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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 29 १-२६ से 'म' पर आगम रूप अनुस्वार की प्राप्ति; २-७९ से 'श्र' में स्थित 'र' का लोप; १-२६० से लोप हुए 'र' के पश्चात् शेष रहे हुए 'शु में स्थित 'श' के स्थान पर 'स्' की प्राप्ति और ३-१९ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में उकारान्त पुल्लिंग में संस्कृत-प्रत्यय 'सि' के स्थान पर अन्त्य हस्व स्वर 'उ' को दीर्घ स्वर 'ऊ' की प्राप्ति होकर 'मंसू रूप सिद्ध हो जाता है। ___ 'पुच्छम्' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'पुंछ होता है। इसमें सूत्र संख्या १-८६ से 'पु' पर आगम रूप अनुस्वार
की प्राप्ति; १-१७७ की वृत्ति से हलन्त 'च' का लोप; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से 'म्' का अनुस्वार होकर 'पुंछ रूप सिद्ध हो जाता है। ___ 'गुच्छम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'गुंछ होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२६ से 'गु' पर आगम रूप अनुस्वार की प्राप्ति; १-१७७ की वृत्ति से हलन्त 'च' का लोप और शेष साधनिका उपरोक्त 'पुंछ के समान ३-२५ तथा १-२३ से होकर 'गुंछ रूप सिद्ध हो जाता है।
'मूर्द्धा संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'मुंढा' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-८४ से दीर्घ स्वर 'ऊ के स्थान पर हस्व स्वर 'उ' की प्राप्ति; १-२६ से प्राप्त 'मु' पर आगम रूप अनुस्वार की प्राप्ति; २-७९ से हलन्त 'र' का लोप; २-४१ से संयुक्त व्यञ्जन 'द्ध' के स्थान पर 'ढ' की प्राप्ति; १-११ से मूल संस्कृत रूप 'मूर्द्धन्' में स्थित अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'न्' का लोप और ३-४९ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में 'नकारान्त-शब्द' में अन्त्य 'न्' का लोप होने के पश्चात् शेष अन्त्य 'अ' को 'आ' की प्राप्ति होकर 'मुंढा' रूप सिद्ध हो जाता है।
'पर्शः' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'पंसू' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२६ से 'प' पर आगम रूप अनुस्वार की प्राप्ति; २-७९ से 'र' का लोप; १-२६० से 'श' के स्थान पर 'स' की प्राप्ति और ३-१९ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हस्व स्वर 'उ' को दीर्घ स्वर 'ऊ की प्राप्ति होकर 'पंसू रूप सिद्ध हो जाता है।
'बुध्नम्' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'बुंध होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२६ से 'बु' पर आगम रूप अनुस्वार की प्राप्ति; २-७८ से 'न्' का लोप; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से 'म्' का अनुस्वार होकर 'बुंध रूप सिद्ध हो जाता है।
'कर्कोटः' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'कंकोडो' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२६ से प्रथम 'क' पर आगम रूप, अनुस्वार की प्राप्ति २-७९ से हलन्त 'र' का लोप; १-१९५ से 'ट् के स्थान पर 'ड' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कंकोडो' रूप सिद्ध हो जाता है। ___ 'कुड्मलम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'कुंपलं' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२६ से 'कु' पर आगम रूप अनुस्वार की प्राप्ति; २-५२ से 'ड्म' के स्थान पर 'प' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर 'कुंपलं' रूप सिद्ध हो जाता है। __'दर्शनम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'दंसणं' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२६ से 'द' पर आगम रूप अनुस्वार की प्राप्ति; २-७९ से 'र' का लोप; १-२६० से 'श' के स्थान पर 'स' की प्राप्ति; १-२२८ से 'न' को 'ण' की प्राप्ति और ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से 'म्' का अनुस्वार होकर 'दंसणं' रूप सिद्ध हो जाता है। __ "वृश्चिकः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'विछिओ होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१२८ से 'ऋ' के स्थान पर 'इ' की प्राप्ति; १-२६ से प्राप्त 'वि' पर आगम रूप अनुस्वार की प्राप्ति; २-२१ से 'श्च' के स्थान पर 'छ' की प्राप्ति; १-१७७ से 'क्' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर "विछिओ' रूप सिद्ध हो जाता है।
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