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40 : प्राकृत व्याकरण 'म' का द्वित्व ‘म्म'; १-११ से अन्त्य 'न्' का लोप; १-३२ से पुल्लिंगत्व का निर्धारण; और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'नम्मो' रूप सिद्ध हो जाता है। ___'मर्मन्' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'मम्मो होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७९ से 'र' का लोप; २-८९ से द्वितीय 'म' को द्वित्व 'म्म' की प्राप्ति; १-११ से 'न्' का लोप; १-३२ से पुल्लिगत्व का निर्धारण; और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'मम्मो' रूप सिद्ध हो जाता है। __ 'दामन्' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'दाम' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-११ से 'न्' का लोप; ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग होने से 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; १-२३ से प्राप्त प्रत्यय 'म्' का अनुस्वार होकर 'दाम' रूप सिद्ध हो जाता है।
"शिरस्' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'सिरं होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२६० से 'श' का 'स'; १-११ से अन्त्य 'स्' का लोप; ३-२५ से प्रथमा एकवचन में नपुंसकलिंग होने से 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त प्रत्यय 'म्' का अनुस्वार होकर 'सिरं रूप सिद्ध हो जाता है।
__ 'नभस्' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'नह' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१८७ से 'भ' का 'ह'; १-११ से 'स्' का लोप; ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसक होने से 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; १-२३ से प्राप्त प्रत्यय 'म्' का अनुस्वार होकर नहरूप सिद्ध हो जाता है। __'श्रेयस्' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'सेयं होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२६० से 'श्' का 'स्'; २-७९ से 'र' का लोप; १-११ से 'स्' का लोप; ३-२५ से प्रथमा एकवचन में नपुंसकलिंग होने से 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३
से प्राप्त प्रत्यय 'म्' का अनुस्वार होकर 'सेयं रूप सिद्ध हो जाता है। ___ 'वयस्' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'वयं' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-११ से 'स्' का लोप; ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसक होने से 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त प्रत्यय 'म्' का अनुस्वार होकर 'वयं' रूप सिद्ध हो जाता है।
'सुमनस्' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'सुमणं होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२२८ से 'न' का 'ण'; १-११ से अन्त्य 'स्' का लोप; ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग होने से 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त प्रत्यय 'म्' का अनुस्वार होकर 'सुमणं' रूप सिद्ध हो जाता है।
'शर्मन् संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'सम्म होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२६० से 'श' का 'स'; २-७९ से 'र' का लोप; २-८९ से 'म' का द्वित्व 'म्म'; १-११ से अन्त्य 'न्' का लोप; ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुसंक होने से 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त प्रत्यय 'म्' का अनुस्वार होकर 'सम्म रूप सिद्ध हो जाता है।
'चर्मन्' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'चम्म होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७९ से 'र' का लोप; २-८९ से 'म' का द्वित्व ‘म्म'; १-११ से 'न्' का लोप; ३-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसक होने से 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त प्रत्यय 'म्' का अनुस्वार होकर 'चम्म रूप सिद्ध हो जाता है। १-३२।।
वाक्ष्यर्थ-वचनाद्याः ॥ १-३३ ।। अक्षिपर्याया वचनादयश्च शब्दाः पुसि वा प्रयोक्तव्याः।। अक्ष्याः । अज्ज वि सा सवइ ते अच्छी। नच्चावियाइँ तेणम्ह अच्छीइं।। अञ्जल्यादिपाठादक्षिशब्दः स्त्रीलिङ्गे पि। एसा अच्छी। चक्खू चक्खूइं। नयणा नयणाई। लोअणा लोअणाई। वचनादि। वयणा वयणाई। विज्जुणा विज्जूए। कुलो कुलं। छन्दो छन्द। माहप्पो माहप्पं। दुक्खा दुक्खाई।। भायणा भायणाई। इत्यादि।। इति वचनादयः।। नेत्ता नेत्ताई। कमला कमलाई इत्यादि तु संस्कृतवदेव सिद्धम्।।
अर्थः- आँख के पर्यायवाचक शब्द और वचन आदि शब्द प्राकृत भाषा में विकल्प से पुल्लिंग में प्रयुक्त किये जाने
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