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404 : प्राकृत व्याकरण
पेरन्तो
पेरन्तं पेलवाणं पेसो पोक्खरं पोक्खरिणी
पोग्गलं
पोत्थओ
पोप्फलं पोप्फली पोम्म पोरो
बले
फडाला फणसो फणी फन्दणं फरूसो फलं फलिहा
पु (पर्यन्तः) अन्त, सीमा, प्रान्त, भाग; १-५८, बप्फो २.-६५।
बम्भचेरं न (पर्यन्तम्) अन्त, सीमा, प्रान्त, भाग; २-९३।। बम्भणो वि (पेलवानाम्) कोमल का; मृदु का; १-२३८। बम्हचरिअं वि (प्रेष्यः) भेजने योग्य ; २-९२। न (पुष्करम्) पद्म, कमल; १-११६; २-४। बम्हचेरं स्त्री (पुष्करिणी) जलाशय विशेष, चोकोर बावड़ी, कमलिनी; २-४|
बम्हणो न (पुद्गलम्) रूप आदि युक्त मूर्त-द्रव्य विशेष; बम्हा १-११६।
बरिहो पु (पुस्तकः) लीपने पोतने का काम करने वाला; बलया १-११६॥ न (पूगफलम्) सुपारी; १-१७०।
बली स्त्री (पूगफली) सुपारी का पेड़; १-१७० । न (पदम) कमल; १-६१,२-११२। पु (पूतरः) जल में होने वाला क्षुद्र जन्तु; १-१७०। (फ)
बहप्पई वि (फटावान्) फन वाला, सांप; २-१५९। पु (पनसः) कटहर का पेड़; १-२३२।
बहप्फई पु (फणी) सांप; फन वाला; १-२३६। न (स्पन्दनम्) थोड़ा हिलना-फिरना; २-५३। बहला वि (परूषः) कर्कशः कठिन; १-२३२। बहस्सई न (फलम्) फल; १-२३/ स्त्री (परिखा) खाई; किले या नगर के चारों ओर बहिद्धा की नहर; १-२३२, २५४। पु (स्फटिकः) स्फटिक मणि; १-१८६, १९७।।
बहिणी पु (परिघः) अर्गला, आगल; ज्योतिष-शास्त्र बहिरो प्रसिद्ध एक योग; १-२३२, २५४। सक (पाटयति) वह फाड़ता है; १-१९८, २३२। बहु पु (पारिभद्रः) फरहद का पेड़ देवदारू अथवा बहुअं निम्ब का पेड़; १-२३२, २५४।
बहुअयं सक (पाटयति) वह फाड़ता है; १-१९८, २३२। बहुहरो वि (स्पर्शः) स्पर्श, छूना; २-९२।
बहु वल्लह (देशज) सक (?) २-१७४ |
बहुप्पई
बहुवी (देशज) पु (बलीवर्दः) बैल, वृषभ; २-१७४।।
बहेडओ बढलो वि पु (बठरः) मूर्ख छात्र १-२५४।। पु (बद्धफलः) करञ्ज का पेड़; २-९७।
बाम्हणो स्त्री (बन्दि) हठ-हत-स्त्री, बांदी; २-१७६ ।
बारं स्त्री (बन्दिनाम्) बाँदी दासियों का; १-१४२। बारह सक (बध्नाति) वह बांधता है; १-१८७।
बाह हे कृ (बन्धितुम्) बांधने के लिये; १-१८१। । बाहो अणुबद्ध वि (अनुबद्धम्) अनुकूल रूप से बंधा बाहइ हुआ;२-१८४। आबन्धतीए वक (आस्बध्नत्या) बांधती हुई के; बाहाए १-७ पु (बन्धः) बंधन, जीव कर्म-संयोग); १-१८७। बाहू बधवा (बान्धवः) कुटुम्ब संबंधित पुरूष; १-३०। बिइओ
पु (वाष्पः) भाप, उष्मा; २-७०। न (ब्रह्मचर्यम्) ब्रह्मचर्य व्रत, शील व्रत; २-७४ पु (ब्राह्मणः) ब्राह्मण २-७४। न (ब्रह्मचर्यम्) ब्रह्मचर्य व्रत, शील व्रत; २-६३, १०७ न (ब्रह्मचर्यम्) ब्रह्मचर्य व्रत; १-५९, २-६३,७४, ९३१ पु (ब्राह्मण) ब्राह्मण; १-६७; २-७४। पु (ब्रह्मा) ब्रह्मा, विधाता; २-७४। पु (बर्हः) मयूर, मोर; २-१०४। बलाया स्त्री (बलाका) बगुले की एक जाति; १-६७) पु स्त्री. (बलिः) बल वाली अथवा बल वाला; १-३५। अ (निर्धारण निश्चये च निपात:) निश्चय निर्णय-अर्थक अव्यय; २-१८५। पु (बृहस्पतिः) ज्योतिष्क देव-विशेष, देव-गुरू; १-१३७ पु (बृहस्पतिः) ज्योतिष्क देव-विशेषः देव-गुरू: १-१३८,२-६९,१३७। वि (बहला) निबिड, निरंतर, गाढः २-१७७। पु (बृहस्पतिः) ज्योतिष्क देव-विशेष, देव-गुरू; २-६९,१३७। (देशज) अ (?) बाहर अथवा, मैथुन, स्त्री सम्भोग; २-१७४। स्त्री (भगिनी) बहिन; २-१२६। वि (बधिरः) बहरा, जो सुन नहीं सकता हो वह; १-१८७| वि (बहु) बहुत; प्रचुर, प्रभूत; २-१६४। वि (बहुक) प्रचुर प्रभूत, बहुत; २-१६४। वि (बहुक) प्रचुर प्रभूत, बहुत; २-१६४। वि (बहुतरः) बहुत में से बहुत; १-१७७॥ वि (बहुवल्लभ) प्रभूत वल्लभ; २-२०२। बहुप्फई पु वृहस्पति देवताओं का गुरू; २-५३। क्रि वि (वहबी) अत्यन्त, अतिशय; २-११३ पु (विभीतकः) बहेड़ा; फल-विशेष; १-८८,१०५, २०६। पु (ब्राह्मणः) ब्राह्मण; १-६७। न (द्वारम्) दरवाजा; १-७९; २-७९, ११२। संख्या वि (द्वादश) बारह; १-२१९, २६२। पु(वाष्पः) अश्रु, आंसु; १-८२। पु (वाष्पः) अश्रु, आंसुः २-७०। सक (बाधते) विरोध करता है, पीड़ा पहुंचाता है; १-१८७) स्त्री (बाहुणा) भुजा से; १-३६। बाहिरं अ (बहिः) बाहर; २-१४०। पु (बाहूः) भुजा; १-३६। वि (द्वितीयः) दूसरा; १-५, ९४ ।
फलिहो फलिहो
फाढेइ फालिहद्दो
फालेइ फासो फुम्फुल्लइ
बइल्लो बढरा बद्धफलो बन्दि बन्दीणं बन्धई बन्धेउं
बाहिं
बन्धो बन्धवो
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