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________________ 124 : प्राकृत व्याकरण की इस प्रकार प्राप्ति होती है:- 'तुम्ह' और 'तुज्झ'। ऐसी स्थित में 'म्मि' प्रत्यय की संयोजना होने पर दो और रूपों का निर्माण होता है:- तुम्हम्मि और तुज्झम्मि।। वृत्ति में 'इत्यादि' शब्द का उल्लेख किया हुआ है। इससे अनुमान किया जा सकता है कि उपर्युक्त प्राप्त सात अंगों में से प्रथम अंग के अतिरिक्त शेष छह अंग रूपों में सूत्र-संख्या ३-११ के विधान से संस्कृत प्रत्यय 'डि-इ' के स्थान पर 'डे-ए' प्रत्यय की संयोजना भी होना चाहिये; तदनुसार छह रूपों की प्राप्ति की संभावना होती है; जो कि इस प्रकार हैं:तुवे, तुमे, तुब्भे, तुम्हे और तुझे, यो वृत्ति के अन्त में उल्लिखित 'इत्यादि' शब्द के संकेत से प्रमाणित होता है। त्वयि संस्कृत सप्तमी एकवचनान्त (त्रिलिंगात्मक) सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप तुम्मि, तुवम्मि, तुमम्मि, तुहम्मि, तुब्भम्मि, तुम्हम्मि और तुज्झम्मि होते हैं। इनमें से प्रथम पांच रूपों में सूत्र-संख्या ३-१०२ से मूल संस्कृत शब्द 'युष्मद्' के स्थान पर क्रम से पांच अंग रूपों की प्राप्ति और छटे तथा सातवें रूप में सूत्र-संख्या ३-१०४ से पूर्व में प्राप्तांग पांचवें'तुब्भ में स्थित 'ब्भ' अंश के स्थान पर क्रम से तथा वैकल्पिक रूप से 'म्ह' और 'ज्झ' की प्राप्ति; तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-११ से उपर्युक्त रीति से सातों प्राप्तांगों में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ङि-इ' के स्थान पर प्राकृत में 'म्मि' प्रत्यय की आदेश प्राप्ति होकर क्रम से सातों रूप तुम्मि, तुवम्मि, तुमम्मि, तुहम्मि, तुब्मम्मि, तुम्हम्मि और तुज्झम्मि' सिद्ध हो जाते हैं ।।३-१०२।। सुपि ।। ३-१०३।। युष्मदः सुपि परतः तु तुव तुम तुह-तुब्मा भवन्ति।। तुसु। तुवेसु। तुमेसु। तुहेसु। तुब्मेसु।। ब्मो म्ह-ज्झौ वेति वचनात् तुम्हेसु। तुज्झेसु।। केचित्तु सुप्येत्व विकल्पमिच्छन्ति। तन्मते तुवसु। तुमसु। तुहसु। तुब्भसु। तुम्हसु। तुज्झसु।। तुब्भस्यात्वमपीच्छत्यन्यः। तुब्भासु। तुम्हासु तुज्झासु॥ ___अर्थः-संस्कृत सर्वनाम शब्द "युष्मद्" के प्राकृत रूपान्तर में सप्तमी विभक्ति के बहुवचन में "सुप-सु" प्रत्यय परे रहने पर "युष्मद्" के स्थान पर प्राकृत में पांच अंग रूपों की आदेश प्राप्ति हुआ करती है। जो कि इस प्रकार हैं:युष्मद्=तु, तुव, तुम, तुह और तुब्भ उदाहरण यों हैं:- युष्मासु-तुसु, तुवेसु, तुमेसु, तुहेसु, और तुब्भेसु। सूत्र-संख्या ३-१०४ के विधान से पंचम-अंग रूप 'तुब्भ' में स्थित 'ब्भ' अंश के स्थान पर क्रम से और वैकल्पिक रूप से 'म्ह' और 'ज्झ' अंश की प्राप्ति हुआ करती है, तदनुसार दो अंग रूपों की प्राप्ति और होती है:- तुम्ह तथा तुज्झ। यों प्राप्तांग 'तुम्ह' और तुज्झ' में 'सु' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'तुम्हेसु' तथा 'तुज्झेसु' रूपों को संयोजना होती है। कोई-कोई व्याकरणाचार्य 'सु'प्रत्यय परे रहने पर उपर्युक्त रीति से प्राप्तांग अकारान्त रूपों में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर ऊपर-वर्णित एवं सूत्र-संख्या ३-१५ से प्राप्त 'ए' की प्राप्ति का विधान वैकल्पिक रूप से मानते हैं; तद्नुसार 'युष्मासु' के छह प्राकृत रूपान्तर और बनते हैं; जो कि इस प्रकार हैं- युष्मासु-तुवसु,तुमसु, तुहसु तुब्भसु, तुम्हसु और तुज्झसु। ऊपर-वाले रूपों में और इन रूपों में परस्पर में 'सु' प्रत्यय के पूर्व में स्थित प्राप्तांग के अन्त में रहे हुए अथवा प्राप्त हुए 'ए' और 'अ' स्वरों की उपस्थित का अथवा अभाव रूप का ही अन्तर जानना। कोई-कोई प्राकृत भाषा तत्त्वज्ञ प्राप्तांग तुब्भ' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के स्थान पर 'सु' प्रत्यय परे रहने पर 'आ' का सद्भाव भी वैकल्पिक रूप से मानते हैं। इनके मत से 'युष्मासु' के तीन और प्राकृत रूपान्तरों का निर्माण होता है; जो कि इस प्रकार हैं:- 'युष्मासु'-तुब्भासु, तुम्हासु और तुज्झासु। इनका अर्थ होता है:- आप सभी में। ___ 'युष्मासु' संस्कृत सप्तमी बहुवचनान्त (त्रिलिंगात्मक) सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप १६ होते हैं। जो कि इस प्रकार हैं:- तुसु, तुवेसु, तुमेसु, तुहेसु तुब्भेसु, तुम्हेसु, तुज्झेसु, तुवसु, तुमसु, तुहसु, तुब्भसु, तुम्हसु, तुज्झसु, तुब्मासु, तुम्हासु और तुज्झासु। इन में से प्रथम पांच रूपों में से सूत्र-संख्या ३-१०३ से संस्कृत मूल शब्द 'युष्मद्' के स्थान पर प्राकृत में सप्तमी-विभक्ति के बहुवचन के प्रत्यय की संयोजना होने पर 'तु, तुव, तुह, तुब्भ' इन पांच अंग रूपों की क्रम से प्राप्ति; तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-४४३ से प्राप्तांग इन पांचों क्रम से सप्तमी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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