SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 121 तुय्ह तुब्भ तहिन्तो ङसिना।। ३-९७।। युष्मदो उसिना सहितस्य एते त्रय आदेशा भवन्ति। तुम्ह तुब्भ तहिन्तो आगओ। ब्मो म्ह-ज्झो वेति वचनात् तुम्ह। तुज्झा एवं च पञ्च रूपाणि।। ___ अर्थः- संस्कृत सर्वनाम शब्द 'युष्मद्' के पञ्चमी विभक्ति के एवंकचन में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'ङसि=अस्' की संयोजना होने पर प्राप्त संस्कृत रूप त्वत्' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से (एवं वैकल्पिक रूप से) तीन रूपों की आदेश प्राप्ति हुआ करती है। वे आदेश-प्राप्त रूप ये हैं:-'तुम्ह, तुब्भ और तहिन्तो'। उदाहरण इस प्रकार है :- त्वत् आगतः-तुम्ह अथवा तुब्भ अथवा तहिन्तो आगओ अर्थात् तुम्हारे से-(तेरे से) आया हुआ है। सूत्र-संख्या ३-१०४ के विधान से उपर्युक्त आदेश प्राप्त द्वितीय रूप 'तुब्भ में स्थित 'ब्भ' अंश के स्थान पर 'म्ह' 'ज्झ की वैकल्पिक रूप से आदेश प्राप्ति हुआ करती है, तदनुसार त्वत्' के स्थान पर दो और आदेश प्राप्त रूपों का सद्भाव पाया जाता है। जो कि इस प्रकार है:- 'तुम्ह और तुज्झ'। यों पञ्चमी एकवचनान्त (में) 'युष्मद' के प्राप्त रूप त्वत्' के उपर्युक्त रीति से आदेश प्राप्त पांच रूप जानना। त्वत् (=त्वद्) संस्कृत पञ्चमी एकवचनान्त त्रिलिंगात्मक सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप पांच होते हैं:- तुम्ह, तुब्भ, तहिन्तो, तुम्ह और तुज्झ। इनमें सूत्र-संख्या ३-९७ से 'त्वत्' रूप के स्थान पर इन पांचों रूपों की आदेश प्राप्ति क्रम से (तथा वैकल्पिक रूप से) होकर क्रम से ये पांचों रूप 'तुम्ह, तुब्भ, तहिन्तो, तुम्ह और तुज्झ' सिद्ध हो जाते हैं। 'आगओ' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२०९ में की गई है। ३७९७।। तुब्भ-तुय्होय्होम्हा भ्यसि ॥३-९८॥ युष्मदो भ्यसि परत एते चत्वार आदेशा भवन्ति।। भ्यसस्तु यथाप्राप्तमेव।। तुब्भत्तो। तुम्हत्तो। उयहत्तो। उम्हत्तो। ब्मो म्ह-ज्झो वेति वचनात् तुम्हत्तो। तुज्झत्तो॥ एवं दो-दु-हि-हिन्तो-सुन्तोष्वप्युदाहार्यम्।। __ अर्थः-संस्कृत सर्वनाम शब्द 'युष्मद्' के प्राकृत रूपान्तर में पंचमी विभक्ति के बहुवचन में प्राप्त संस्कृत प्रत्यय 'भ्यस्' के प्राकृत प्रत्यय 'त्तो, दो=ओ, दु-उ, हि, हिन्तो और सुन्तो' प्राप्त होने पर 'युष्मद्' के स्थान पर चार आदेश-अंगों की क्रम से प्राप्ति हुआ करती है। तत्पश्चात् प्रत्येक आदेश-प्राप्त अंग में उक्त पंचमी बहुवचन बोधक प्रत्ययों की संयोजना होती है। वे चारों अंग रूप इस प्रकार हैं:- 'तुब्भ, तुम्ह, उयह और उम्ह'। सूत्र-संख्या ३-१०४ के विधान से उक्त आदेश-प्राप्त प्रथम अंग 'तुब्भ' में स्थित 'ब्भ' अंश के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'म्ह' और 'ज्झ' अंश रूप की प्राप्ति हुआ करती है; तदनुसार उक्त चार अंग रूपों के अतिरिक्त दो अंग रूपों की प्राप्ति और होती है; जो कि इस प्रकार है:- 'तुम्ह' और 'तुज्झ। यों पंचमी बहुवचन के प्रत्ययों के संयोजनार्थ कुल छह अंग रूपों की प्राप्ति होती है। पंचमी बहुवचन में 'भ्यस्' प्रत्यय के स्थान पर 'त्तो' दो-ओ, दु-उ, हि, हिन्तो और सुन्तों यों छः प्रत्ययों की आदेश प्राप्ति का विधान है। ये छह ही प्रत्यय क्रम से उक्त छह अंगों में से प्रत्येक अंग में संयोजित होते हैं; तदनुसार पंचमी बहुवचन में संस्कृत रूप- 'युष्मत्' के प्राकृत रूप छत्तीस होते हैं। उदाहरण इस प्रकार है:त्तो-प्रत्यय-तुब्भत्तो, तुम्हत्तो, उहत्तो, उम्हत्तो, तुम्हत्तो, तुज्झत्तो। ओ-प्रत्यय-तुब्भाओ, तुम्हाओ, उय्याहो, उम्हाओ, तुम्हाओ, तुज्झाओ। उ-प्रत्यय-तुब्भाउ, तुय्याहु, उय्याउ, उम्हाउ, तुम्हाउ, तुज्झाउ, । यों शेष प्रत्यय 'हि-हिन्तों' और 'सुन्तो' की संयोजना करके स्वमेव समझ लेना चाहिये। युष्मत् संस्कृत पञ्चमी बहुवनान्त (त्रिलिंगात्मक) सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप-तुब्मत्तो, तुम्हत्तो, उव्हत्तो, उम्हत्तो, तुम्हत्तो और तुज्झत्तो होते हैं। इनमें से प्रथम चार रूपों में सूत्र-संख्या ३-९८ से मूल संस्कृत शब्द 'युष्मद्' के स्थान पर प्राकृत में चार अंग रूप 'तुब्भ-तुम्ह-उयह-उम्ह' की आदेश प्राप्ति; शेष दो रूपों में सूत्र-संख्या ३-१०४ के विधान से पूवोक्ति प्राप्त प्रथम अंग 'तुब्भ' में स्थित 'ब्भ' अंश के स्थान पर क्रम से 'म्ह' और ज्झ' की प्राप्ति होने से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy