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________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 79 प्राप्ति उपर्युक्त विधि=अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र - संख्या ३ - ११ से सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ङि=इ के स्थान पर प्राकृत में 'म्मि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर रायाणम्मि रूप सिद्ध हो जाता है। राजसु संस्कृत सप्तम्यन्त बहुवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप रायाणेसु होता है। इसमें 'राजन् रायाण' अंग की प्राप्ति उपर्युक्त विधि = अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र- सख्या ३- १५ से प्राप्तांग 'रायाण' में स्थित अन्त्य 'अ' के आगे सप्तमी-बहुवचन- (बोधक - प्रत्यय) का सद्भाव होने से' 'ए' की प्राप्ति और ४-४४८ से सप्तमी विभक्ति के बहुवचन संस्कृत प्रत्यय 'सु' के समान ही प्राकृत में भी 'सु' प्रत्यय की प्राप्ति होकर रायाणेसु रूप सिद्ध हो जाता है। 'राया' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ३ - ४९ में की गई है। युवा संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप जुवाणो और जुआ होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र - संख्या १ - २४५ से 'य्' के स्थान पर 'ज्' की प्राप्ति; ३-५६ से मूल संस्कृत शब्द 'युवन्' में स्थित अन्त्य 'अन्' अवयव के स्थान पर 'आण' आदेश की प्राप्ति; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में प्राप्त अकारान्त अंग 'जुवाण' में संस्कृत प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'डो=ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप जुवाणो सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप- (युवन् =) जुआ में सूत्र - संख्या १ - १७७ से 'व' का लोप; १ - २४५ से 'य्' के स्थान पर 'ज्' की प्राप्ति; १-११ से अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'न्' का लोप और ३- ४९ से ( तथा ३-५६ के निर्देश से) प्राप्तांग अकारान्त 'जुव' में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'सि' का सद्भाव होने से प्राकृत में अन्त्य 'अ' को 'आ' की प्राप्ति; एवं १ - ११ से प्राप्त उक्त प्रत्यय 'सि=स्' का लोप होकर प्रथमान्त एकवचन रूप जुआ सिद्ध हो जाता है। युवा जनः संस्कृत प्रथमान्त एकवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप जुवाण - जणो होता है। इसमें 'जुवाण' रूप की प्राप्ति उपर्युक्त विधि अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र - संख्या १ - २२८ से अन्त्य 'न' के स्थान पर 'ण' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में संस्कृत प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'डो=ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर जुवाण - जणो रूप सिद्ध हो जाता है। ब्रह्मा संस्कृत प्रथमान्त एकवचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप बम्हाणो और बम्हा होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र - संख्या २-७९ से मूल संस्कृत शब्द 'ब्रह्मन् में स्थित 'र्' का लोप; २-७४ से 'ह्म' के स्थान पर म्ह' की प्राप्ति; ३-५६ से अन्त्य 'अन्' अवयव के स्थान पर 'आण' आदेश की प्राप्ति और ३-२ से प्राप्तांग अकारान्त रूप 'बम्हाण' में प्रथम विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'डो-ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप बम्हाणो सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप - 'बम्हा' की सिद्धि सूत्र - संख्या २- ७४ में की गई है। अध्वा संस्कृत प्रथमान्त एकवचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप अद्धाणो और अद्धा होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र - संख्या २-७९ से मूल संस्कृत शब्द 'अध्वन्' में स्थित 'व्' का लोप; २-८९ से लोप हुए 'व्' के पश्चात् शेष रहे हुए 'ध' को द्वित्व ' ध्ध' की प्राप्ति ; २-९० से प्राप्त हुए पूर्व ' ध्' के स्थान पर 'द्' की प्राप्ति; ३-५६ से अन्त्य 'अन्' अवयव के स्थान पर 'आण' आदेश की प्राप्ति और ३-२ से प्राप्तांग अकारान्त रूप 'अद्धाण' में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'डो-ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप अद्धाणो सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप- (अध्वन्-अध्वा = अद्धा) में सूत्र - संख्या २- ७९ से 'व्' का लोप; २-८९ से लोप हुए 'व्' के पश्चात् शेष रहे हुए 'ध' को द्वित्व ' ध्ध' की प्राप्ति; २- ९० से प्राप्त से प्राप्त पूर्व ' धू' के स्थान पर 'द्' की प्राप्ति; १ - ११ से अन्त्य व्यञ्जन 'न्' का लोप; ३-४९ से (तथा ३ - ५६ के निर्देश से) प्राप्तांग अकारान्त रूप 'अद्ध' में स्थित अन्त्य 'अ' के 'आगे प्रथमा-एकवचन बोधक प्रत्यय का सद्भाव होने से' 'आ' की प्राप्ति और १ - ११ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में ४-४४८ के अनुसार प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि=स्' का प्राकृत में लोप होकर द्वितीय रूप अद्धा भी सिद्ध हो जाता हैं उक्षा संस्कृत प्रथमान्त एकवचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप उच्छाणो और उच्छा होते हैं। इसमें से प्रथम रूप में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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