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________________ 388 : प्राकृत व्याकरण खर कोच्छेअयं कोंचो कोट्रिम कोण्ड कोण्ढा कोत्थुहो कोन्तो कोप्परं कोमुई कोसम्बी कोसिओ कोहण्डी कोहलं कोहलिए खुज्जो कोहली कौरवा क्खण्ड लालसा; १-१२७। न (कोक्षयकम्) पेट पर बंधी हुई तलवार; खलिअ १-१६१। खलिअं पु. (कोंचः) पक्षि-विशेष; इस नाम का अनार्य खल्लीडो देश; १-१५९। न (कुट्टिमम्) आंगण विशेष; झोपड़ा विशेष: रत्नों खसिअं की खान; १-११६। खसिआ न (कुण्डम्) कुंडा; जलाशय-विशेष; १-२०२। वि. (कुण्ठः ) मंद; मूर्ख, १-११६ । खाओ पुं. (कौस्तुभः) मणि-विशेष; १-१५९। खाइरं पुं. (कुन्तः) भाला; हथियार-विशेष; १-११६। खाणू न पुं. (कर्पूरम्) कोहनी, नदी का किनारा; तट; १-१२४| खासिअं स्त्री. (कौमुदी) शरद् ऋतु की पूर्णिमा; चांदनी; खित्तं १-१५९। खीण स्त्री (कौशाम्बी) नगरी विशेष; १-१५९। पुं. (कौशिकः) कौशिक नामक तापस; १-१५९। खीरं स्त्री (कूष्माण्डी) कोहले का गाछ; १-१२४; खीरीओ २-७३। खीलओ न (कुतूहलम्) कौतुक, परिहास; १-१७१। खु स्त्री (हे कुतूहलिके!) हे कौतुक करने वाली स्त्री; १-१७१। स्त्री. (कूष्माण्डी) कोहले का गाछ; १-१२४, खुड्डिओ २-७३। पुं. (कौरवा); कुरू देश के रहने वाले; १-१।। खुड्डओ नं (खण्ड) खण्ड, टुकड़ा; २-१७॥ खेडओ वि (खर्चितः) व्याप्त; मण्डित; विभूषित; १-१९३। खेडओ वि (खादिरम्) खेर के वृक्ष से सम्बंधित; १-६७। खेडिओ पुं. (क्षयः) क्षय, प्रलय, विनाश; २-३। न. (खड्गः ) तलवार; १-३४। पुं. (खड्गः ) तलवार; १-३४, २०२; २-७७) खोडओ स्त्री (खट्वा) खाट, पलंग, चारपाई १-१९५ । पुं. (क्षण:) काल का भाग विशेष; बहुत थोड़ा समय २-२०॥ नं (खण्डम्) टुकड़ा; भाग; २-९७।। गईए वि. पु. (खण्डितः) टूटा हुआ, १-५३। गउआ पुं. (स्थाणुः) ढूंठ; शिवजी का नाम; २-९९। पुं. (क्षत्रियाणाम्) क्षत्रियों का; २-१८५। गउओ पुं. (स्कन्दः) कार्तिकेयः षडानन; २-५॥ पु. (स्कान्धावारः) छावनी; सेना का पड़ाव; गउडो शिविर; २-४। पुं. (स्कन्धः) पिण्ड; पुद्गलों का समूह; कन्धा; गउरव पेड़ का धड़; २-४। गउरि पुं.न. (कर्परम्) खोपड़ी; घट का टुकड़ा; भिक्षा गओ पात्र; १-१८१। स्त्री (क्षमा) क्रोध का अभाव; क्षमा; २-१८। पु. (स्तम्भः) खम्भा; थम्भाः १-१८७,२-८,८९। गज्जन्ति वि (खर) निष्ठुर; रूखा; कठोर; २-१८६ । वि (स्खलित) खिसका हुआ; २-७७। वि (स्खलितम्) खिसका हुआ; २-८९। पु वि (खल्लवाट:) जिसके सिर पर बाल न हों; गंजा; चंदला; १-७४। न (कसितम्) रोग-विशेष; खांसी; १-१८१॥ वि (खचितः) व्याप्त, जटित; मण्डित; विभूषित; १-१९३। वि (ख्यातः) प्रसिद्ध; (विख्यात्) २-९०। वि (खादिरम्) खेर के वृक्ष से संबंधित १-६७। पु. (स्थाणु) ढूंठ रूप वृक्ष; शिवजी का नाम: २-७.९९ न (कासितम्) खांसी रोग विशेष; १-१८१ । न. (क्षेत्रम्) खेत; उपजाऊ जमीन; २-१२७॥ वि (क्षीणम्) क्षय-प्राप्त; नष्ट, विच्छिन्न, दुर्बल कृश; २-३। न (क्षीरम्) दूध; पानी; २-१७। पुं. (क्षीरोद): समुद्र-विशेष क्षीर-सागर; २-१८२। पु. (कीलकः) खीला, खूट; खूटी; १-१८॥ अ. (खलु) निश्चय, वितर्क, संदेह, संभावना, आश्चर्य आदि अर्थो में; २-१९८। वि (कुब्जः) कूबड़ा, वामन; १-१८१। वि पु. (खण्डितः) त्रुटित, खडित, विच्छिन्न; १-५३। वि (क्षुल्लक:) लघु, छोटा, नीच, अधम, दुष्ट। न (खे) आकाश में; गगन में; १-१८७। पुं. (श्वेटक:) विष, जहर: २-६। वि (स्फेटिकः) नाराक, नाश-कर्ता; २-६। पुं वि (स्फेटिकः) नाशवाला; नश्वर; २-६) न (खें लम्) क्रीड़ा, खेल, तमाशा, मजाक; २-१७४। पु. (स्फोटकः) फोड़ा, फुन्सी; २-६। पु. (क्ष्वोटकः) नख से चर्म का निष्पीडन; २-६ (ग) स्त्री (गतिः) गति, गमन, चाल; २-१९५ । स्त्री (गत्याः ) गति से, गति का; २-१८४ । स्त्री. (गवया) मादा, रोझ; रोझड़ी; पशु-विशेष; १-५४, १५८। पु. (गवयः) रोझ; पशु-विशेष; १-५४, १५ ८; २-१७४। पु (गौड़) गौड़ देश का निवासी; बंगाल का पूर्वी भाग; १-१६२; २०२। न (गौरवम्) अभिमान, गौरव, प्रभाव; १-१६३। स्त्री (गौरि) स्त्री; शिवजी की पत्नी; १-१६३ । पुं. (गजः) हाथी; गज-सुकमाल मुनि; १-१७७ । वि (गद्गदम्) आनन्द अथवा दुःख से अव्यक्त कथन; १-२१९। अक (गर्जन्ति) वे गर्जना करते है:१-१८७। खइओ खरं खओ खग्गं खेड्डे खग्गो खट्टा खणो गई खण्डं खण्डिओ खण्णू खत्तिआणं खन्दो खन्धावारो खन्धो खप्पर गग्गरं खमा खम्भो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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