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________________ 100: प्राकृत व्याकरण ' त्रप्' प्रत्यय से संबंधित उदाहरण यों हैं:- कुत्र = कत्थ अथवा कहि और कह । 'तस्' प्रत्यय के उदाहरण :- कृतः - कओ; कत्तो और कदो । 'को' सर्वनाम रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या २ - १९८ में की गई है। 'के' सर्वनाम रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ३-५८ की गई है। 'क' सर्वनाम रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ३-३३ में की गई है। कान् संस्कृत द्वितीया बहुवचनान्त पुल्लिंग सर्वनाम रूप है। इसका प्राकृत रूप के होता है। इसमें सूत्र - संख्या ३-७१ से मूल संस्कृत सर्वनाम शब्द 'किम्' के स्थान पर प्राकृत में 'क' अंग रूप की आदेश प्राप्ति; ३ - १४ से प्राप्तांग 'क' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के स्थान पर ' आगे द्वितीया बहुवचन बोधक प्रत्यय का सद्भाव होने से' 'ए' की प्राप्ति और ३-४ से प्राप्तांग 'के' में द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'जस्' का प्राकृत में लोप होकर 'के' रूप सिद्ध हो जाता है। 'केण' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १ - ४१ में की गई है। 'कत्थ' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या २ - १६१ में की गई है। कुतः संस्कृत (अव्ययात्मक) रूप है। इसके प्राकृत रूप कओ, कत्तो और कदो होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र - संख्या ३ - ७१ से मूल संस्कृत सर्वनाम शब्द 'किम्' के स्थान पर प्राकृत में 'क' अंग रूप की आदेश प्राप्ति; १ - १७७ से 'त्' का लोप और १-३७ से लोप हुए 'त' के पश्चात् शेष रहे हुए विसर्ग के स्थान पर 'ओ' की प्राप्ति होकर प्रथम रूप कओ सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप 'कत्तो' और तृतीय रूप 'कदो' की सिद्धि सूत्र - संख्या २-१६० में की गई है । ३ - ७१ ।। इदम इमः ।। ३-७२।। इदमः स्यादौ परे इम आदेशो भवति ।। इमो । इमे । इमं । इमे इमेण । । स्त्रियामपि । इमा || अर्थ:- संस्कृत सर्वनाम शब्द 'इदम्' के प्राकृत रूपान्तर में विभक्तिबोधक प्रत्यय परे रहने पर 'इम' अंग रूप आदेश की प्राप्ति होती है। जैसे:- अयम्-इमो, इमे इमे; इमम् इमं ; इमान् = इमे, अनेन इमेण इत्यादि । स्त्रीलिंग-अवस्था में भी 'इदम्' शब्द के स्थान पर प्राकृत में 'इमा' अंग रूप आदेश की प्राप्ति होती है। जैसे:- इयम्-इमा इत्यादि । अयम् संस्कृत प्रथमा एकवचनान्त पुल्लिंग सर्वनाम रूप है। इसका प्राकृत रूप इमो होता है। इसमें सूत्र - संख्या ३-७२ मूल संस्कृत सर्वनाम शब्द 'इदम्' के स्थान पर प्राकृत में 'इम' अंग रूप की आदेश प्राप्ति और ३-२ से प्राप्तांग 'इम' में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'डो=ओ' प्रत्यय की आदेश प्राप्ति होकर इमो रूप सिद्ध हो जाता है। संस्कृत प्रथमा बहुवचनान्त पुल्लिंग सर्वनाम रूप है। इसका प्राकृत रूप इमे होता है। इसमें 'इम' अंग रूप की प्राप्ति उपर्युक्त (३-७२के) विधान के अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र - संख्या ३ - ५८ से प्राप्तांग 'इम' में प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में पुल्लिंग में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'जस्' के स्थान पर 'डे=ए' प्रत्यय की आदेश प्राप्ति होकर इमे रूप सिद्ध हो जाता है। 'इम' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या २ - १८१ में की गई है। इमान संस्कृत द्वितीया बहुवचनान्त पुल्लिंग सर्वनाम रूप है। इसका प्राकृत रूप इमे होता है । इमे 'इम' अंग रूप की प्राप्ति उपर्युक्त (३-७२के) विधान के अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र - संख्या ३-१४ से प्राप्तांग 'इम' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के स्थान पर ‘आगे द्वितीया बहुवचन बोधक प्रत्यय का सद्भाव होने से 'ए' की प्राप्ति और ३-४ से प्राप्तांग 'इमे' में द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में पुल्लिंग में संस्कृत प्रत्यय 'जस् का प्राकृत में लोप होकरा इमे सिद्ध हो जाता है। 'इमेण' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ३ - ६९ में की गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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