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________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 181 की प्राप्ति; १-५ से हलन्त 'हसाव' के साथ में उक्त प्राप्त प्रत्यय 'इज्ज' की संधि होकर 'हसाविज्ज' में वर्तमानकाल के प्रथमपुरुष के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ते' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर चतुर्थ रूप हसाविज्जइ सिद्ध हो जाता है।॥३-१५२।। अदेल्लुक्यादेरत आः।।३-१५३।। णेरदेल्लोपेषु तेषु आदेरकारस्य आ भवति। अति। पाडइ। मारइ।। एति। कारेइ। खामेइ। लुकि। कारिआ खामि। कारीअइ। खामीअइ। कारिज्जइ। खामिज्जइ।। अदेल्लुकीति किम्। कराविआ करावीअइ॥ कराविज्जइ।। आदेरिति किम् संगा-मेइ। इह व्यहितस्य मा भूत।। कारिआ इहान्त्यस्य मा भूत्।। अत इति किम्॥ दूसेइ।। केचितु आवे आव्यादेशयोरप्यादेरत आत्वमिच्छन्ति। कारावेइ। हासाविओ जणो सामलीए।। अर्थः- प्राकृत धातुओं में णिजन्त अर्थात् प्रेरणार्थक भाव में सूत्र-संख्या ३-१४९ के अनुसार प्राप्तव्य प्रत्यय 'अत् अथवा एत्' की प्राप्ति होने पर यदि उन प्राकृत धातुओं के आदि में 'अ' स्वर रहा हुआ हो तो उस आदि 'अ' के स्थान पर 'आ' की प्राप्ति हो जाया करती है। इसी प्रकार से सूत्र-संख्या ३-१५२ के अनुसार प्रेरणार्थक-भाव के साथ में भूत-कृदन्तीय प्रत्यय 'त' के कारण से और कर्मणिवाचक-भाव-वाचक प्रत्ययों के संयोग से लुप्त हुए प्रेरणार्थक-भाव-सूचक-प्रत्ययों के अभाव में प्राकृत धातुओं के आदि में स्थित 'अ' के स्थान पर 'आ' की प्राप्ति होती है। सारांश यह है कि णिजन्त-बोधक प्रत्यय 'अत् एत' के सद्भाव में अथवा णिजन्त-बोधक-प्रत्ययों की लोप- अवस्था में धातु के आदि 'अकार' को 'आकार' की प्राप्ति हुआ करती है। 'अत्' से सम्बन्धित उदाहरण इस प्रकार हैं:- पातयति पाडइ-वह गिराता है। मारयति-मारइ-वह मारता है। इन 'पड और मर' धातुओं में काल-बोधक प्रत्यय 'इ' के पूर्व में णिजन्त-बोधक 'अत्' प्रत्यय का सद्भाव होने से इनमें स्थित आदि 'अकार' को 'आकार' की प्राप्ति हो गई है। इसी प्रकार से 'एत' प्रत्यय से सम्बन्धित उदाहरण निम्न प्रकार से हैं:- कारयति कारेइ-वह कराता है; क्षामयति-खामेइ-वह क्षमा कराता है; इन 'कर और खम' धातुओं में कालबोधक प्रत्यय 'इ' के पूर्व में णिजन्त बोधक 'एत् प्रत्यय का सद्भाव होने से इनमें स्थित आदि अकार की प्राप्ति हो गई है। भूतकृदन्त प्रत्यय 'त' के सद्भाव में णिजन्त-बोधक प्रत्ययों के लोप हो जाने पर धातुओं के आदि 'अकार को 'आकार' की प्राप्ति होने के उदाहरण इस प्रकार हैं:- कारितम्-कारिअं-कराया हुआ; क्षामितम् खामिअंक्षमाया हुआ, इन 'कर और खम' धातुओं में भूत-कृदन्त बोधक प्रत्यय 'त-अ' के पूर्व में णिजन्त-बोधक-प्रत्यय का लोप हो जाने से इनमें स्थित आदि 'अकार' को 'आकार' की प्राप्ति हो गई है। कर्मणि-प्रयोग और भावे-प्रयोग का सद्भाव होने पर णिजन्त-बोधक-प्रत्ययों के लोप हो जाने पर धातुओं के आदि 'आकार' को 'अकार' की प्राप्ति होने के उदाहरण इस प्रकार जाननाः- कार्यते-कारीअइ अथवा कारिज्जइ-उससे कराया जाता है; क्षाम्यते खामीअइ अथवा खामिज्जइ उससे क्षमाया जाता है। इन 'कर और खम' धातुओं में प्रयुक्त कर्मणि-प्रयोग एवं भावे-प्रयोग-द्योतक प्रत्यय 'ईअ और इज्ज के पूर्व में णिजन्त-बोधक-प्रत्ययों के लोप हो जाने पर इन धातुओं में स्थित आदि 'अकार' को 'आकार' की प्राप्ति हो गई है। अन्यत्र भी जान लेना चाहिये। प्रश्नः-णिजन्त-बोधक 'अत् और एत्' होने पर अथवा णिजन्त बोधक-प्रत्ययों के लोप होने पर ही धातुओं के आदि में रहे हुए 'अकार' को 'आकार' की प्राप्ति होती है; ऐसा क्यों कहा गया है। ___ उत्तरः- णिजन्त-बोधक-प्रत्यय चार अथवा पाँच हैं; जो कि इस प्रकार हैं:- अत्, एत्, आव, आवे और पाँचवां (सूत्र-संख्या ३-१५२ के विवानानुसार) आवि है। इनमें से यदि आव, आवे और आवि' प्रत्ययों का सद्भाव धातुओं में हो तो ऐसी अवस्था में धातुओं में आदि में रहे हुए 'अकार' को 'आकार' की प्राप्ति नहीं होगी। ऐसे उदाहरण इस प्रकार हैं:- कारितम् कराविअं-कराया हुआ; कार्यते करावीअइ अथवा कराविज्जइ-उससे कराया जाता है; इन उदाहरणों में तो णिजन्त-बोधक प्रत्यय 'अत, अथवा एत्' की प्राप्ति हुई और न णिजन्त बोधक-प्रत्ययों का लोप ही हुआ है; अतएव 'कर' धातु में स्थित आदि 'अकार' को 'आकार' की प्राप्ति भी नहीं हुई है; इसीलिये कहा गया है कि णिजन्त-बोधक प्रत्यय 'अत् अथवा एत्' का सद्भाव होने पर ही या णिजन्त बोधक प्रत्ययों का लोप होने पर ही धातुओं में रहे हुए आदि 'अकार' की प्राप्ति होती है; अन्यथा नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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