SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 71 अभाव है। दूसरा उदाहरण इस प्रकार :- राज्ञः पश्य = रायाणे पेच्छ अर्थात् राजाओं को देखो; यह उदाहरण द्वितीयान्त बहुवचन वाला है और इसमें भी 'टा' अथवा 'ङसि' अथवा 'ङस्' प्रत्यय का अभाव है। इसी कारण से इसमें 'राजन' के अवयव 'आज' के स्थान पर 'अणू' आदेश प्राप्ति का भी अभाव है। इस विवचेन से यह प्रामणित होता है कि 'टा' = णा'; ‘ङसि'='ण' और 'ङस्'=‘' णो' प्रत्यय का सदभाव होने पर ही राजन्' के 'आज' अवयव के स्थान पर 'अण' (आदेश)की प्राप्ति वैकल्पिक रूप से होती है और इसीलिये मूल-सूत्र में 'टा - ङसि - ङस्' का उल्लेख किया गया है। प्रश्न:- मूलसूत्र में 'णा' और 'णो' का उल्लेख क्यों किया गया है? उत्तर:- संस्कृत शब्द 'राजन्' के प्राकृत रूपान्तर में तृतीया विभक्ति के एकवचन में जब सूत्र - संख्या ३ - ५१ के अनुसार 'टा' प्रत्यय के स्थान पर 'णा' प्रत्यय की (आदेश) - प्राप्ति होकर सूत्र - संख्या ३-६ के अनुसार 'टा' प्रत्यय के स्थान पर 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति होती है; तब 'राजन' शब्द के 'आज' अवयव के स्थान पर 'अण्' आदेश - प्राप्ति नहीं होती। जैसे:- राज्ञा-राएण अर्थात् राजा से । इसी प्रकार से इसी 'राजन' शब्द के प्राकृत रूपान्तर में - पंचमी विभक्ति के एकवचन में जब सूत्र- संख्या ३५० के अनुसार 'ङसि' प्रत्यय के स्थान पर 'णो' प्रत्यय की (आदेश) प्राप्ति नहीं होकर सूत्र - संख्या ३-८ के अनुसार 'डसि' प्रत्यय के स्थान पर 'दो-ओ, दु-उ, हि, हिन्तो, लुक् प्रत्यय की प्राप्ति होती है; तब 'राजन्' शब्द के 'आज' अवयव के स्थान पर 'अण्' (आदेश) - की प्राप्ति नहीं होती है। जैसेः- राज्ञः रायाओ अर्थात् राजा से, इत्यादि। यही सिद्धान्त षष्ठी विभक्ति के एकवचन के लिये भी समझना चाहिये; तदनुसार जब 'राजन्' शब्द के प्राकृत-रूपान्तर में षष्ठी-विभक्ति के एकवचन में सूत्र - संख्या ३ - ५० के अनुसार 'ङस्' प्रत्यय के स्थान पर 'णो' प्रत्यय की (आदेश) - प्राप्ति नहीं होकर सूत्र - संख्या ३-१० के अनुसार 'ङस्' प्रत्यय के स्थान पर 'स्' प्रत्यय की प्राप्ति होती है; तब 'राजन्' शब्द के 'आज' अवयव के स्थान पर 'अण्' (आदेश) की प्राप्ति नहीं होती हैं। जैसेः- राज्ञः- रायस्स अर्थात् राजा का। इस प्रकार उपर्युक्त विवेचन से यह ज्ञात होता है कि जब 'टा' के स्थान पर 'णा' और 'ङसि' अथवा 'ङस्' के स्थान पर 'गो' की प्राप्ति होती है; तभी 'राजन्' के 'आज' अवयव के स्थान पर 'अण' आदेश की प्राप्ति होती है; अन्यथा नहीं। इसीलिये मूल सूत्र में 'णा' और 'णो' का उल्लेख करना पड़ा है। 'रण्णा' और 'राइणा' रूपों की सिद्धि सूत्र - संख्या ३ - ५१ में की गई है। 'कय' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १ - १२६ में की गई है। 'रण्णो' और 'राइणो' रूपों की सिद्धि सूत्र - संख्या ३-५० में की गई है। 'आगओ' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १- २०९ में की गई है। 4 'धणं' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १-५० में की गई है। 'वा' अव्यय की सिद्धि सूत्र - संख्या १-६७ में की गई है। 'रायाणो' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ३ - ५० में की गई है। 'चिट्ठन्ति' (क्रिया-पद) रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ३ - २० में की गई है। 'पेच्छ' (क्रिया-पद) रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १- २३ में की गई है। 'वा' अव्यय की सिद्धि सूत्र - संख्या १ - ६७ में की गई है। 'राएण' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ३ - ५१ में की गई है। 'रायाओ' 'रायस्स' रूपों की सिद्धि सूत्र - संख्या ३-५० में की गई है । । ३ - ५५ ।। पुंस्यन आणो राजवच्च ।। ३-५६ ।। पुल्लिंग वर्तमानस्यान्नन्तस्य स्थाने आण इत्यादेशो वा भवति । पक्षे । यथा दर्शनं । राजवत् कार्यं भवति)। आणादेशे च अतः सेड : (३-२) इत्यादयः प्रवर्तन्ते । पक्षे तु राज्ञः जस्-शस् - ङसि - ङसां णो ( ३-५०) टो णा (३-२४) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy