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________________ 54 प्राकृत व्याकरण 'दुश्शासन:' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'दूसासणो' होता है। इसमें सूत्र संख्या २- ७७ से 'श्' का लोप; १-४३ से 'उ' को दीर्घ 'ऊ'; १ - २६० से 'श' का 'स'; १ - २२८ से 'न' का 'ण'; ३-२ से प्रथमा पुल्लिंग एकवचन में 'ति' अथवा विसर्ग के स्थान पर 'ओ' होकर 'दूसासणो' रूप सिद्ध हो जाता है। 'मणासिला' की सिद्धि सूत्र संख्या १ - २६ में की गई है। 'शिष्यः' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'सीसो' होता है। इसमें सूत्र संख्या २- ७८ से 'य' का लोप; १ - २६० से‘श' और 'ष' का ‘स'; १-४३ से 'इ' की दीर्घ 'ई'; ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' अथवा 'विसर्ग' के स्थान पर 'ओ' होकर 'सीसो' रूप सिद्ध हो जाता है। 'पुष्यः' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'पूसो' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७८ से 'य्' का लोप; १ - २६० से ‘ष' का 'स'; १-४३ से ‘उ' का दीर्घ 'ऊ'; ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' अथवा विसर्ग के स्थान पर 'ओ' होकर 'पूसो' रूप सिद्ध हो जाता है। 'मनुष्यः' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'मणूसो' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७८ से 'य्' का लोप; १ - २६० से 'ष' का 'स'; १-४३ से 'उ' का दीर्घ 'ऊ' ; १ - २२८ से 'न' का 'ण' और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' अथवा 'विसर्ग' के स्थान पर 'ओ' होकर 'मणूसो' रूप सिद्ध हो जाता है। 'कर्षक:' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'कासओ' होता है। इसमें सूत्र संख्या २- ७९ से 'र्' का लोप; १ - ४३ से आदि 'क' के 'अ' का 'आ'; १ - २६० से 'ष' का 'स'; १ - १७७ से 'क' का लोप; ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' अथवा 'विसर्ग' के स्थान पर 'ओ' होकर 'कासओ' रूप सिद्ध हो जाता है। 'वर्षाः' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'वासा' होता है। इसमें सूत्र संख्या २- ७९ से 'र्' का लोप; १ - ४३ से 'व' के 'अ' का 'आ'; १ - २६० से 'ष' का 'स'; ३ - ४ से प्रथमा के बहुवचन में पुल्लिंग में 'जस्' प्रत्यय की प्राप्ति तथा लोप; और ३- १२ से 'स' के 'अ' का 'आ' होकर 'वासा' रूप सिद्ध हो जाता है। 'वर्ष: ' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'वासो' होता है। इसमें सूत्र संख्या २- ७९ से 'र्' का लोप; १ - ४३ से 'व' के 'अ' का 'आ' १ - २६० से 'ष' का 'स'; ३-२ से प्रथमा एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' अथवा विसर्ग के स्थान पर 'ओ' होकर 'वासो' रूप सिद्ध हो जाता है। 'विष्वाणः' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'वीसाणो' होता है। इसमें सूत्र संख्या १ - १७७ से 'व्' का लोप; १-४३ से 'वि' के 'इ' को दीर्घ 'ई' ; १ - २६० से 'ष' का 'स'; ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' अथवा विसर्ग के स्थान पर 'ओ' होकर 'वीसाणो' रूप सिद्ध हो जाता है। 'वीसुं' शब्द की सिद्धि १ - २४ में की गई है। 'निष्षिक्तः ' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'नीसित्तो' होता है। इसमें सूत्र संख्या २- ७७ से 'ष्' का लोप; १ - ४३ से 'नि' के 'इ' को दीर्घ 'ई' ; १ - २६० से 'ष' का 'स'; २-७७ से 'क्' का लोप; ३-२ से प्रथमा में पुल्लिंग के एकवचन में 'सि' अथवा 'विसर्ग' के स्थान पर 'ओ' होकर 'नीसित्तो' रूप सिद्ध हो जाता है। 'सस्यम्' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'सास' होता है। इसमें सूत्र संख्या २- ७८ से 'य्' का लोप; १-४३ से 'स' के 'अ' का 'आ'; ३ - २५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' के स्थान पर 'म्'; और १ - २३ से 'म्' का अनुस्वार होकर 'सास' रूप सिद्ध हो जाता है। 'कस्यचित्' संस्कृत अव्यय है। इसका प्राकृत रूप 'कास' होता है। इसमें सूत्र संख्या २- ७८ से 'य्' का लोप; १-४३ से 'क' के 'अ' का 'आ'; १ - १७७ से 'च्' का लोप; १ - ११ से 'त्' का लोप होकर 'कास' रूप सिद्ध हो जाता है। 'उम्र:' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'ऊसो' होता है। इसमें सूत्र संख्या २- ७९ से 'र्' का लोप; १-४३ से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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