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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित 107 स्पष्ट हो जाता है कि 'इदम्' तद् और एतद्' सर्वनामों के षष्ठी विभक्ति के एकवचन में समान रूप से 'से' और षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में भी समान रूप से 'सिं' रूप की आदेश प्राप्ति होती है।
वैकल्पिक पक्ष का सद्भाव होने से पक्षान्तर में 'इदम्, तद् और एतद्' के जो दूसरे रूप होते हैं; वे एकवचन और बहुवचन में क्रम से इस प्रकार हैं:- इदम् के (अस्य) इमस्स और (एषाम्) इमेसिं और इमाण । तद् के ( तस्य = ) तस्स और ( तेषाम = ) तेसिं और ताण । एतद् के ( एतस्य = ) एअस्स और (एतेषाम् = ) एएसिं और एआण । कोई-कोई व्याकरण-कार 'इदम्' और 'तद्' सर्वनामों के प्राकृत रूपान्तर में षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में भी एकवचन के समान ही 'मूल शब्द और आम्' प्रत्यय के स्थान पर 'से' आदेश प्राप्ति मानते हैं। इन व्याकरणकारों की ऐसी मान्यता के कारण से षष्ठी विभक्ति के दोनों वचनों में 'शब्द और प्रत्यय के स्थान पर' 'से' रूप की प्राप्ति होकर 'एकरूपता' का सद् भाव होता है।
अस्य संस्कृत षष्ठी एकवचनान्त सर्वनाम पुल्लिंग रूप है। इसके प्राकृत रूप 'से' और इमस्स होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या ३-८१ से सम्पूर्ण रूप 'अस्य' के स्थान पर प्राकृत में 'से' रूप की आदेश प्राप्ति होकर प्रथम रूप से सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप 'इमस्स' की सिद्धि सूत्र संख्या ३-७४ में की गई हैं।
शीलम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप सीलं होता है। इसमें सूत्र - संख्या १ - २६० से 'श' के स्थान पर 'स्' की प्राप्ति; ३ - २५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में नपुंसकलिंग में संस्कृत प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १ - २३ से प्राप्त प्रत्यय 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर 'सील' रूप सिद्ध हो जाता है।
गुणाः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप गुणा होता है। इसमें सूत्र - संख्या ३- १२ से मूल अंग 'गुण' में स्थित अन्त्य ह्रस्व स्वर 'अ' के स्थान पर ' आगे प्रथमा विभक्ति के बहुवचन बोधक प्रत्यय का सद्भाव होने से' 'आ' की प्राप्ति और ३-४ से प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में अकारान्त पुल्लिंग में संस्कृत प्रत्यय 'जस्' का प्राकृत में लोप होकर 'गुणा' रूप सिद्ध हो जाता है।
एषाम् संस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त पुल्लिंग सर्वाम रूप है। इसके प्राकृत रूप 'सिं', 'इमेसिं' और 'इमाण' होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र - संख्या ३-८१ से सम्पूर्ण रूप 'एषाम्' के स्थान पर प्राकृत में 'सिं' रूप की आदेश प्राप्ति होकर प्रथम रूप 'सिं' सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय और तृतीय रूप 'इमेसिं' तथा 'इमाण' की सिद्धि सूत्र - संख्या ३ - ६१ में की गई है।
'उच्छाहो' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १ - ११४ में की गई
तस्य संस्कृत पुल्लिंग षष्ठी एकवचनान्त सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप 'से' और तस्स होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र - संख्या ३-८१ से सम्पूर्ण रूप 'तस्य' के स्थान पर प्राकृत में 'से' रूप की आदेश प्राप्ति होकर प्रथम रूप 'से' सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप 'तस्स' की सिद्धि सूत्र संख्या २-१८६ में की गई है।
'सील' रूप की सिद्धि इसी सूत्र में उपर की गई है।
तेषाम् संस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त पुल्लिंग सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप 'सिं', 'तेसिं' और 'ताण' होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र - संख्या ३-८१ से सम्पूर्ण रूप 'तेषाम्' के स्थान पर प्राकृत में 'सि' रूप की आदेश प्राप्ति होकर प्रथम रूप 'सि' सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप सिं की सिद्धि सूत्र - संख्या ३ - ६१ में की गई है।
तृतीय रूप 'ताण' की सिद्धि सूत्र संख्या ३-३३ में की गई है। 'गुणा' रूप की सिद्धि इसी सूत्र में ऊपर की गई है।
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