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| ग्रन्थ की पूर्व प्रकाशक संस्था के प्रति आभार
आचार्य हेमचन्द्र प्रणीत प्राकृत व्याकरण, प्राकृत भाषा के लिए सर्वाधिक प्रमाणिक और परिपूर्ण मानी जाती है। आचार्य हेमचन्द्र ने प्राकृत व्याकरण को चार पादों में विभाजित किया है। आचार्य हेमचन्द्र कृत यह प्राकृत व्याकरण भाषा विज्ञान के अध्ययन के लिए तथा अनेक आधुनिक भारतीय भाषाओं का मूल स्थान ढूंढने के लिए अत्यन्त उपयोगी है, इसलिए कई विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों आदि ने अपने पाठ्यक्रम में इस प्राकृत व्याकरण को स्थान दिया है। ऐसी उत्तम कृत्ति जिसकी सरल हिन्दी व्याख्या उपाध्याय पण्डित रत्न मुनिवर्य श्री प्यारचन्द जी महाराज ने की तदुपरान्त हिन्दी व्याख्या सहित इस प्राकृत व्याकरण के प्रकाशन का महत्वपूर्ण कार्य श्री जैन दिवाकर दिव्य ज्योति कार्यालय, ब्यावर (राजस्थान) द्वारा वर्ष 1967 में दो भागों में प्रकाशित कर पूर्ण किया गया।
श्री जैन दिवाकर दिव्य ज्योति कार्यालय, ब्यावर (राजस्थान) के तत्कालीन अध्यक्ष श्री देवराज जी सुराणा, मंत्री श्री अभयराज जी नाहर एवं संयोजक श्री उदयमुनि सिद्धान्त शास्त्री, सम्पादक श्री रतनलाल जी संघवी, सम्पादन सहयोगी श्री बसंतीलाल जी नलवाया आदि के प्रति हम विशेष आभार प्रकट करते है क्योंकि प्राकृत व्याकरण के प्रस्तुत संस्करण हेतु हमने इनके द्वारा प्रकाशित संस्कारणों का ही उपयोग किया है।
श्री जैन दिवाकर दिव्य ज्योति कार्यालय, ब्यावर (राजस्थान) द्वारा पूर्व में प्रकाशित संस्करण प्रायः अप्राप्य हो गये थे किन्तु इनकी उपयोगिता अत्यधिक थी। अतः आगम, अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर के संचालक मण्डल ने इसकी उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए, इसके पुनः प्रकाशन का निर्णय लिया और पूर्व प्रकाशक संस्था से इस हेतु अनुमति मांगी। लम्बे अंतराल के पश्चात् संघनिष्ठ सुश्रावक एडवोकेट श्री भंवरलाल जी ओस्तवाल, ब्यावर ने श्री जैन दिवाकर दिव्य ज्योति कार्यालय, ब्यावर (राजस्थान) के वर्तमान पदाधिकारियों से अनुमति प्राप्त कर हमें भिजवाई तभी हम प्रस्तुत संस्करण का प्रकाशन कर पाये। इस हेतु हम पूर्व प्रकाशक संस्था के तत्कालीन एवं वर्तमान पदाधिकारियों तथा पूर्व संस्करण के सहयोगी सभी चारित्र आत्माओं एवं विद्वानों के प्रति हदय से आभार प्रकट करते
डा. सुरेश सिसोदिया
सम्पादक
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