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232 : प्राकृत व्याकरण ___अर्थः- मुरझाना अथवा कुम्हलाना अर्थ वाली संस्कृत धातु 'म्लै' के स्थान पर प्राकृत में विकल्प से 'वा और पव्वाय' इन दो धातुओं की आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से पक्षांतर में 'मिला' रूप की भी प्राप्ति होगी। उदाहरण इस प्रकार हैं:- म्लायति-वाइ, पव्वायइ और मिलाइ-वह कुम्हलाता है, वह मुरझाता है ।। ४-१८।।
निर्मो निम्माण-निम्मवौ ।। ४-१९।। निर् पूर्वस्य मिमीतेरेतावादेशौ भवतः। निम्माणइ। निम्मवइ॥ ___ अर्थः- निर् उपसर्ग सहित 'मा' धातु के स्थान पर प्राकृत में 'निम्माण और निम्मव' ऐसे दो धातु-रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे:- निर्मिमीते-निम्माणइ और निम्मवइ-वह निर्माण करता है।। ४-१९।।
क्षेर्णिज्झरो वा ।।४-२०॥ क्षयतेर्णिज्झर इत्यादेशो वा भवति।। णिज्झरइ। पक्षे झिज्जइ।।
अर्थः- नष्ट होना अर्थ वाली संस्कृत धातु 'क्षि' के स्थान पर प्राकृत में 'णिज्झर' धातु-रूप की आदेश प्राप्ति होती है। पक्षान्तर में 'झिज्ज' रूप की भी प्राप्ति होगी। जैसे-क्षयति अथवा क्षयते-णिज्झरइ अथवा झिज्जइ-वह क्षीण होता है, वह नष्ट होता है ।। ४-२०।।
छदे णे णुम-नूम-सन्नुम-ढक्कौम्वाल-पव्वालाः।।४-२१।। छदेय॑न्तस्य एते षडादेशा वा भवन्ति।। णुमई। नूमइ। णत्वे णूमइ। सनुमइ। ढक्कइ। ओम्वालइ। पव्वालइ। छायइ॥
अर्थः- प्रेरणार्थक प्रत्यय 'णिच् पूर्वक 'छद्-छादि' धातु के स्थान पर प्राकृत में विकल्प से छह धातु-रूपों की आदेश प्राप्ति होती है, वे क्रम से इस प्रकार हैं:- (१) णुम, (२) नूम, (३) सन्नुम, (४) ढक्क, (५) ओम्वाल और (६) पव्वाल। सूत्र-संख्या १-२२९ से आदेश-प्राप्त रूप नूम में स्थित आदि नकार को णकार की प्राप्ति होने पर सातवां आदेश प्राप्त रूप 'णूम' भी देखा जाता है।
वैकल्पिक पक्ष होने से आठवां रूप 'छाय' भी होगा। सभी के उदाहरण क्रम से इस प्रकार हैं:- छादयति (अथवा छादयते)=(१) णुमइ, (२) नूमइ, (३) णूमइ, (४) सन्नुमइ, (५) ढक्कइ, (६) ओम्वालइ, (७) पव्वालइ और (८) छायइ-वह ढांकता है, वह आच्छादित करता है।। ४-२१।।
निति पत्योर्णि होडः ॥४-२२।। निवृगःपतेश्च ण्यन्तस्य णिहोड इत्यादेशो वा भवति। णिहोडइ। पक्ष। निवारेइ पाडेइ।।
अर्थः-'नि' उपसर्ग सहित 'ग्' धातु और 'पत्' धातु में प्रेरणार्थक ‘ण्यन्त' प्रत्यय साथ होने पर दोनों धातुओं के स्थान पर प्राकृत में विकल्प से 'णिहोड' धातु रूप की आदेश प्राप्ति होती है। जैसेः- निवारयति-णिहोडइ-वह रुकवाता है, पक्षान्तर में निवारयति के स्थान पर निवोरइ भी होगा। पातयति=णिहोडइ-वह गिराता है और पक्षान्तर में पाडेइ रूप भी होगा ।। ४-२२।
दूङो दूमः ।। ४-२३॥ दूडो ण्यन्तस्य दूम इत्यादेशो भवति।। दूमेइ मज्झ हिअयं।।
अर्थः-प्ररेणार्थक ण्यन्त प्रत्यय साथ रहने पर दूङ् धातु के स्थान पर प्राकृत में दूम धातु-रूप की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे-दुनोति मम हृदयं-दूमेइ मज्झ हिअयं वह मेरे हृदय को दुःखी करता है-पीड़ा पहुँचाता है।।४-२३।।
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