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________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 137 और चत्तारि होते है। इनमें सूत्र-संख्या ३-११२ से प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय ' जिस' परे रहने पर मूल शब्द 'चतुर और प्रत्यय' दोनों के स्थान पर उक्त तीनों रूपों की आदेश-प्राप्त होकर (क्रम से) तीनों रूप चत्तारो, चउरो और चत्तारि सिद्ध हो जाते हैं। ___ चतुरः संस्कृत द्वितीया बहुवचनान्त संख्यात्मक सर्वनाम (और विशेषण) रूप है। इसके प्राकृत रूप चत्तारो, चउरो और चत्तारि होते हैं। इनमें भी सूत्र-संख्या ३-१२२ से द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'शस्' परे रहने पर मूल शब्द 'चतुर और प्रत्यय' दोनों के स्थान पर उक्त तीनों रूपों की आदेश प्राप्ति होकर (क्रम से) तीनों रूप चत्तारो, चउरो और चत्तारि सिद्ध हो जाते हैं। चिट्ठन्ति क्रियापद रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-२० में की गई है। 'पेच्छ' क्रियापद रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२३ में की गई है।॥३-१२२।। संख्याया आमो ण्ह ण्हं ।। ३-१२३।। संख्या शब्दात्परस्यामो ण्ह ण्हं इत्यादेशौ भवतः।। दोण्ह। तिण्ह। चउण्ह। पंचण्ह। छण्ह। सत्तण्ह। अटुण्ह।। एवं दोण्ह। तिण्ह। चउण्ह। पच्चण्ह। छण्ह। सत्तण्ह। अट्ठण्ह।। नवण्ह। दसण्ह। पण्णरसण्हं दिवसाणं। अट्ठारसण्हं समणसाहस्सीण।। कतीनाम्। कइण्ह।। बहुलाधिकाराद् विंशत्यादेन भवति।। ___ अर्थ:- संस्कृत संख्यावाचक शब्दों के प्राकृत रूपान्तर में षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर क्रम से 'ह' और 'हं' प्रस्ययों को आदेश प्राप्ति होती है। उदाहरण इस प्रकार है:- द्वयोः दोण्ह और दोण्हं अर्थात् दो का; त्रयाणाम्-तिण्ह और तिण्हं अर्थात् तीन का; चतुर्णाम् चउण्ह और चउण्हं अर्थात् चार का; पञ्चानाम् पञ्चण्ह और पञ्चण्हं अर्थात् पांच का; षष्णाम् छण्ह और छण्हं अर्थात् छह का सप्तानाम् सत्तण्ह और सत्तण्हं अर्थात् सात का; अष्टाणाम् अट्ठण्ह और अट्ठण्हं अर्थात् आठ का; नवानाम् नवण्ह और नवण्हं अर्थात् नव का; दशानाम्-दसण्ह और दसण्हं अर्थात् दश का; पञ्चादशानाम् दिवसानाम्=पण्णरसण्हं दिवसाण अर्थात् पन्द्रह दिनों का; अष्टादशानाम् श्रमण- साहस्सीणम् अटारसण्ह समण-साहस्सीणं अर्थात् अठारह हजार साधुओं का। कतीनाम् कइण्हं अर्थात् कितनों का; इत्यादि। 'बहुल' सूत्र के अधिकार से 'विंशति' अर्थात् 'बीस' आदि संख्यावाचक शब्दों में षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'आम्' परे रहने पर प्राकृत-रूपान्तर में 'ण्ह' अथवा 'ण्ह' आदेश प्राप्ति नहीं भी होती हैं। यह ध्यान में रखना चाहिये कि 'द्वि, त्रि और चतुर' संख्यावाचक शब्दों के प्राकृत रूपान्तर से तीनों लिगों में विभक्तिबोधक अवस्था में समान रूप ही होते हैं। अर्थात् इनमें लिंग भेद नहीं पाया जाता है। द्वयोः संस्कृत षष्ठी द्विवचनान्त संख्यात्मक सर्वनाम (और विशेषण) रूप है। इसके प्राकृत रूप दोण्ह और दोण्हं होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या ३-११९ से मूल संस्कृत शब्द 'द्वि' के स्थान पर प्राकृत में अंग रूप 'दो' की आदेश प्राप्ति, ३-१३० से द्विवचन के स्थान पर बहुवचन का सद्भाव और ३-१२३ से षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर प्राकृत में 'ह' और 'ण्ह' प्रत्ययों की आदेश प्राप्ति (क्रम से) होकर दोनों रूप 'दोण्ह' एवं 'दोण्ह' सिद्ध हो जाते हैं। त्रयाणाम् संस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त संख्यात्मक सर्वनाम (और विशेषण) रूप हैं। इसमें प्राकृत रूप 'तिण्ह और तिण्हं होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या ३-११८ से मूल संस्कृत शब्द 'त्रि' के स्थान पर प्राकृत में 'ती' अंगरूप की आदेश प्राप्ति; ३-१२३ से प्राप्तांग 'ती' में षष्ठी विभक्ति के बहुचन में संस्कृत प्रातव्य प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर प्राकृत में 'ह और 'ह' प्रत्ययों की (क्रम से) आदेश प्राप्ति और १-८४ से प्राप्त रूप 'तीण्ह' तीण्ह' में दीर्घस्वर 'ई' के आगे संयुक्त व्यञ्जन 'ण्ह' और 'ह' का सदभाव में से उक्त दीर्घ स्वर 'ई' के स्थान पर हस्व स'ड' की प्राप्ति होकर क्रम से दोनों रूप 'तिण्ह' और तिण्ह सिद्ध हो जाते हैं। चतुर्णाम् संस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त संख्यात्मक सर्वनाम (और विशेषण) रूप है। इसके प्राकृत रूप 'चउण्ह' और For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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