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________________ ग्रन्थकार आचार्य हेमचन्द्र और उनका प्राकृत व्याकरण जैनाचार्यों में आचार्य हेमचन्द्र बहमुखी प्रतिभा के धनी कवि हैं। उनका जन्म गजरात के धन्धका नामक गाँव में वि सं ११४५ (सन् १०८८) की कार्तिक पूर्णिमा को हुआ था। हेमचन्द्र के पिता चाचदेव (चाचिगदेव) शैव धर्म को मानने वाले वणिक् थे। उनकी पत्नी का नाम पाहिनी था। हेमचन्द्र के बचपन का नाम चांगदेव था। चांगदेव बचपन से ही प्रतिभासम्पन्न एवं होनहार बालक था। उसकी विलक्षण प्रतिभा एवं शुभ लक्षणों को देखकर आचार्य देवचन्द्रसूरि ने माता पाहिनी से चांगदेव को मांग लिया व उसे अपना शिष्य बना लिया। आठ वर्ष की अवस्था में चांगदेव की दीक्षा सम्पन्न हुई। दीक्षा के उपरान्त उसका नाम सोमचन्द्र रखा गया। सोमचन्द्र ने अपने गुरु से तर्क, व्याकरण, काव्य, दर्शन, आगम आदि अनेक ग्रंथों का गहन अध्ययन किया। उनकी असाधारण प्रतिभा और चरित्र के कारण सोमचन्द्र को २१ वर्ष की अवस्था में वि सं ११६६ में सूरिपद प्रदान किया गया। तब सोमचन्द्र का नाम हेमचन्द्रसूरि रख दिया गया। ___ हेमचन्द्रसूरि का गुजरात के राज्य परिवार से घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। उनके पाण्डित्य से प्रभावित होकर गुर्जरेश्वर जयसिंह सिद्धराज ने उन्हें व्याकरण ग्रन्थ लिखने की प्रेरणा दी थी। हेमचन्द्रसूरि ने अपनी अनन्य प्रतिभा का प्रयोग करते हुए जो संस्कृत और प्राकृत भाषा का प्रसिद्ध व्याकरण लिखा उसका नाम 'सिद्ध-हेम-व्याकरण' रखा, जिससे सिद्धराज का नाम भी अमर हो गया। हेमचन्द्र का कुमारपाल के साथ भी घनिष्ठ सम्बन्ध था। कुमारपाल का राज्याभिषेक वि सं. ११६४ में हआ था, किन्त इस राज्यप्राप्ति की भविष्यवाणी हेमचन्द्र ने सात वर्ष पहले ही कर दी थी। कमारपाल ने हेमचन्द्र से बहुत कुछ शिक्षा प्राप्त की थी अतः वह उन्हें अपना गुरु मानता था। गुजरात के प्रतापी राजाओं की इस घनिष्ठता के कारण हेमचन्द्रसूरि ने निश्चिन्त होकर अनेक विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थों की रचना की है। आचार्य हेमचन्द्र ने व्याकरण, छन्द, अलंकार, कोष, काव्य एवं चरित आदि विभिन्न विषयों पर अनेक ग्रन्थ लिखे हैं। उसमें से कुछ प्रमुख ग्रन्थों का परिचय इस प्रकार है१. सिद्वहेमशब्दानुशासन- इस विशाल ग्रन्थ में आठ अध्याय हैं। व्याकरण के क्षेत्र में जो स्थान पाणिनि तथा शाकटायन के व्याकरण ग्रन्थों को प्राप्त है, वही प्रतिष्ठा हेमचन्द्र के इस ग्रन्थ को मिली है। इस ग्रन्थ के प्रथम सात अध्यायों में संस्कृत व्याकरण एवं आठवें अध्ययन में प्राकृत व्याकरण का वर्णन है। पूरे ग्रन्थ में ३५६६ सूत्र हैं। प्रभावकचरित से ज्ञात होता है कि इस व्याकरण ग्रन्थ की तीन सौ विद्वानों ने प्रतिलिपियाँ करके उन्हें देश के कोने-कोने में पहुँचाया था। कालान्तर में भी इस व्याकरण पर सर्वाधिक व्याख्या साहित्य लिखा ग व्याकरण ग्रन्थ को समझने के लिए हेमचन्द्र ने द्वयाश्रय महाकाव्य की रचना की थी। हेमशब्दानुशासन सांस्कृतिक दृष्टि से भी विशेष महत्व का ग्रन्थ है। २. प्रमाणमीमांसा- जैन न्याय के क्षेत्र में आचार्य हेमचन्द्र ने अन्ययोग व्यवच्छेदिका एवं अयोगव्यवच्छेदिका नामक द्वात्रिशिकाओं के अतिरिक्ति "प्रमाण-मीमांसा' नामक ग्रन्थ भी प्रस्तुत किया है। इस ग्रन्थ में सम्पूर्ण भारतीय दर्शन को जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत कर दिया गया है। योगशास्त्र इनकी दूसरी महत्वपूर्ण दार्शनिक रचना है। ३. त्रिशष्टिशलाकापुरुषचरितं- इस महान ग्रन्थ की रचना कुमारपाल के अनुरोध से आचार्य हेमचन्द्र ने की थी। इस विशालकाय ग्रन्थ में जैनों के प्रसिद्ध कथानक, इतिहास, पौराणिक कथाओं एवं धर्म दर्शन का विस्तार से वर्णन हुआ है। यह सम्पूर्ण ग्रन्थ १० पर्यों में विभक्त है। गुजरात के समाज एवं संस्कृति की जानकारी के लिए भी इस ग्रन्थ में पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है। काव्य एवं शब्दशास्त्र की दृष्टि से भी इस ग्रन्थ का विशेष महत्व है। ग्रन्थ की प्रशस्ति से कई ऐतिहासिक तथ्य भी प्राप्त होते हैं। ४. कोशग्रन्थ- आचार्य हेमचन्द्र ने कोश साहित्य से सम्बन्धित चार ग्रन्थ लिखे हैं- अभिधानचिन्तामणि, हेमअनेकार्थसंग्रह, देशीनाममाला एवं निघंटुकोश। इन ग्रन्थों का संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश भाषाओं के • Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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