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________________ 90 : प्राकृत व्याकरण केसिं की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-६१ में की गई है। तेषाम् संस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त पुल्लिंग सर्वनाम का रूप है। इसके प्राकृत रूप तास और तेसिं होते हैं। इन में से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द "तद्" में स्थित अन्त्य व्यञ्जन "द्" का लोप, ३-६२ से प्राकत-प्राप्तांग"त" में षष्टी विभक्ति के बहवचन में संस्कृत प्रत्यय "आम्" के स्थान पर प्राकृत में "डास" प्रत्यय का प्राप्ति, प्राप्त प्रत्यय "डास" में स्थित "ड" इत्संज्ञक होने से"त" में स्थित अन्त्य स्वर"अ"की इत्संज्ञा होकर इस"अ" का लोप एवं हलन्त “त्"में उपरोक्त "डास आस" प्रत्यय की संयोजना होकर प्रथम रूप तास सिद्ध हो जाता है। तेसिं रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-६१ में की गई है।३-६२।। किंयत्तद्भ्योङस : ।। ३-६३।। एभ्यः परस्य उसः स्थाने डास इत्यादेशो वा भवति। उसः स्सः (३-१०) इत्यास्या पवादः। पक्षे सोऽपि भवति।। कास। कस्स। जास। जस्स। तास। तस्स। बहुलाधिकारात्। किंतद्भयामाकारान्ताभ्यामपि डासादेशो वा। कस्या धनम्। कास धणं। तस्या धनम्। तास धणं। पक्षे। काए। ताए।। अर्थः- संस्कृत सर्वनाम किम् यद् और तद् के क्रम से प्राप्त प्राकृत रूप "क","ज"और "त" में षष्ठी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय "ङस् अस्" के स्थान पर प्राकृत में"डास" का आदेश वैकल्पिक रूप से हुआ करता है। प्राकृत में आदेश रूप "डास" में स्थित "ड्" इत्संज्ञक है; तदनुसार प्राकृत सर्वनाम रूप 'क', 'ज' और 'त' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' की इत्संज्ञा होने से इस अन्त्य स्वर 'अ' का लोप हो जाता है। एवं तत्पश्चात् शेष रहे हुए हलन्त सर्वनाम रूप 'क्','ज्' और 'त्' में उक्त षष्ठी एकवचन का प्रत्यय 'डास आस' की संयोजना होती है। जैसे:- कस्य-कास; यस्य-जास और तस्य-तास। इसी तृतीय पाद के दसवें सूत्र में यह विधान निश्चित किया गया है कि संस्कृत षष्ठी विभक्ति के एकवचन में प्रत्यय 'डस् अस्' के स्थान पर प्राकृत में 'स्स' का आदेश होता है। तदनुसार उक्त सूत्र-संख्या ३-१० के प्रति इस सूत्र (३-६३) को अपवाद रूप सूत्र-समझना चाहिये। इस प्रकार इस अपवाद रूप स्थिति को ध्यान में रखकर ही ग्रन्थ-कर्ता ने 'वैकल्पिक-स्थिति' का उल्लेख किया है; तदनुसार वैकल्पिक-स्थिति का सद्भाव होने से पक्षान्तर में सूत्र-संख्या ३-१० के आदेश से 'क' 'ज' और 'त' सर्वनामों में षष्ठी विभक्ति के एकवचन में प्राकृत में 'स्स' प्रत्यय का अस्तित्व भी स्वीकार करना चाहिये। इस विषयक उदाहरण इस प्रकार हैं:- कस्य कस्स; यस्य जस्स और तस्य-तस्स। ___ 'बहुलं' सूत्र का अधिकार होने से 'क' के स्त्रीलिंग रूप 'का' में और 'त' के स्त्रीलिंग रूप 'ता' में भी षष्ठी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'डस् अस्' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'डास्' आदेश-हुआ करता है। प्राकृत में आदेश प्राप्त 'डास' में स्थित 'ड्' सत्संज्ञक है; तद्नुसार प्राकृत सर्वनाम-स्त्रीलिंग रूप 'का'और 'ता' में स्थित अन्त्य स्वर 'आ' की इत्संज्ञा होने से इस अन्त्य स्वर 'आ' का लोप हो जाता है। एवं तत्पश्चात् शेष रहे हुए हलन्त सर्वनाम रूप 'क्' और 'त्' में उक्त षष्ठी विभक्ति एकवचन बोधक-प्रत्यय' डास-आस' की संयोजना होती है।जैसे:-कस्या धनम् कास धणं? और तस्या धनम्=तास धणं? वैकल्पिक पक्ष का सद्भाव होने से पक्षान्तर में 'कस्या' का 'काए' रूप भी बनता है और 'तस्या' का 'ताए' रूप भी होता है। कस्य संस्कृत षष्ठी एकवचनान्त सर्वनाम पुल्लिग का रूप है। इसके प्राकृत रूप कास और कस्स होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या ३-७१ से मूल संस्कृत शब्द 'किम्' के स्थान पर प्राकृत में 'क' रूप की प्राप्ति और ३-६३ से 'क' में षष्ठी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय ङस् अस् के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'डास-आस' प्रत्यय की (आदेश) प्राप्ति होकर प्रथम रूप कास सिद्ध हो जाता है। कस्स रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या २-२०४ में की गई हैं। यस्य संस्कृत षष्ठी एकवचनान्त सर्वनाम पुल्लिंग का रूप है। इसके प्राकृत रूप जास और जस्स होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या १-२४५ से मूल संस्कृत शब्द 'यद् में स्थित 'य' के स्थान पर 'ज' की प्राप्ति; १-११ से अन्त्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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