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________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 203 का अभाव प्रदर्शित कर दिया गया है। परन्तु इस स्थित को वैकल्पिक-भाव वाली जानना; जैसा कि वृत्ति में 'क्वचिद्' शब्द देकर स्पष्टीकरण किया गया है। __ भविष्यामि अथवा भवितास्मि संस्कृत के क्रमशः भविष्यत्कालवाचक लुट्लकार और लुट्लकार के तृतीय पुरुष के एकवचन के रूप है। इनके प्राकृत रूप (समान रूप से) होस्सामि, होहामि और होहिमि होते है। इनमें सूत्र-संख्या ४-६० से मूल संस्कृत धातु 'भू' =भव के स्थान पर प्राकृत में हो अङ्ग रूप की प्राप्ति; ३-१६७ और ३-१६६ से भविष्यत्काल के अर्थ में क्रमशः 'स्सा, हा और हि' प्रत्यय के मूल प्राप्तांग 'हो' में प्राप्ति और ३-१४१ से भविष्यत्काल के अर्थ में क्रमशः प्राप्तांग 'होस्सा, होहा और होहि' में तृतीय पुरुष के एकवचन के अर्थ 'मि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत रूप होस्सामि, होहामि और होहिमि सिद्ध हो जाते हैं। __ भविष्यामः और भवितास्मः संस्कृत के क्रमशः भविष्यत्कालवाचक लृट्लकार और लुट्लकार के तृतीय पुरुष के बहुवचन के रूप है। इनके प्राकृत-रूप (समान-रूप) होस्सामो, होहामो, होस्सामु, होहामु, होहिमु, होस्साम, होहाम, होहिम होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या ४-६०से मूल संस्कृत-धातु 'भू भव्' के स्थान पर प्राकृत में 'हो' अंग रूप की प्राप्ति; ३-१६७ और ३-१६६ से भविष्यत्काल के अर्थ में क्रमशः 'स्सा, हा और हि' प्रत्यय की मूल प्राप्तांग 'हो' में प्राप्ति ओर ३-१४४ से भविष्यत्काल के अर्थ में क्रमशः प्राप्तांग 'होस्सा, होहा और होहि' में तृतीय पुरुष के बहुवचन के अर्थ में क्रमशः 'मो, मु और म' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर होस्सामो, होहामो, होस्सामु, होहामु, होहिमु, होस्साम, होहाम और होहिम रूप सिद्ध हो जाते हैं। हसिष्यामः और हसितास्मः संस्कृत के क्रमशः भविष्यत्कालवाचक लुट्लकार और लुट्लकार के तृतीय पुरुष के बहुवचन के रूप हैं। इनके प्राकृत-रूप (समान रूप से) हसिस्सामो और हसिहिमो होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या ३–१५७ से मूल प्राकृत-रूप 'हस' में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर आगे भविष्यत्-कालवाचक प्रत्यय 'स्सा' और 'हि' का सद्भाव होने के कारण से 'इ' की प्राप्ति; ३-१६७ और ३-१६६ से भविष्यत्काल के अर्थ में प्राप्तांग 'हसि' में क्रमशः 'स्सा' और 'हि' प्रत्यय की प्राप्ति और ३-१४४ से भविष्यत्काल के अर्थ में क्रमशः प्राप्तांग 'हसिस्सा' और 'हसिहि' में तृतीय पुरुष के बहुवचन के अर्थ में 'मो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'हसिस्सामो और हसिहिमो' रूप सिद्ध हो जाते हैं।।३-१६७।। मो-म-मानां हिस्सा हित्था।।३-१६८॥ धातोः परौ भविष्यति काले मो मु मानां स्थाने हिस्सा हित्था इत्येतो वा प्रयोक्तव्यो।। होहिस्सा। होहित्था। हसिहिस्सा। हसिहित्था। पक्षे। होहिमो होस्सामो। होहामो। इत्यादि। अर्थः- भविष्यत्काल के अर्थ में धातुओं में तृतीय पुरुष के बहुवचन बोधक प्रत्यय 'मो, मु, म' परे रहने पर तथा भविष्यत्काल-द्योतक प्रत्यय 'हि अथवा स्सा अथवा हा' होने पर कभी-कभी वैकल्पिक रूप से ऐसा होता है कि उक्त भविष्यत्काल-द्योतक प्रत्यय 'हि-स्सा-हा' के स्थान पर और उक्त पुरुष-बोधक प्रत्यय 'मो, मु, म के स्थान पर अर्थात् दोनों ही प्रकार के प्रत्ययों के स्थान पर धातुओं में हिस्सा' अथवा हित्था' प्रत्ययों की आदेश प्राप्ति होकर भविष्यत्काल के अर्थ में तृतीय पुरुष के बहुवचन का अर्थ अभिव्यक्त हो जाता है। यों धातुओं में रहे हुए 'हि-स्सा-हा' प्रत्ययों का भी लोप हो जाता है और 'मो मु-म' प्रत्ययों का भी लोप हो जाता है; तथा दोनों प्रकार के इन लुप्त प्रत्ययों के स्थान पर 'हिस्सा अथवा हित्था' प्रत्ययों की आदेश प्राप्ति होकर तृतीय पुरुष के बहुवचन के अर्थ में भविष्यत्काल का रूप तैयार हो जाता है। जैसे:- भविष्यामः अथवा भवितास्मः होहिस्सा और होहित्था हम होंगे; चूँकि यह विधान वैकल्पिक-स्थित वाला है अतएव पक्षान्तर में होहिमो, होस्सामो और होहामो' इत्यादि रूपों का भी निर्माण हो सकेगा। दूसरा उदाहरण इस प्रकार है:- हसिष्यामः अथवा हसितास्म-हसिहिस्सा और हसिहित्था; हम हँसेंगे; पक्षान्तर में हसिहिमो, हसिसामो आदि रूपों का भी सद्भाव होगा। इस प्रकार से वैकल्पिक स्थिति का सद्भाव भविष्यत्काल के अर्थ में तृतीय पुरुष के बहुवचन के सम्बन्ध में जानना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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