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________________ 136 : प्राकृत व्याकरण स्थितौ संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप ठिआ होता है। इसमें सूत्र-संख्या ४-१६ से मूल संस्कृत धातु 'स्था तिष्ठ्' के स्थान पर प्राकृत में 'ठा' अंग रूप की आदेश प्राप्ति; ३-१५६ से प्राप्त धातु 'ठा' में स्थित अन्त्य स्वर 'आ' के स्थान पर आगे भूतकृन्दत से सम्बन्धित प्रत्यय 'क्त-त' का सद्भाव होने से 'इ' की प्राप्ति; ४-४४८ से भूत कृन्दत के अर्थ में संस्कृत प्रत्यय 'क्त-त' की प्राकृत में भी इसी अर्थ में 'त' प्रत्यय की प्राप्ति; १-१७७ से उक्त प्रत्यय 'त' में स्थित हलन्त 'त' का लोप; ३-१३० से द्विवचन के स्थान पर बहुवचन का सद्भाव और ३-४ से प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत 'का प्राकत में लोप एवं ३-१२ से उक्त प्राप्त एवं लप्त जस' प्रत्यय के कारण से पर्वोक्त 'ठिअ' में स्थित अन्त्य ह्रस्व स्वर 'अ' के स्थान पर दीर्घ स्वर 'आ' की प्राप्ति होकर 'ठिआ रूप सिद्ध हो जाता है। 'पेच्छ' क्रियापद रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२३ में की गई है। ३-१२०।। स्तिण्णिः ।। ३-१२१॥ जसू शस्भ्यां सहितस्य त्रेः तिण्णि इत्यादेशो भवति।। तिण्णि ठिआ पेच्छ वा।। अर्थः- संस्कृत संख्यावाचक शब्द 'त्रि' के प्राकृत रूपान्तर में प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में 'जस्' प्रत्यय परे रहने पर तथा द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में 'शस्' प्रत्यय परे रहने पर दोनों विभक्तियों में समान रूप से 'मूल शब्द और प्रत्यय' दोनों के ही स्थान पर 'तिण्णि रूप की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे प्रथमा के बहुवचन में 'त्रय' का रूपान्तर तिण्णि' और द्वितीया के बहुवचन में 'त्रीन्' का रूपान्तर भी 'तिण्णि' ही होता है। वाक्यात्मक उदाहरण इस प्रकार है:त्रयः स्थिताः तिण्णि ठिआ अर्थात् तीन (व्यक्ति) ठहरे हुए हैं। त्रीन् पश्य-तिण्णि पेच्छ अर्थात् तीन को देखो यों प्रथमा-द्वितीया के बहुवचन में प्राकृत में एक ही रूप 'तिण्णि' होता है। त्रयः संस्कृत प्रथमा बहुवचनान्त संख्यात्मक सर्वनाम (और विशेषण) रूप है। इसका प्राकृत रूप 'तिण्णि' होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-१२१ से प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'जस्' की प्राकृत में प्राप्ति होकर 'मूल शब्द 'त्रि' और 'जस्' प्रत्यय' दोनों के स्थान पर 'तिण्णि' रूप की आदेश प्राप्ति होकर 'तिण्णि' रूप सिद्ध हो जाता है। "ठिआ' क्रियापद रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-१२० में की गई है। जिसमें सूत्र-संख्या ३-१३० का इस शब्द साधनिका में अभाव जानना; क्योंकि वहां पर द्विवचन का रूपान्तर सिद्ध करना पड़ा है; जबकि यहां पर 'बहुवचन' का ही सद्भाव है। शेष साधनिका में उक्त सभी सूत्रों का प्रयोग जानना। त्रीन्-तिण्णि की साधनिका भी 'त्रयः तिण्णि' के समान ही सूत्र-संख्या ३-१२१ के विधान से उपर्युक्त रीति से समझ लेनी चाहिये। 'पेच्छ' क्रियापद रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२३ में की गई है।।३–१२१ ।। चतुरश्चत्तारो चउरो चत्तारि ।। ३-१२२।। चतुर् शब्दस्य जस्-शस्भ्यां सह चत्तारो चउरो चत्तारि इत्येते आदेशा भवति।। चत्तारो। चउरो। चत्तारि चिट्टन्ति पेच्छ वा।। ___ अर्थः- संस्कृत संख्यावाचक शब्द 'चतुः = (चार) के प्राकृत-रूपान्तर में प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में 'जस्' प्रत्यय परे रहने पर तथा द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में 'शस्' परे रहने पर दोनों विभक्तियों में समान रूप से 'मूल शब्द और प्रत्यय' दोनों के ही स्थान पर तीन रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। जो कि इस प्रकार है:- प्रथमा के बहुवचन में संस्कृतीय रूप चत्वारः के प्राकृत रूपान्तर 'चत्तारो, चउरो और चत्तारि तथा द्वितीया के बहुवचन में संस्कृत रूप 'चतुरः' के प्राकृत रूपान्तर भी 'चत्तारो, चउरो और चत्तारि' ही होते हैं। यों प्रथमा-द्वितीया के बहुवचन में रूपों की समानता ही जानना चाहिये। वाक्यात्मक उदाहरण इस प्रकार है:- चत्वारः तिष्ठन्त चत्तारो, चउरो, चत्तारि चिट्टन्ति अर्थात् चार (व्यक्ति) स्थित हैं। चतुरः पश्य-चतारा, चउरो, चत्तारि पेच्छ अर्थात् चार (व्यक्तियों) को देखों। चत्वार : संस्कृत प्रथमा बहुवचनान्त संख्यात्मक सर्वनाम (और विशेषण) रूप है। इसके प्राकृत रूप चत्तारो, चउरो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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