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________________ 122 : प्राकृत व्याकरण उक्त पंचम और षष्ठ अंग रूप की प्राप्ति; तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-६ से उक्त प्राप्तांग छहों में पञ्चमी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'भ्यस् के स्थान पर प्राकृत में आदेश-प्राप्त प्रत्यय 'त्तो, ओ, उ, हि, हिन्तो, सुन्तों में से प्रथम प्रत्यय 'तो' की प्राप्ति होकर उक्त छः ही प्राकृत रूप 'तुब्भत्तो, तुम्हत्तो, उयहत्तो, उम्हत्तो, तुम्हत्तो और तुज्झतो' सिद्ध हो जाते हैं।।३-९८।। तइ-तु-ते-तुम्हं, तुह-तुहं-तुव-तुम-तुमे-तुमो-तुमाइ-दि-दे-इ-ए तुब्भोब्भोय्हा ङसा।।३-९९।।। युष्मदो ङसा षष्ठयेकवचनेनसहितस्य एते अष्टादशादेशा भवन्ति।। तइ। तु। ते तुम्ह। तुह। तुहं। तुवा तुम। तुमे। तुमो। तुमाइ। दि। दे। इ। ए। तुष्भ। उब्भ। उयह धणं। ब्भो म्ह-ज्झौ वेति वचनात् तुम्ह। तुज्झा उम्ह। उज्झ। एवं च द्वाविंशान्ति रूपाणि। ___ अर्थः-संस्कृत सर्वनाम शब्द 'युष्मद्' के षष्ठी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ङस् अस्' की संयोजना होने पर प्राप्त संस्कृत रूप 'तव' अथवा 'ते' के प्राकृत रूपान्तर में सम्पूर्ण उक्त 'तव' अथवा 'ते' रूप के स्थान पर क्रम से अठारह रूपों की आदेश प्राप्ति हुआ करती है। उदाहरण इस प्रकार है:- तव (अथवा ते) धनम् तइ-तु-ते-तुम्ह-तुह-तुहं-तुव-तुम-तुमे-तुमो-तुमाइ-दि-दे-इ-ए-तुब्भ-उब्भ-उयह धण अर्थात् तेरा धन। सूत्र-संख्या ३-१०४ के विधान से उक्त प्राप्त अठारह रूपों में से सोलहवें और सतरहवें रूपों में स्थित 'ब्भ अंश के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'म्ह' और 'ज्झ' की प्राप्ति क्रम से हुआ करती है; तदनुसार संस्कृत रूप 'तव' के स्थान पर चार रूपों की और आदेश प्राप्ति क्रम से तथा वैकल्पिक रूप से हुआ करती है; जो कि इस प्रकार है:- (तव) तुम्ह, तुज्झ, उम्ह और उज्झ। यों संस्कृत शब्द 'युष्मद्' के षष्ठी एकवचन में प्राप्त रूप 'तव (अथवा ते) के स्थान पर प्राकृत में कुल बाईस रूपों की आदेश प्राप्ति क्रम से जानना चाहिये। 'तव' अथवा 'ते' संस्कृत षष्ठी एकवचनान्त (त्रिलिंगात्मक) सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप (२२) होते हैं:- तइ, तु, ते, तुम्हं, तुह, तुहं, तुव, तुम, तुमे, तुमो, तुमाइ, दि, दे, इ, ए, तुब्भ, उब्भ, उयह, तुम्ह, तुज्झ, उम्ह और उज्झ। इनमें से प्रथम अठारह रूपों में सूत्र-संख्या ३-९९ से संस्कृत सर्वनाम शब्द 'युष्मद्' के षष्ठी विभक्ति के एकवचन में प्राप्त प्रत्यय 'ङस्-अस्' की संयोजना होने पर प्राप्त रूप 'तव' अथवा 'ते' के स्थान पर उक्त प्रथम अठारह रूपों की आदेश प्राप्ति होकर प्रथम अठारह रूप 'तइ, तु, ते, तुम्ह, तुह, तुहं, तुव, तुम, तुमे, तुमो, तुमाइ, दि, दे, इ, ए,तुब्भ, उब्भ और उयह सिद्ध हो जाते हैं। शेष १९वें से २२वें तक के चार रूपों में सूत्र-संख्या ३-१०४ के विधान से उक्त सोलहवें और सताहवें रूप में स्थित 'ब्भ' अंश के स्थान पर क्रम से तथा वैकल्पिक रूप से 'म्ह' और 'ज्झ' अंश की आदेश प्राप्ति होकर उक्त शेष चार रूप 'तुम्ह, तुज्झ, उम्ह और उज्झ भी सिद्ध हो जाते हैं। __'धणं रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-५० में की गई है।।३-९९।। तु वो भे तुब्भ तुब्भं तुब्भाण तुवाण तुमाण तुहाण उम्हाण आमा।।३-१००।। युष्मद आमा सहितस्य एते दशादेशा भवन्ति ।। तु। वो। भे। तुब्भ। तुब्भ। तुब्माण। तुवाण। तुमाण। तुहाण। उम्हाण। क्त्वा-स्यादेर्णस्वोर्वा (१-२५) इत्यनुस्वारे तुब्भाणं। तुवाणं। तुमाणं। तुहाणं। उम्हाण।। ब्मो म्ह-ज्झौ वेति। वचनात् तुम्ह। तुज्झा तुम्ह। तुझा तुम्हाण। तुम्हाणं तुज्झाण। तुज्झाणं। धणं एवं च त्रयोविंशति रूपाणि।। ___ अर्थः-संस्कृत-सर्वनाम शब्द 'युष्मद्' के षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'आम्' संयोजना होने पर प्राप्त संस्कृत रूप-'युष्माकम् अथवा वः के स्थान पर प्राकृत-रूपान्तर में सर्वप्रथम ये दस रूप 'तु, वो, भे, तुब्भ, तुब्भ, तुब्भाण, तुवाण, तुमाण, तुहाण और उम्हाण' आदेश-रूप से प्राप्त होते हैं। तत्पश्चातू-सूत्र-संख्या १-२७ के विधान से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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