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________________ 202: प्राकृत व्याकरण की प्राप्ति और ३- १४० से भविष्यत्काल के अर्थ में प्राप्तांग 'होहि' में द्वितीय पुरुष के एकवचन के अर्थ में 'सि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर होहिसि रूप सिद्ध हो जाता है। के भविष्यथ अथवा भवितास्थ संस्कृत के क्रमशः भविष्यत्कालवाचक लृट्लकार और लुट्लकार के द्वितीय पुरुष बहुवचन के रूप हैं। इनका प्राकृत-रूप (समान रूप से) होहित्था होता है। इसमें सूत्र - संख्या ४-६० से मूल संस्कृत-धातु 'भू= भव्' के स्थान पर प्राकृत में 'हो' अंग-रूप की प्राप्ति; ३ - १६६ से भविष्यत्काल के अर्थ में प्राप्तांग 'हो' में 'हि' प्रत्यय की प्राप्ति; १ - १० से भविष्यत्काल- अर्थक प्राप्तांग 'होहि' में स्थित अन्त्य स्वर 'इ' का आगे प्राप्त पुरुष-बोधक प्रत्यय ‘इत्था' में स्थित आदि स्वर 'इ' का सद्भाव होने के कारण से लोप; ३ - १४३ से भविष्यत्काल के अर्थ में प्राप्त हलन्त-अंग ‘होह' में द्वितीय पुरुष के बहुवचन के अर्थ में ' इत्था' प्रत्यय की प्राप्ति और १-५ से प्राप्त रूप 'होह और इत्था' की संधि होकर होहित्था रूप सिद्ध हो जाता है। हसिष्यति अथवा हसिता संस्कृत के क्रमशः भविष्यत्कालवाचक लृट्लकार और लुट्लकार प्रथमपुरुष के एकवचन के रूप हैं। इनका प्राकृत रूप (समान रूप से) हसिहिइ होता है। इसमें सूत्र - संख्या -३ - १५७ से मूल प्राकृत धातु 'हस्' में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर आगे भविष्यत्कालवाचक प्रत्यय 'हि' का सद्भाव होने के कारण से 'इ' की प्राप्ति; ३-१६६ से भविष्यत्काल के अर्थ में प्राप्तांग 'हसि' में 'हि' प्रत्यय की प्राप्ति; और ३- १३९ से भविष्यत्काल के अर्थ में प्राप्तांग 'हसिहि' में प्रथमपुरुष के एकवचन के अर्थ में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर हसिहिइ रूप सिद्ध हो जाता है। 'काहिइ' क्रियापद रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १-५ में की गई है । ३ - १६६ ।। मि- मो- मु- मेस्सा हा न वा।। ३–१६७।। भविष्यत्यर्थे मिमोमुमेषु तृतीय त्रिकादेशेषु परेषु तेषामेवादी स्सा हा इत्येतौ वा प्रयोक्तव्यौ । हेरपवादौ । पक्षे हिरपि ।। होस्सामि, होहामि । होस्सामो होहामो । होस्सामु होहामु । होस्साम होहाम।। पक्षे । होहिमि । होहिमु । हिम।। क्वचितु हा न भवति । हासिस्सामो । हसिहिमो ।। अर्थ:- प्राकृत भाषा में भविष्यत्काल के अर्थ में तृतीय पुरुष के एकवचन में अथवा बहुवचन के धातुओं में जब क्रमशः ‘मि' प्रत्यय अथवा मो- मु-म प्रत्यय की संयोजना की जा रही हो तब सूत्र - संख्या ३ - १६६ के अनुसार भविष्यत्काल-द्योतक प्राप्तव्य प्रत्यय 'हि' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'स्सा' अथवा 'हा' प्रत्यय की भी प्राप्ति हुआ करती है। इस प्रकार से तृतीय पुरुष के एकवचन में अथवा बहुवचन में भविष्यत्काल- द्योतक प्राप्तव्य प्रत्यय 'हि' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'स्सा' अथवा 'हा' की प्राप्ति को पूर्वोल्लिखित भविष्यत्काल- द्योतक प्रत्यय 'हि' के लिये अपवाद रूप विधान ही समझना चाहिये। चूँकि यह अपवाद रूप प्राप्ति भी वैकल्पिक - स्थित वाली ही है इसलिये पक्षान्तर में तृतीय पुरुष के एकवचन के अथवा बहुवचन के प्रत्ययों का सद्भाव होने पर भविष्यत्काल- द्योतक प्रत्यय 'हि' की प्राप्ति का सद्भाव भी (वैकल्पिक रूप से) होता ही है । उक्त वैकल्पिक-स्थित-सूचक-विधान को स्पष्ट करने वाले उदाहरण इस प्रकार हैं:- भविष्यामि अथवा भवितास्मि होस्सामि और होहामि अथवा पक्षान्तर में होहिमि भी होता है। इसका हिन्दी - अर्थ यह है कि-मैं होऊँगा अथवा होने वाला होऊँगा । बहुवचन - द्योतक उदाहरण इस प्रकार से हैं:- भविष्यामः अथवा भवितास्म होस्सामो होहामो; होस्सामु होहामु; होस्साम होहाम; अथवा पक्षान्तर में होहिमो, होहिमु, होहिम; इन सभी का हिन्दी-अर्थ यह है कि-'हम होंगे अथवा हम होने वाले होंगे। पाठक गण इन उदाहरणों में यह देख सकेगे कि भविष्यत्काल द्योतक प्राप्तव्य प्रत्यय 'हि' के अतिरिक्त वैकल्पिक रूप से 'स्सा' और 'हा' प्रत्ययों की भी प्राप्ति हुई है। ऐसी प्राप्ति केवल तृतीय पुरुष के एकवचन में अथवा बहुवचन में ही होती है; प्रथम पुरुष में अथवा द्वितीय पुरुष में ऐसी प्राप्ति क अभाव ही जानना चाहिये। कभी-कभी ऐसा भी देखा जाता है कि उपर्युक्त प्राप्त प्रत्यय 'स्सा' ओर 'हा' में से केवल एक ही प्रत्यय 'स्सा' की प्राप्ति होती है और 'हा' की प्राप्ति नहीं होती है। जैसे:- हसिष्यामः - हसिस्सामो और हसिहिमो । यहाँ पर 'हसिहामों' रूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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