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परिशिष्ट-भाग : 417
साहा
साहुली साहू साहेमि सि सिआ
सिआलो सिआवाओ
सिंहदत्तो सिंहराओ
सिंग
सिंगारो सिंघो सिच
साहसू आज्ञा सक (कथय) कहो; २-१९७१ सिम्भो पु. (श्लेश्मा) श्लेष्मा, कफ; २-७४। साहेमि वर्त सक. (कथयामि) मैं कहता हूँ; सिरं न (शिरस्) मस्तक, सिर; १-३२॥ २-२०४।
सिरविअणा स्त्री (शिरोवेदना) सिर की पीड़ा; १-१५६। स्त्री (शाखा) डाली; एक ही आचार्य की सिरा स्त्री (शिरा) नस, नाड़ी, रग; १-२६६। शिष्य-परम्परा; १-१८७)
सिरी
स्त्री (श्री:) लक्ष्मी, संपत्ति, शोभा;२-१०४। दे. स्त्री. (शाखा) डाली; २-१७४ ।
सिरि स्त्री (श्री) लक्ष्मी, शोभा; २-१९८५ पु. (साधुः) साधु, यति, महाव्रती; १-१८७। सिरीए स्त्री (श्रियाः) लक्ष्मी का, शोभा का; २-१९८१ सक (कथयामि) मैं कहता हूं; २-२०४। सिरिमन्तो वि (श्रीमान्) शोभा वाला; शोभा-युक्त; अक. (असि) तू हैं; २-२१७।।
२-१५९। अ (स्यात्) प्रशंसा, अस्तित्व, सत्ता, संशय, सिरिसो पु. (शिरीषः) सिरसा का वृक्ष; १-१०१। प्रश्न, निश्चय, विवाद आदि सूचक अव्यय; सिरोविअणा स्त्री (शिरोवेदना) सिर की वेदना; १-१५६। २-१०७
सिल स्त्री (शिला) चट्टान विशेष; १-४। पुं (श्रृंगाल:) सियार, गीदड़, पशु-विशेष; १-१२८। सिलिट्रं वि (श्लिष्टम्) मनोज्ञ,सुन्दर, आलिगित; २-१०६। पु (स्याद्वादः) अनेकान्त दर्शन; जैन दर्शन का सिलिम्हो पु. (श्लेष्मा) श्लेष्मा, कफ,२-५५, १०६। सिद्धान्त विशेष; २-१०७।
सिलेसो पु. (श्लेषः) वज्र लेप आदि संघान; संसर्ग; पु. (सिंहदत्तः) व्यक्तिवाचक नाम; १-९२।
२-१०६। पु. (सिंहराजः) केशरीसिंह; १-९२॥
सिलोओ पु. (श्लोकः) श्लोक, काव्य; २-१०६। न (श्रृंगम्) सींग, विषाण; १-१३०।
सिवम न (शिवम्) मंगल, कल्याण, सुख; २-१५। पु. (श्रृंगारः) काव्य में प्रसिद्ध रस-विशेष; १-१२८ सिविणो पु. (स्वप्नः) सपना; १-४६, २५९, २-१०८ पु. (सिंहः) सिंह; १-२९, २६४।
सिविणए पु. (स्वप्न के) स्वप्न में, सपने में;
२-१८६। ऊसित्तो वि (उत्सिक्तः) गर्वित, उद्धत: १-११४। सिहर न. (शिखरः) पर्वत के ऊपर का भाग, चोटी, श्रृंग; नीसित्तो वि (निष्पक्तः) अत्यन्त सिक्त, गीला;
२-९७) १-४३।
सीअरो पु. (शीकरः) पवन से क्षिप्त जल, फुहार, जल सिज्जइ अक (स्वेद्यति) वह पसीना वाली होती
कण; १-८४। है; २-१८०।
सीभरो पु. (शीकरः) पवन से फेंका हुआ जल, फुहार, वि (सृष्टम्) रचित, निर्मित; १-१२८१
जल कण; १-८४। स्त्री (सृष्टिः) विश्व-निर्माण, बनाई हुई; १-१२८, सीआणं न (श्मशानम्) श्मशान, मसाण, मरघट; २-८६।
सीलेण न (शीलेन) चारित्र से, सदाचार से, २-१८४ । वि पु. (शिथिलः) ढीला, जो मजबूत न हो वह; सीसं न (शीर्णम्) मस्तक, माथा; २-९२। मंद:१-२१५।
पुं. (शिष्यः) शिष्य, चेला; १-४३। सिढिलं वि न (शिथिलम्) ढीला, मंद, १-८९। सीहो पु. (सिंहः) सिह, केशरी, मृगराज; १-२९, ९२, वि पु. (शिथिरः) ढीला; मंद; १-२१५, २५४।
२६४;२-१८५। वि (स्निग्धम्) चिकना, तेल वाला; २-१०९। सीहेण पु. (सिंहेन) सिंह से, मृगराज द्वारा; १-१४४; पु. (सिंहः) मृग-राज, केशरी; २-७५।
२-९६। न (सिक्थम्) धान्य कण, औषधि-विशेष; सीहरो पु (शीकरः) पवन से फेंका हुआ जल कण; २-७७
फुहार; १-१८४। पु. (सिद्धकः) सिन्दूर वार नामक वृक्ष-विशेष; सुअ वि. (श्रुत) सुना हुआ शास्त्र; २-१७४। १-१८७/
वि (शुक्लम्) सफेद वर्ण वाला; श्वेत; २-१०६ । न. (सिन्दूरम्) सिन्दूर, रक्त-वर्णीय चूर्णविशेष सुउरिसो पु. (सुपुरूषः) अच्छा पुरूष, सज्जन; १-८; १७७ । १-८५/
सुओ वि. (श्रुतः) सुना हुआ, आकर्णित; १-२०९। न. (सैन्धवम्) सेंधा नमक, लवण विशेष; सुकडं न. (सुकृतम्) पुण्य, उपकार; अच्छी तरह से १-१४९।
निर्मित; १-२०६। न (सैन्यम्) सेना, लश्कर; १-१५० ।
वि. (सुकुमारः) अति कोमल, सुन्दर, कुमार स्त्री (शुक्तिः ) सोप, जल में पाया जाने वाला
अवस्था वाला; १-१७१। पदार्थ विशेष; २-१३८।
सुकुसुमं न. (सुकुसुमम्) सुन्दर फूल; १-१७७/ स्त्री (शिफा) वृक्ष का जटाकार मूल; १-२३६।।
सुक्क
वि (शुक्ल) शुक्ल पक्ष; २-१०६। पु. (स्वप्नः) स्वप्न, सपना; १-४६; २५९।
सुक्कं न (शुल्कम्) चुंगी, मूल्य आदि; २-११।
सिटुं
सिट्ठी
२३४॥
सिढिलो
सीसो
सिढिलो सिणिद्ध सिंहो सित्थं
सिद्धओ
सुइलं
सिन्दूर
सिन्धवं
सिन्नं सिप्पी
सुकुमालो
सिभा
सिमिणो
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