराउड्ड-णिउड्ड-बुड्ड-खुप्पाः।।४-१०१।। मज्जतेरेते चत्वार आदेशा वा भवन्तिां आउड्डइ। णिउढइ। बुड्डइ। खुप्पइ। मज्जइ।। अर्थः- 'मज्जन करना, डूबना अथवा स्नान करना' अर्थक संस्कृत-धातु 'मस्ज्' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से चार (धातु) रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। (१) आउड्ड, (२) णिउड्ड, (३) बुड्डू और (४) खुप्प। वैकल्पिक-पक्ष होने से 'मज्ज' की प्राप्ति भी होगी। उदाहरण क्रम से इस प्रकार है:- मज्जति= (१) आउड्डइ, (२) णिउड्डइ, (३) बुड्डइ, (४) खुप्पइ, और (५) मज्जइ-वह स्नान करता है, वह डूबती है, वह मज्जन करती है ।। ४-१०१।। पुजेरारोल-वमालौ ॥४-१०२।। पुजेरेतावादेशो वा भवतः। आरोलइ। वमालइ। पुञ्जइ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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