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________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 115 स्त्रीलिंग में 'अमू' सर्वनाम शब्द के रूप 'वहू' आदि दीर्घ ऊकारान्त शब्दों के रूपों के समान ही समझ लेना चाहिये। 'अमू' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ३-८७ में की गई है। 'पुरिसो' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १-४२ में की गई है। अमी संस्कृत प्रथमा बहुचनान्त पुल्लिंग विशेषण ( और सर्वनाम ) रूप है। इसका प्राकृत रूप अमुणो होता है। इसमें सूत्र - संख्या १ - ११ से मूल संस्कृत शब्द 'अदस्' में स्थित अन्त्य व्यञ्जन 'स्' का लोप; ३-८८ से 'द' के स्थान पर 'मु' व्यञ्जन की आदेश प्राप्ति और ३- २२ से प्राप्तांग 'अमु' में प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में (उकारान्त- पुल्लिंग में ) संस्कृत प्रत्यय 'जस्' के स्थान पर प्राकृत में ' णो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'अमुणो' रूप सिद्ध हो जाता है। 'पुरिसा' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या २- २०२ में की गई है। 'अमुं' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ३-८७ में की गई है। 'वर्ण' रूप की सिद्धि - सूत्र - संख्या १ - १७२ में की गई है। संस्कृत प्रथमा द्वितीया बहुवचनान्त नपुंसकलिंग विशेषण ( और सर्वनाम ) रूप है। इसके प्राकृत रूप अमू और अमूणि होते हैं। इनमें ' अमु' अंग रूप की प्राप्ति उपर्युक्त विधि अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र संख्या ३ - २६ से प्राप्तांग 'अमु' में स्थित अन्त्य ह्रस्व स्वर 'उ' को दीर्घ स्वर 'ऊ' की प्राप्ति कराते हुए क्रम से 'इं' और 'णि' प्रत्यय की प्रथमा द्वितीया बहुवचन में एवं नपुंसक लिंगार्थ प्राप्ति होकर क्रम से दोनों रूप अमूइं और अमूणि सिद्ध हो जाते हैं। वनानि संस्कृत प्रथमा व द्वितीया बहुचनान्त संज्ञा रूप है इसका प्राकृत रूप वणाणि होता है। इसमें सूत्र - संख्या १-२२८ से मूल संस्कृत शब्द 'वन' में स्थित 'न' के स्थान पर 'ण' की प्राप्ति और ३ - २६ से प्राप्तांग 'वण' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' को दीर्घ स्वर 'आ' की प्राप्ति कराते हुए नपुंसकलिंगार्थ प्रथमा-द्वितीया के बहुवचन में प्राकृत में 'णि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर वणाणि रूप सिद्ध हो जाता है। असौ संस्कृत प्रथमा एकवचनान्त स्त्रीलिंग विशेषण (और सर्वनाम) रूप है। इसका प्राकृत रूप अमू होता है। इसमें 'अमु' अंग रूप की प्राप्ति उपर्युक्त विधि अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र - संख्या ३ - १९ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में स्त्रीलिंग में उकारान्त में संस्कृत प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में अन्त्य ह्रस्व 'उ' को दीर्घ स्वर 'ऊ' की प्राप्ति होकर अमू रूप सिद्ध हो जाता है। 'माला' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या २ - १८२ में की गई है। अमू संस्कृत प्रथमा-द्वितीया बहुवचनान्त स्त्रीलिंग विशेषण ( और सर्वनाम ) रूप है। इसके प्राकृत रूप अमूड और अओ होते हैं। इनमें 'अमु' अंग रूप की प्राप्ति उपर्युक्त विधि अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र - संख्या ३ - २७ से प्राप्तांग 'अमु' स्थित अन्त्य ह्रस्व स्वर 'उ' को दीर्घ स्वर 'ऊ' की प्राप्ति कराते हुए प्रथमा द्वितीया के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'जस्' और 'शस्' के स्थान पर दोनों विभक्तियों में समान रूप से 'उ' और 'ओ' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर दोनों रूप अमू और अमुओ सिद्ध हो जाते हैं। 'मालाओ' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ३ - २७ में की गई है। अमुना संस्कृत तृतीया एकवचनान्त पुल्लिंग सर्वनाम रूप है। इसका प्राकृत रूप अमुणा होता है। इसमें 'अमु' अंग रूप की प्राप्ति उपर्युक्त विधि- अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र - संख्या ३ - २४ से तृतीया विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'टा' के स्थान पर प्राकृत में 'णा' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'अमुणा' रूप सिद्ध हो जाता है। अमीभिः संस्कृत तृतीया बहुवचनान्त पुल्लिंग सर्वनाम रूप है। इसका प्राकृत रूप अमूहिं होता है। इसमें 'अमु' अंग रूप की प्राप्ति उपर्युक्त विधि-अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र - संख्या ३ - १६ से प्राप्तांग 'अमु' में स्थित अन्त्य हस्व स्वर 'उ' को आगे तृतीया बहुवचन बोधक प्रत्यय का सद्भाव होने से दीर्घ 'ऊ' की प्राप्ति और ३-७ से तृतीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'भिस्' के स्थान पर प्राकृत में 'हिं' प्रत्यय की प्राप्ति होकर अमूहिं रूप सिद्ध हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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