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________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 91 हलन्त व्यञ्जन 'द्' का लोप और ३-६३ से प्राप्तांग 'ज' में षष्ठी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'ङस् अस्' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से डास-आस प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप जास सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप-(यस्य ) जस्स में पूर्वोक्त रीति से प्राप्तांग 'ज'में सूत्र-संख्या ३-१० से षष्ठी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ङस्-अस्' के स्थान पर प्राकृत में 'स्स' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप जस्स भी सिद्ध हो जाता है। तस्य संस्कृत षष्ठी एकवचनान्त पुल्लिंग के सर्वनाम का रूप है। इसके प्राकृत रूप तास और तस्स होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'तद्' में स्थित हलन्त व्यञ्जन 'द्' का लोप, और ३-६३ से 'त' में षष्ठी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय ङस् अस्' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'डास-आस' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप तास सिद्ध हो जाता है। तस्स रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या २-१८६ में की गई है। कस्याः संस्कृत षष्ठी एकवचनान्त स्त्रीलिंग सर्वनाम का रूप है। इसके प्राकृत रूप कास और काए होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या ३-७१ से मूल संस्कृत शब्द 'किम्' के स्थान पर 'क' रूप की प्राप्ति; ३-३२ और २-४ के निर्देश से 'क' में पुल्लिंगत्व से स्त्रीलिंगत्व के निर्माण हेतु 'आ' प्रत्यय की प्राप्ति और ३-६३ की वृत्ति से प्राप्तांग 'का' में षष्ठी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ङस् अस' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'डास-आस' प्रत्यय की आदेश प्राप्ति होकर प्रथम रूप कास सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप (कस्या=) काए में सूत्र-संख्या ३-२९ से उपर्युक्त रीति से प्राप्तांग 'का' में षष्ठी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ङस् अस्' के स्थान पर प्राकृत में 'ए' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप काए सिद्ध हो जाता है। 'धणं' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-५० में की गई है। तस्याः संस्कृत षष्ठी एकवचनान्त स्त्रीलिंग के सर्वनाम का रूप है। इसके प्राकृत रूप तास और ताए होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'तद्' में स्थित अन्त्य व्यञ्जन 'द' का लोप; ३-३२ और २-४ के निर्देश से 'त' में पुल्लिगत्व के निर्माण हेतु 'आ' प्रत्यय की प्राप्ति और ३-६३ की वृत्ति से 'ता' में षष्ठी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ङस् अस्' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'डास-आस' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप तास सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप-(तस्या=) ताए में सूत्र-संख्या ३-२९ से उपर्युक्त रीति से 'ता' में षष्ठी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ङस् अस्' के स्थान पर प्राकृत में 'ए' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप ताए सिद्ध हो जाता है। ३-६३।। ईद्भ्यः स्सा से ।। ३-६४ ।। किमादिभ्य ईदन्तेभ्यः परस्य उसः स्थाने स्सा से इत्यादेशो वा भवतः। टा-उस्-डे रदादिदेवा तु उसेः (३-२९) इत्यस्यापवादः। पक्षे अदादयोऽपि।। किस्सा। कीसे। की। कीआ। कीइ। कीए।। जिस्सा। जिसे। जी। जीआ। जीइ। जीए।। तिस्सा। तीसे। ती। तीआ। तीइ। तीए।। अर्थः- संस्कृत सर्वनाम 'किम्'-यद्-तद् के प्राकृत ईकारान्त स्त्रीलिंग रूप-की-जी-ती' में षष्ठी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ङस् अस्' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से एवं क्रम से 'स्सा' और 'से' प्रत्ययों की प्राप्ति हुआ करती है। इसकी तृतीय पाद के उन्नतीसवें सूत्र में यह विधान निश्चित किया गया है कि संस्कृत षष्ठी विभक्ति के एकवचन में प्रत्यय 'ङस् अस्' के स्थान पर प्राकृत में स्त्रीलिंग वाले शब्दों में 'अत्=अ; आत-आ; इत-इ' और एत्=ए' प्रत्ययों की क्रम से प्राप्ति होती है। तदनुसार उक्त सूत्र-संख्या ३-२९ के प्रति इस सूत्र (३-६४) को अपवाद रूप सूत्र समझना चाहिये। इस प्रकार इस अपवाद रूप स्थिति को ध्यान में रखकर ही ग्रन्थ-कर्ता ने 'वैकल्पिक स्थिति का उल्लेख किया है; तदनुसार वैकल्पिक-स्थिति का सद्भाव होने से पक्षान्तर में सूत्र-संख्या ३-२९ के आदेश से स्त्रीलिंग वाले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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