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हेम प्राकृत व्याकरण : XXXI
२५० २५४ २५७ २६१ २६२
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२७०
०६ अमुक संयुक्त व्यञ्जन के स्थान पर "म्ह. बह और ल्ह" की प्राप्ति का विधान
७४ से ७६ १०७ "क्-ग-ट्-ड्-त्-द्-प-श-ए-स- क-X-प" के लोप होने का विधान
७७ १०८ "म-न-य" और "ल-ब-र" के लोप होने की विधि
७८ से ७९ १०९ "र"का वैकल्पिक-लोप ११० "ण","ञ्","ह" का वैकल्पिक लोप १११ आदि "श","श्च" और "त्र" की लोप-विधि ११२ शेष अथवा आदेश प्राप्त व्यञ्जन को "दित्व-प्राप्ति" का विधान ११३ "द्वित्व-प्राप्त व्यञ्जनों में से प्राप्त पूर्व व्यञ्जन के स्थान पर प्रथम अथवा तृतीय व्यञ्जन की प्राप्ति का विधान
० ११४ "दीर्घ" शब्द में "" के लोप होने के पश्चात् "घ" के पूर्व में आगम रूप "ग्" प्राप्ति का वैकल्पिक विधान
९१ ११५ अनेक शब्दों में लोपावस्था में अथवा अन्य विधि में आदेश रूप से प्राप्तव्य "द्विर्भाव" की प्राप्ति की निषेध विधि
९२ से ९६ ११६ अनेक शब्दों में आदेश प्राप्त व्यञ्जन में वैकल्पिक रूप से द्वित्व प्राप्ति का विधान ९७ से ९९ ११७ अमुक शब्दों में आगम रूप से "अ" और "इ" स्वर की प्राप्ति का विधान
१०० से १०८ ११८
अमुक शब्दों में आगम रूप से क्रम से 'अ" और "इ" दोनों ही स्वर की प्राप्ति का विधान १०९ से ११० "अर्हत्" शब्द में आगम रूप से क्रम से "उ","अ" और "इ" तीनों ही स्वर की प्राप्ति का विधान
१११ २० अमुक शब्दों में आगम रूप से "उ" स्वर की प्राप्ति का विधान
११२ से ११४ १२१ "ज्या" शब्द में आगम रूप से "ई" स्वर की प्राप्ति ।
११५ अमुक शब्दों में स्थित व्यञ्जनों को परस्पर में व्यत्यय भाव की प्राप्ति का विधान ११६ से १२४ १२३ । अमुक संस्कृत शब्दों के स्थान पर प्राकृत रूपान्तर में सम्पूर्ण रूप से किन्तु वैकल्पिक रूप से नूतन शब्दादेश प्राप्ति का विधान
१२५ से १३८ १२४ अमुक संस्कृत शब्दों के स्थान पर प्राकृत रूपान्तर में सम्पूर्ण रूप से और तित्यमेव नूतन शब्दादेश प्राप्ति का विधान
१३९ से १४४ १२५ "शील-धर्म-साधु" अर्थ में प्राकृत शब्दों में जोड़ने योग्य "इर" प्रत्यय का विधान
१४५ १२६ "क्त्वा प्रत्यय के स्थान पर प्राकृत में "तुम अत्-तूण-तूआण" प्रत्ययों की आदेश प्राप्ति का विधान
१४६ १२७ "तद्धित" से संबंधित विभिन्न प्रत्ययों की विभिन्न अर्थ में प्राप्ति का विधान
१४७ से १७३ १२८ कुछ रूढ और देश्य शब्दों के सम्बन्ध में विवेचना
१७४ १२९ अव्यय शब्दों की भावार्थ-प्रदर्शन-पूर्वक विवेचना
१७५ से २१८
२७० २७४ २८० २९०
२९१ २९१ २९३
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