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114 : प्राकृत व्याकरण
हृदयेण संस्कृत तृतीया एकवचनान्त संज्ञा रूप है। इसका प्राकृत रूप हिअएण होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१२८ से 'ऋ' के स्थान 'इ' की प्राप्ति; १-१७७ से 'द्' और 'य' का लोप; ३-१४ से प्राप्तांग हृदय से हिअअ' में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर आगे तृतीया विभक्ति के एकवचन बोध प्रत्यय का सद्भाव होने से 'ए' की प्राप्ति और ३-६ से प्राप्तांग 'हिअए' में तृतीया विभक्ति के एकवचन से संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'टा' के स्थान पर प्राकृत में 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'हिअएण' रूप सिद्ध हो जाता है। 'हसइ' क्रियापद रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या २-१९८ में की गई है।
मारुत-तनयः संस्कृत प्रथमा एकवचनान्त पुल्लिंग संज्ञा रूप है। इसका प्राकृत रूप मारुय-तणओ होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१७७ से प्रथम 'त्' का लोप; १-१८० से लोप हुये 'त्' के पश्चात् शेष रहे हुए 'अ' के स्थान पर 'य' की प्राप्ति; १-२२८ से 'न' के स्थान पर 'ण' की प्राप्ति; १-१७७ से 'य' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में प्राप्तांग 'मारूअ-तणअ' में संस्कृत प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'डो-ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मारूय-तणओ रूप सिद्ध हो जाता है।
'अह' रूप सिद्धि ऊपर इसी-सूत्र में की गई है।
कमल-मुखी संस्कृत प्रथमा एकवचनान्त स्त्रीलिंग विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप कमल-मुही होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१८७ से 'ख' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-१९ से प्रथमाविभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में अन्त्य दीर्घ स्वर 'ई' को यथावत् स्थिति प्राप्त होकर कमल-मुही रूप सिद्ध हो जाता है।
पुरिसो रूप की सिद्धि-सूत्र-संख्या १-४२ में की गई है। महिला रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१४६ में की गई है। वणं रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१७२ में की गई है।।३-८७।।
मुःस्यादौ ३-८८।। अदसो दस्य स्यादौ परे मुरादेशो भवति।। अमू पुरिसो। अमुणो पुरिसा। अमुंवणं। अमूई वणइं। अमूणि वणाणि। अमू माला। अमूउ अमूओ मालाओ। अमुणा। अमूहि।। उसि। अमूओ। अमूठ। अमूहिन्तो।। भ्यस्। अमूहिन्तो। अमूसुन्तो।। उस्। अमुणो। अमुस्स। आम् अमूण।। डि अमुम्मि।। सुप्। अमूसु।।। ___ अर्थः- संस्कृत सर्वनाम शब्द 'अदस्' के प्राकृत रूपान्तर में विभक्तिबोधक प्रत्यय 'सि' आदि परे रहने पर मूल शब्द 'अदस्' में स्थित 'द' व्यञ्जन के स्थान पर (प्राकृत में) 'मु व्यञ्जन की आदेश- प्राप्ति होती है। उदाहरण इस प्रकार है- असौ पुरुषः अमू पुरिसो। अमी पुरुषाः अमुणो पुरिसा। अदः वनम् अमुंवणं। अमूनि वनानि अमूई वणाई अथवा अमूणि वणाणि। असौ माला=अमू माला। अमू माला।। अमूउ अथवा अमूओ मालाओ। अन्य विभक्तियों के रूप इस प्रकार है:विभक्ति नाम
एकवचन
बहुवचन तृतीया (अमुना=)
अमुणा।
(अमीभिः=) अमूहि।। पंचमी (अमुष्मात्-)
अमूओ, अमूउ, (अमीभ्यः=) अमूहिन्तो अमूहिन्तो।
अमूसुन्तो। षष्ठी (अमुष्य=)
अमुणो अमुस्स। (अमीषाम्=) अमूण। सप्तमी (अमुष्मिन्-)
(अमीषु=) अमूसु। उपर्युक्त विभक्तियों में इन वर्णित रूपों के अतिरिक्त अन्य रूपों का सद्भाव 'गुरु' आदि उकारान्त शब्दों के रूपों के समान ही जानना चाहिये।
अमुम्मि।
अनु
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